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________________ कृति उपरथी प्रत माहिती पाकाहेम १८८६, पृ. ३२, चतुर्विंशतिजिनेन्द्रचरित्र श्लोकबद्ध, वि-१६मी, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-२४ चतुर्विंशतितीर्थङ्कर मुनिसम्पदाप्रमाण जुओ - वैक्रिय-वादिप्रमाण, प्राकृत चतुर्विंशतितीर्थङ्करकलश आचार्य-धर्मप्रभसूरि, मारुगूर्जर, पद्य, गा.१६, आदि वाक्यः कलुसु निसुणौ कलुसु निसुणौ... पाकाहेम ९०२- पे.क्र. ५७, पृ. २३८-२३९, ओघनियुक्ति आदि अनेक प्रकीर्णक-प्रकरण-कुलक-स्तोत्रसङ्ग्रह, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-३१ चतुर्विंशतिप्रबन्ध (प्रबन्धचिन्तामणि), (प्रबन्धचिन्तामणी) आचार्य-मेरुतुङ्गसूरि[अंचलगच्छीय(विधि], सं., पाकाहेम ८००५, पृ. ८४, चतुर्विंशतिप्रबन्ध-प्रबन्धचिन्तामणि, वि-१७मी, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-५४ चतुर्विंशिका जुओ - शोभनस्तुति, मुनि-शोभन, संस्कृत, का.९६ चतुर्विध आहारविषयकगाथा मुनि-उदयधर्म, सं., पद्य, गा.१४, पाकाहेम ५३०३- पे.क्र.२, पृ. ८, वाक्यप्रकाश औक्तिक सटीक पञ्चपाठ आदि, वि-१७मी, संपूर्ण प्रत विशेष- पत्र ७मुं नथी कुल झे.पृष्ठ-८ चतुर्विध आहारविषयकगाथा-(सं.)टीका गणि-हर्षकुलगणि, गुरु-आचार्य-हेमविमलसूरि[तपागच्छ], सं., पद्य, पाकाहेम ५३०३- पे.क्र. २, पृ.८, वाक्यप्रकाश औक्तिक सटीक पञ्चपाठ आदि, वि-१७मी, संपूर्ण प्रत विशेष- पत्र ७मुं नथी कुल झे.पृष्ठ-८ चतुर्विध आहारविषयकगाथा-(सं.)टीका गणि-हर्षकुलगणि, गुरु-आचार्य-हेमविमलसूरि[तपागच्छ], सं., पद्य, पाकाहेम ५३०३- पे.क्र. २, पृ. ८, वाक्यप्रकाश औक्तिक सटीक पञ्चपाठ आदि, वि-१७मी, संपूर्ण प्रत विशेष- पत्र ७मुं नथी कुल झे.पृष्ठ-८ चतुर्विधधर्मचउपई काकबन्ध आचार्य-रत्नसागरसूरि, मारुगूर्जर, पद्य, गा.६९, पाकाहेम १०२२- पे.क्र. २७, पृ. ६४-६६, प्रकरण, स्तुति, स्तोत्रादि सङ्ग्रह, संपूर्ण प्रत विशेष- पत्र ६८ थी ७० नथी. इसी भंडार के प्रत नं.१०१२ को भूल से नं.१०२२ लिखा गया था. असल में १०२२ नं.की झेरोक्ष प्रति नहीं है परन्तु कम्प्यूटर में प्रविष्ट की गयी कृति माहिती सही है. चतुर्विधभावनाकुलक जुओ - भावनाकुलक, आचार्य-जिनप्रभसूरि, अपभ्रंश, गा.११ चतुस्त्रिंशतिकास्तोत्र मुनि-पद्मनन्दिदेव[दिगम्बर], सं., पद्य, आदि वाक्यः शुद्धप्रकाशमहिमा पाकाहेम ७४०२- पे.क्र. १, पृ. १-२, चतुस्त्रिंशतिकास्तोत्र आदि, वि-१५मी, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-२ चतुस्त्रिंशदतिशयगर्भितजिनस्तोत्र जुओ - चतुस्त्रिंशदतिशयस्तोत्र, प्राकृत, गा.१३ चतुस्त्रिंशदतिशयस्तोत्र (जिनअतिशयस्तोत्र), (अतिशयस्तोत्र), (चतुस्त्रिंशदतिशयगर्भितजिनस्तोत्र), (अतिशयस्तवन) प्रा., पद्य, गा.१३, आदि वाक्यः थोस्सामि जिणवरिन्दे अभुयभूएहिं... पाताहेसं १६८- पे.क्र. १७, पृ. ३१आ-३२आ, दशवैकालिकसूत्र, पाक्षिक सूत्रस्तोत्रवृत्ति, स्तुति स्तवनादि, संपूर्ण पे. विशेष- संपूर्ण. झेरोक्ष पत्र-३१-३२. प्रत विशेष- प्रारंभिक कुछेक पत्र उभय पार्श्व खंडित होने से पाठ भी खंडित है. 253
SR No.018002
Book TitleHastlikhit Granthsuchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherStambhan Parshwanath Jain Trith Anand
Publication Year2005
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size6 MB
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