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________________ कृति उपरथी प्रत माहिती प्रत विशेष- विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका. डीवीडी-३७/५४ कालिकाचार्यकथा , प्रा., पद्य, आदि वाक्यः सयलधरासुपसिद्धं... वताकांति ४२९, पृ. १६, कालिकाचार्यकथा, पूर्ण कुल झे.पृष्ठ-८ कालिकाचार्यकथा प्रा., पद्य, गा.१३१, कृ.विः अन्त वाक्य-जह भणियं पुव्वसूरींहि. पातासंघवीजीर्ण ९४- पे.क्र.३, पृ. ?, कल्पसूत्र विगेरे त्रुटक ग्रन्थो, संपूर्ण पे. विशेष- झेरोक्ष पत्र १०८ पर पूर्ण हुआ है इसका संबंध पहले से चालु है. प्रत विशेष- जीर्ण-त्रुटक-अव्यवस्थित डीवीडी-५८/६० कालिकाचार्यकथा पद्य प्रा., पद्य, गा.५७, पाकाहेम १०१७७, पृ. ५, कालिकाचार्यकथा पद्य, वि-१७मी, संपूर्ण प्रत विशेष- प्रति स्थुलाक्षरी छे. कुल झे.पृष्ठ-५ कालिकाचार्यकथा-मूलशुद्धिप्रकरणटीकान्तर्गता आचार्य-देवचन्द्रसूरि, प्रा., गद्य, रचना सं. विक्रम ११४६, ग्रं.३९५, आदि वाक्यः (१) अस्थि इहेव जम्बूद्दीवे दीवे भारहे वासे धरावासं नाम नयरं ।(२) एयं च चउत्थिए जेहिं... कृ.विः ग्रंथाग्र ३६० थी ४०० सुधी मळे छे. पाताखेत ५७- पे.क्र. २, पृ. १३३-१७४-, कल्पसूत्रमूल-कालकाचार्यकथा, संपूर्ण पे. नाम- मूलशुद्धिप्रकरणटीकान्तर्गता- कालिकाचार्यकथा, पे. विशेष- अपूर्ण. अन्त के पत्र नहीं है. कुल झे.पृष्ठ-७५, डीवीडी-६२/६४ पाताखेत ९-१- पे.क्र. ४, पृ. १४१-१६५, कल्पसूत्र, कालकाचार्यकथा अपूर्ण, संपूर्ण डीवीडी-६१/६३ पातासंघवीजीर्ण ४१- पे.क्र.२, पृ.?, कल्पसूत्र तथा कालिकाचार्यनी कथा, त्रुटक प्रत विशेष- वचमां केटलांक पत्र नथी. डीवीडी-५७/६० पातासंघवी १९४-१- पे.क्र.२, पृ. १३९-१७९, कल्पसूत्र तथा कालिकाचार्यकथा, संपूर्ण पे. विशेष- गाथा-३६०. डीवीडी-३७/५४ पाताहेसं ७७- पे.क्र. २, पृ. १०७-१४४, कल्पसूत्र टिप्पणी सहित कालिकाचार्यकथा गद्य, संपूर्ण प्रत विशेष- विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका. (नवा केटलॉगमा पत्र १०७ ज आप्या छे.) डीवीडी-६/१६ पाताहेसं ७८ - पे.क्र. २, पृ. ११४-१५२, कल्पसूत्र कालिकाचार्यकथा गद्य-पद्य, वि-१३३६, संपूर्ण डीवीडी-६/१६ पाताहेसं ८२, पृ. २९, कालिकाचार्यकथा गद्य (अपूर्ण), अपूर्ण डीवीडी-७/१६ पाताहेसं १६६- पे.क्र. ३, पृ. १०३B-१३४B, कल्पसूत्र टिप्पणीसह कालिकाचार्यकथा, संपूर्ण पे. नाम- मूलशुद्धिटीकागता-कालिकाचार्यकथा, पे. विशेष- कथानक संख्या-३६५. ग्रन्थाग्र-४३४. प्रत विशेष- मूल पत्रांक-१३४+१२=१४६., झेरोक्ष पत्रांक १ नुं बे वखत झेरोक्ष थयेलुं छे, जेना उपर पत्रांक ६६ लखेलुं छे पण खरेखर पार्नु ६४ सुधी ज छे. 207
SR No.018002
Book TitleHastlikhit Granthsuchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherStambhan Parshwanath Jain Trith Anand
Publication Year2005
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size6 MB
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