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________________ कृति उपरथी प्रत माहिती पिण्डनियुक्ति-(सं.)विवेचन आचार्य-माणिक्यशेखरसूरि[अञ्चलगच्छ], सं., गद्य, आदि वाक्यः श्रीआचारागे द्वितीयश्रुतस्कन्धे आद्यं दशवैकालिके... भांका २२६, पृ. १०२, पिण्डनियुक्ति सह विवेचन, संपूर्ण प्रत विशेष- सूचीपत्र नं.१-१११६. , पलु पत्र डबल छे. डीवीडी-८८ पिण्डनियुक्ति-(सं.)विषमगाथाविवरण (विषमगाथाविवरण), (कतिचिद्गाथावृत्ति) सं., गद्य, पाकाहेम ७१११- पे.क्र. २०, पृ. ५०-५५, सर्वसिद्धान्तविषमपदपर्याय, वि-१६मी, संपूर्ण पे. नाम- पिण्डनियुक्ति तथा पिण्डनियुक्तिगत विषमगाथा विवरण कुल झे.पृष्ठ-८४ पिण्डनियुक्ति-(सं.)वृत्ति जुओ - पिण्डनियुक्ति-(सं.)बृहदत्ति, आचार्य-मलयगिरिसूरि, संस्कृत, ग्रं.७२५० पिण्डनियुक्ति-(सं.)शिष्यहिता टीका (शिष्यहिता टीका) आचार्य-हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, ग्रं.७६७१, आदि वाक्यः नम्रामरेश्वरकिरीटनिविष्ट... कृ.विः हरिभद्रसूरि प्रारब्धा. भांता ७४, पृ. २२६, पिण्डनियुक्ति सह शिष्यहिता वृत्ति, संपूर्ण प्रत विशेष- सूचीपत्र नं.१-१११५., विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका. डीवीडी-७३/८२ पाकाहेम ६५४४, पृ. ११३, पिण्डनियुक्ति शिष्यहिताटीकासहित, वि-१५मी, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-११४ पिण्डविशुद्धिप्रकरण (पिण्डविशोधिप्रकरण) गणि-जिनवल्लभ, प्रा., पद्य, गा.१०४, आदि वाक्यः देविन्दविन्दवन्दियपयारविन्देभिवन्दिय जिणिन्दे।... कृ.विः गाथा १०५ सुधी मळे छे. पाताखेत ५- पे.क्र. ३, पृ. ८६-९९, उपदेशमालादि २१ ग्रन्थो, संपूर्ण प्रत विशेष- श्रावकविधिकुलक जिनप्रभसूरिकृत पेटांक-१६ एवं २० दोनो पर है. कुल झे.पृष्ठ-९२, डीवीडी-६१/६३ पाताखेत ६- पे.क्र. ४, पृ. ५७-६७, उपदेशमालादि ५४ ग्रन्थो, संपूर्ण पे. विशेष- पत्रांक-६४A-B, तथा पत्र-७३A-Dरूप में है. प्रत विशेष- शुद्ध प्रति. ____ कुल झे.पृष्ठ-११०, डीवीडी-६१/६३ पाताखेत १२- पे.क्र. २०, पृ. २१०-२२०, गृहस्थकुलकादि ३४ ग्रन्थो, संपूर्ण प्रत विशेष- ११५ मुं पार्नु घटे छे. ___डीवीडी-६१/६३ पाताखेत ३६- पे.क्र. ३, पृ. ६८-८२, बृहत्सङ्ग्रहणी आदि १७ ग्रन्थो, संपूर्ण पे. विशेष- गाथा-१०४. प्रत विशेष- सूचीपत्र में पेटांक १८ का उल्लेख नहीं है. डीवीडी-६२/६४ पाताखेत ३२-१- पे.क्र. ९, पृ. ७२-८६, नवपदप्रकरण आदि १० ग्रन्थो, संपूर्ण डीवीडी-६२/६४ पाताखेत ३४-३- पे.क्र.६, पृ. २६८-२७५, बृहत्सङ्ग्रहणीगाथा श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रादि, वि-१३५४, संपूर्ण पे. विशेष- पत्रांक-२७० बढते पत्र है. डीवीडी-६२/६४ पातासंघवीजीर्ण ४६- पे.क्र.९, पृ. १९१-१९६, सङ्ग्रहणी आदि, वि-१२८६, अपूर्ण पे. विशेष- गाथा-५७. झेरोक्ष पत्र अन्तर्गत कृति कहाँ से कहाँ तक है उसका स्पष्टीकरण नहीं हो सका है. 490
SR No.018002
Book TitleHastlikhit Granthsuchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherStambhan Parshwanath Jain Trith Anand
Publication Year2005
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size6 MB
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