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________________ चतुर्विंशतिजिनस्तवन आचार्य-सोमसुन्दरसूरि[ तपागच्छ], सं., पद्य, का. २५, आदि वाक्यः सकलनाकिनिकायनमस्कृत..... पाकाहेम १२२०७ पृ. १ चतुर्विंशतिजिनस्तवन, वि-१७मी, संपूर्ण कुल झे. पृष्ठ- २ चतुर्विंशतिजिनस्तवन आनन्दमुनि, सं., पद्य, का. ९. आदि वाक्य वृषभवद् वृषभं .... पाकाहेम १२३८८- पे.क्र. २, पृ. १, चतुःशरण आदि, वि-१७२२, संपूर्ण चतुर्विंशतिजिनस्तवन सं., पद्य, आदि वाक्यः ऋषभजिनमजितमथ सम्भवं... पाकाहेम १०२३- पे.क्र. ३७, पृ. ११२, प्रकरणस्तोत्रादिसङ्ग्रह, संपूर्ण प्रत विशेष प्रति पाणीथी भींजायेली छे. कुल . पृष्ठ- १४५ चतुर्विंशतिजिनस्तवन जुओ चोवीसजिनस्तवन, मुनि-आनन्दविजय मारुगुर्जर, गा. २९ चतुर्विंशतिजिनस्तवन जुओ स्वयम्भूस्तोत्र, आचार्य-समन्तभद्र, संस्कृत चतुर्विंशतिजिनस्तुति - - चतुर्विंशतिजिनस्तुति सं., पद्य, का.४, आदि वाक्यः नाभेयाजितवासुपूज्य पाकाहेम १०२२- पे.क्र. ३६, पृ. ७७ प्रकरण, स्तुति, स्तोत्रादि सङ्ग्रह, संपूर्ण कृति उपरथी प्रत माहिती प्रत विशेष - पत्र ६८ थी ७० नथी. इसी भंडार के प्रत नं. १०१२ को भूल से नं. १०२२ लिखा गया था. असल में १०२२ नं.की झेरोक्ष प्रति नहीं है परन्तु कम्प्यूटर में प्रविष्ट की गयी कृति माहिती सही है. पाकाहेम १२३६०- पे क्र. १ पृ. १-२ चतुर्विंशतिजिनस्तुति आदि वि-१७मी, संपूर्ण , , आचार्य जिनप्रभसूरि सं., पद्य, श्लोक५०१, पाकाहेम १५३०६, पृ. १३, चतुर्विंशतिजिनस्तुतिसटीक, वि-१७मी, संपूर्ण 7 कुल झ. पृष्ठ-१३ चतुर्विंशतिजिनस्तुति (सं.) टीका मुनि कनककुशल, सं., पद्य, श्लोक १६५२, पाकाहेम १५३०६, पृ. १३, चतुर्विंशतिजिनस्तुतिसटीक, वि-१७मी, संपूर्ण कुल झे. पृष्ठ- १३ चतुर्विंशतिजिनस्तुति (जिनस्तुतिचतुर्विंशतिका), (स्तुतिचतुर्विंशतिका) आचार्य सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, का. २७, आदि वाक्यः जनेन येन क्रियते पाकाहेम १०२२- पे.क्र. ३, पृ. ७मुं, प्रकरण, स्तुति, स्तोत्रादि सङ्ग्रह, संपूर्ण प्रत विशेष - पत्र ६८ थी ७० नथी. इसी भंडार के प्रत नं. १०१२ को भूल से नं. १०२२ लिखा गया था. असल में १०२२ नं. की झेरोक्ष प्रति नहीं है परन्तु कम्प्यूटर में प्रविष्ट की गयी कृति माहिती सही है. पाकाहेम ८४९९, पृ. ४, जिनस्तुतिचतुर्विंशतिका, वि-१७मी, संपूर्ण कुल झे. पृष्ठ-४ पाकाहेम १२१२४ - पे. क्र. १७, पृ. ८४-८६, प्रकरणसङ्ग्रह आदि, वि-१५मी, संपूर्ण प्रत विशेष- पत्र २३मुं नथी. कुल झे. पृष्ठ- ८१ पाकाहेम १२१९२, पृ. २, चतुर्विंशतिजिनस्तुतयः, वि-१७मी, संपूर्ण प्रत विशेष- का. २८. कुल झे. पृष्ठ- २ पाकाहेम १२१९३, पृ. १, चतुर्विंशतिजिनस्तुतयः, वि-१७मी, संपूर्ण कुल झे. पृष्ठ-२ पाकाहेम १२१९४ पृ. १ चतुर्विंशतिजिनस्तुतयः टिप्पणीसहित वि-१७मी संपूर्ण 249 "
SR No.018002
Book TitleHastlikhit Granthsuchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherStambhan Parshwanath Jain Trith Anand
Publication Year2005
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size6 MB
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