SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 218
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कृति उपरथी प्रत माहिती पं.-विद्यानन्द, सं., गद्य, पाताखेत १-३, पृ. ३२, कातन्त्रोत्तर, संपूर्ण प्रत विशेष- कारक-समास-तद्धितपादपंजिकायाः कातन्त्रोत्तरः. , विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका. डीवीडी-६१/६३ पाकाहेम ६६५८- पे.क्र. २, पृ. ९-१६, षट्कारक तथा क्रियाकलाप, वि-१५मी, संपूर्ण प्रत विशेष- उभय श्लोक-४२०. कुल झे.पृष्ठ-१६ कातन्त्रव्याकरण-(सं.)वृत्ति नी पञ्जिका नी उद्योतवृत्ति जैनेतर-त्रिविक्रम भट्ट, सं., गद्य, पाताहेसं १४६, पृ. ८१, कलापकव्याकरणपञ्जिकोद्योत, संपूर्ण डीवीडी-८/१७ पाकाहेम ६७८२, पृ. २५, कातन्त्रव्याकरणआख्यातवृत्तिपञ्जिकोद्योत, वि-१५मी, अपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-२४ कातन्त्रव्याकरण-दौर्गसिंहीवृत्तिनी (सं.)अवचूरि सं., गद्य, पाकाहेम २८७१, पृ. १४, कातन्त्रव्याकरण आख्यातवृत्ति प्रथमपाद दौर्गसिंहीवृत्तिसहित सावचूरि पञ्चपाठ, वि १५मी, प्रतिपूर्ण प्रत विशेष- पत्रांक-१५ थी ४८ द्वितीयपाद प्रत नं.२८७२ के अन्तर्गत है. कुल झे.पृष्ठ-१४ पाकाहेम २८७२, पृ. ३४, कातन्त्रव्याकरण द्वितीयपादपर्यन्त दौर्गसिंहीवृत्तिसहित सावचूरि पञ्चपाठ, वि-१६मी, प्रतिपूर्ण प्रत विशेष- पत्रांक-१ थी १४ प्रथमपाद प्रत नं.२८७१ के अन्तर्गत है. कुल झे.पृष्ठ-३५ कातन्त्रव्याकरण-बृहद्वृत्ति जुओ - कातन्त्रव्याकरण-(सं.)दौर्गसिंहीवृत्ति, जैनेतर-दुर्गसिंह, संस्कृत कातन्त्रव्याकरणना (सं.)दुर्गसिंहीवृत्तिनी (सं.)टिप्पणी सं., गद्य, पाकाहेम ६७८४, पृ. १-२९, कातन्त्रव्याकरण दौर्गसिंहीवृत्ति-चतुष्कवृत्ति टिप्पनिका-गोल्हणवृत्ति, वि-१५मी, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-१२८ पाकाहेम १२८३७- पे.क्र. १, पृ. २७६, कातन्त्रव्याकरण दौर्गसिंहीवृत्तिसहित टिप्पणीसहित आदि, वि-१५मी, संपूर्ण पे. नाम- कातन्त्रव्याकरण दौर्गसिंहवृत्ति सहित टिप्पणी सहित प्रत विशेष- पत्र २४७मां खरतरगच्छीय आचार्य श्रीजिनचन्द्रसूरिनुं तथा सरस्वती- एम बे अतिसुन्दर चित्रो छे. कुल झे.पृष्ठ-९० पाकाहेम १२८३८- पे.क्र. १, पृ. २७९, कातन्त्रव्याकरण दौर्गसिंहीवृत्तिसहित टिप्पणीसहित आदि, वि-१४९३, संपूर्ण पे. नाम- कातंत्रव्याकरण दौर्गसिंहीवृत्ति सहित टिप्पणी सहित कुल झे.पृष्ठ-११२ पाकाहेम १२८३९, पृ. २५, कातन्त्रव्याकरण दौर्गसिंहीवृत्ति-कृवृत्ति टिप्पणीसहित त्रुटक, वि-१५मी, त्रुटक कुल झे.पृष्ठ-१० कातन्त्रव्याकरणनी (सं.)दुर्गसिंहवृत्तिनुं (सं.)पञ्जिकाविवरण (पञ्जिकाविवरण) जैनेतर-त्रिलोचनदास, सं., गद्य, आदि वाक्यः प्रणम्य सर्वकर्तारं सर्वदं सर्वेवेदिनम् । सर्वीयं सर्वगं शर्वं सर्वदेवनमस्कृतम् ||... पातासंघवीजीर्ण ६२- पे.क्र.२, पृ. १६५मुं, योगशास्त्रान्तर्गत श्लोक आदि, त्रुटक 201
SR No.018002
Book TitleHastlikhit Granthsuchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherStambhan Parshwanath Jain Trith Anand
Publication Year2005
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy