SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 454
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कृति उपरथी प्रत माहिती आचार्य-धर्मोत्तरपाद(बौद्ध), सं., गद्य, ग्रं.१४७७, न्यायबिन्दुनी-(सं.)टीका--(सं.)धर्मोत्तरटिप्पनक (धर्मोत्तरटिप्पनक) आचार्य-मल्लवादी क्षमाश्रमण, सं., गद्य, ग्रं.१३००, आदि वाक्यः (१) प्रणिपत्य जिना [धीशान]...न्यायबिन्दुटीकायाः क्रियते टिप्पनकं (नं) मया ||१||...(२) नमः संसारसागरात्पारं जगन्नेतुं तथागतं... पाताहेसं १४४, पृ. ८३, धर्मोत्तरटिप्पनक तृतीय परिच्छेद पर्यन्त, प्रतिपूर्ण प्रत विशेष- गायकवाड केटलॉगमां पत्र ३-८३ आप्या छे. डीवीडी-८/१७ तालाद ३४७, पृ. १३१, धर्मोत्तरटिप्पनक, वि-१११६, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-५८, डीवीडी-९४/९६ न्यायबिन्दुनी-(सं.)टीकार्नु-(सं.)धर्मोत्तरटिप्पनक (धर्मोत्तरटिप्पनक) आचार्य-मल्लवादी क्षमाश्रमण, सं., गद्य, ग्रं.१३००, आदि वाक्यः (१) प्रणिपत्य जिना [धीशान्]...न्यायबिन्दुटीकायाः क्रियते टिप्पनकं (नं) मया ||१||...(२) नमः संसारसागरात्पारं जगन्नेतुं तथागतं... पाताहेसं १४४, पृ. ८३, धर्मोत्तरटिप्पनक तृतीय परिच्छेद पर्यन्त, प्रतिपूर्ण प्रत विशेष- गायकवाड केटलॉगमां पत्र ३-८३ आप्या छे. डीवीडी-८/१७ तालाद ३४७, पृ. १३१, धर्मोत्तरटिप्पनक, वि-१११६, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-५८, डीवीडी-९४/९६ न्यायमकरन्दप्रकरण (न्यायोपदेशमकरन्द) कवि-आनन्दबोध, सं., पाकाहेम २८४१, पृ. ५८, न्यायमकरन्दप्रकरण, वि-१४८०, संपूर्ण प्रत विशेष- पत्र५७मुं नथी. कुल झे.पृष्ठ-१२ पाकाहेम ६६८६, पृ. २९, न्यायमकरन्द-न्यायोपदेशमकरन्द, वि-१५मी, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-३० न्यायमकरन्दप्रकरण-(सं.)टीका मुनि-चित्सुख मुनि, सं., गद्य, पाकाहेम ७२४९, पृ. ५२, न्यायमकरन्द टीका, वि-१७मी, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-५२ न्यायमकरन्दप्रकरण-(सं.)टीका मुनि-चित्सुख मुनि, सं., गद्य, पाकाहेम ७२४९, पृ. ५२, न्यायमकरन्द टीका, वि-१७मी, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-५२ न्यायरत्न जैनेतर-मणिकण्ठ मिश्र, सं., पद्य, श्लोक१४७५, पाकाहेम ७२५०, पृ. ४०, न्यायरत्न, वि-१६६५, संपूर्ण प्रत विशेष- कोई कोई पानां अतिजीर्ण छे. कुल झे.पृष्ठ-४० न्यायलीलावती उपाध्याय-श्रीवल्लभोपाध्याय, सं., पाकाहेम १०७१८, पृ. ३९, न्यायलीलावती, वि-१४८३, संपूर्ण न्यायवार्तिक जुओ - न्यायसूत्रना (सं.)न्यायभाष्यनी(सं.)न्यायवार्तिक टीका, मुनि-भारद्वाज, संस्कृत न्यायशास्त्र-(सं.)अनेकार्थभाष्य (अनेकार्थभाष्य) सं., गद्य, आदि वाक्यः मिलन्मन्दाकिनीमल्लीदामां मूर्ध्नि पुरद्विषः... भांका २५५, पृ. ४०, न्यायानेकार्थभाष्य, संपूर्ण 437
SR No.018002
Book TitleHastlikhit Granthsuchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherStambhan Parshwanath Jain Trith Anand
Publication Year2005
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy