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________________ कृति उपरथी प्रत माहिती पातासंघवी ४४- पे.क्र. २, पृ. २६५, चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र, वृत्ति, वि-१४७९, संपूर्ण पे. विशेष- प्रतिलेखन वर्ष-१४८०. प्रत विशेष- बने सारी अने पूर्ण छे. डीवीडी-२७/४५ पातासंघवी ३४-१, पृ. ९६, चन्द्रप्रज्ञप्तिटीका, अपूर्ण प्रत विशेष- १२ मां प्राभृतथी छे-आदिभाग नथी. डीवीडी-२५/४४ पाकाहेम ६५६७, पृ. १३८, चन्द्रप्रज्ञप्तिउपाङ्गसूत्र टीका, वि-१५मी, संपूर्ण पाकाहेम १००२१, पृ. १६९, चन्द्रप्रज्ञप्तिउपाङ्गसूत्र टीका, वि-१६मी, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-१६९ पाकाहेम १०४०२, पृ. ११६, चन्द्रप्रज्ञप्तिउपाङ्गसूत्र टीका, वि-१५९८, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-११६ पाकाहेम १०४७२, पृ. १५६, चन्द्रप्रज्ञप्तिउपागंसूत्र टीका, वि-१५०३, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-१५६ पाकाहेम १४९१५, पृ. २१५, चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र सटीक, वि-१५६४, संपूर्ण ___ कुल झे.पृष्ठ-२१६ भांका २६५, पृ. २३८, चन्द्रप्रज्ञप्ति सह विवरण, संपूर्ण प्रत विशेष- सूचीपत्र नं.१-२५४. डीवीडी-९० चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र-(सं.)वृत्ति आचार्य-मलयगिरिसूरि, सं., गद्य, ग्रं.९५००, आदि वाक्यः मुक्ताफलमिव करतलकलितं विश्वं समस्तमपि सततम् । यो वेत्ति विगतकर्मा स जयति नाथो जिनो वीरः ||१||... पातासंघवी ४४-पे.क्र. २, पृ. २६५, चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र, वृत्ति, वि-१४७९, संपूर्ण पे. विशेष- प्रतिलेखन वर्ष-१४८०. प्रत विशेष- बने सारी अने पूर्ण छे. डीवीडी-२७/४५ पातासंघवी ३४-१, पृ. ९६, चन्द्रप्रज्ञप्तिटीका, अपूर्ण प्रत विशेष- १२ मां प्राभृतथी छे-आदिभाग नथी. डीवीडी-२५/४४ पाकाहेम ६५६७, पृ. १३८, चन्द्रप्रज्ञप्तिउपाङ्गसूत्र टीका, वि-१५मी, संपूर्ण पाकाहेम १००२१, पृ. १६९, चन्द्रप्रज्ञप्तिउपाङ्गसूत्र टीका, वि-१६मी, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-१६९ पाकाहेम १०४०२, पृ. ११६, चन्द्रप्रज्ञप्तिउपाङ्गसूत्र टीका, वि-१५९८, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-११६ पाकाहेम १०४७२, पृ. १५६, चन्द्रप्रज्ञप्तिउपागंसूत्र टीका, वि-१५०३, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-१५६ पाकाहेम १४९१५, पृ. २१५, चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र सटीक, वि-१५६४, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-२१६ भांका २६५, पृ. २३८, चन्द्रप्रज्ञप्ति सह विवरण, संपूर्ण प्रत विशेष- सूचीपत्र नं.१-२५४. डीवीडी-९० चन्द्रप्रज्ञप्त्युपाङ्गसूत्र जुओ - चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र, प्राकृत, ग्रं.१८३१ चन्द्रप्रभ-युगादीशजिनयुगलस्तुति वागडोदमण्डन जुओ - वागडोदमण्डन चन्द्रप्रभ-युगादीशजिनयुगलस्तुति#, संस्कृत, का.४ चन्द्रप्रभचरित्र 256
SR No.018002
Book TitleHastlikhit Granthsuchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherStambhan Parshwanath Jain Trith Anand
Publication Year2005
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size6 MB
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