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________________ धातुपारायण आचार्य हेमचन्द्रसूरि, सं. ग्रं. ५५००, पाताखेत ५५, पृ. १३२, धातुपारायण, प्रतिपूर्ण प्रत विशेष भ्वादिगण सुधी. झेरोक्ष पत्रांक ३१-१, ३१-२, ३२-१, ३२-२ आ रीते बेवडाएल छे. डीवीडी-६२/६४ पातासंघवी ९३ पृ. २६७ धातुपारायण सह वृत्ति, संपूर्ण प्रत विशेष - पत्र १०१-१०३-१०४-१११-१२७-२०२-२०४-२६१-२६३ पत्र नथी. डीवीडी-३२/५१ पातासंघवी १४३-२, पृ. १७९, धातुपारायण स्वोपज्ञ विवरण प्रथमखण्ड, संपूर्ण प्रत विशेष- पत्र १५७ थी १७९ सुधी एक बाजुनी कोरो खरी गई छे. माटे अंकोमा फरक छे. डीवीडी-३५/५३ धातुपारायण (सं.) स्वोपज्ञ विवरण कृति उपरथी प्रत माहिती . आचार्य हेमचन्द्रसूरि सं., गद्य, पातासंघवी ९३, पृ. २६७ धातुपारायण सह वृत्ति, संपूर्ण प्रत विशेष - पत्र १०१-१०३-१०४-१११-१२७-२०२-२०४-२६१ - २६३ पत्र नथी.. डीवीडी-३२/५१ धातुपारायण- (सं.) स्वोपज्ञ विवरण पातासंघवी १५९, पृ. २६३, धातुपारायणवृत्ति, वि- १३०७, संपूर्ण प्रत विशेष- २६२ अने २६३ पत्रना टुकडा छे. विशलदेवना राज्यमां लखेलुं छे. डीवीडी-३६/५३ पातासंघवी १४३-२ पृ. १७९ धातुषारायण स्वोपज्ञ विवरण प्रथमखण्ड, संपूर्ण प्रत विशेष पत्र १५७ थी १७९ सुधी एक बाजुनी कोरो खरी गई छे माटे अंकोमा फरक छे. डीवीडी-३५/५३ आचार्य - हेमचन्द्रसूरि, सं., गद्य, पातासंघवी ९३, पृ. २६७ धातुपारायण सह वृत्ति, संपूर्ण प्रत विशेष- पत्र १०१-१०३-१०४-१११-१२७-२०२-२०४-२६१-२६३ पत्र नथी.. धातुरत्नाकर डीवीडी-३२ / ५१ पातासंघवी १५९, पृ. २६३, धातुपारायणवृत्ति, वि- १३०७, संपूर्ण प्रत विशेष- २६२ अने २६३ पत्रना टुकडा छे. विशलदेवना राज्यमां लखेलुं छे. डीवीडी-३६/५३ पातासंघवी १४३-२, पृ. १७९, धातुपारायण स्वोपज्ञ विवरण प्रथमखण्ड, संपूर्ण प्रत विशेष- पत्र १५७ थी १७९ सुधी एक बाजुनी कोरो खरी गई छे. माटे अंकोमा फरक छे. डीवीडी-३५/५३ उपाध्याय - साधुसुन्दरमणि सं. रचना सं. विक्रम १६८०, आदि वाक्य श्रीदं स्तात्परमं ज्योतिः शब्दब्रहीककारणं... " पाकाहेम ७२१३, पृ. ३२६ धातुरत्नाकर, वि-१८मी, संपूर्ण प्रत विशेष पत्र १७१ २७३ अने २९७ डबल छे. कुल झे. पृष्ठ-३२५ पाकाम १४५५५ पृ. ४२८ धातुरत्नाकर स्वोपज्ञक्रियाकलापनाम्नीवृत्तिसह, वि-१७३७, संपूर्ण कुल झे. पृष्ठ- २८४ धातुरत्नाकर - (सं.) स्वोपज्ञ क्रियाकलापवृत्ति (क्रियाकलाप वृत्ति) उपाध्याय - साधुसुन्दरगणि, सं गद्य रचना सं. विक्रम १६८०, आदि वाक्यः श्रीमान् स श्रीसुमतिजिनपो बुद्धिसौभाग्यदाता..... पाकाहेम ७२१३, पृ. ३२६, धातुरत्नाकर, वि - १८ मी, संपूर्ण 391
SR No.018002
Book TitleHastlikhit Granthsuchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherStambhan Parshwanath Jain Trith Anand
Publication Year2005
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size6 MB
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