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________________ कृति उपरथी प्रत माहिती कुल झे.पृष्ठ-१४ पाकाहेम २८७२, पृ. ३४, कातन्त्रव्याकरण द्वितीयपादपर्यन्त दौर्गसिंहीवृत्तिसहित सावचूरि पञ्चपाठ, वि-१६मी, प्रतिपूर्ण प्रत विशेष- पत्रांक-१ थी १४ प्रथमपाद प्रत नं.२८७१ के अन्तर्गत है. कुल झे.पृष्ठ-३५ पाकाहेम ३८१३, पृ. ११५, कातन्त्रव्याकरण दौर्गसिंहीवृत्ति सहित आख्यातवृत्ति, वि-१६मी, प्रतिअपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-११५ पाकाहेम ८५६४, पृ. ९, कातन्त्रव्याकरण सूत्रपाठ, वि-१७वी, संपूर्ण प्रत विशेष- सूचिमां कर्ता, नाम कात्यायनमुनि आपेल छे. कुल झे.पृष्ठ-१० पाकाहेम ९६८३, पृ. १३, कातन्त्रव्याकरण सूत्रपाठ, वि-१७वी, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-१४ पाकाहेम ९६९९, पृ. ३९, कात्यायनव्याकरण कृद्धृत्ति, वि-१६वी, प्रतिपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-४० पाकाहेम १२८३७- पे.क्र. १, पृ. १-२४७, कातन्त्रव्याकरण दौर्गसिंहीवृत्तिसहित टिप्पणीसहित आदि, वि-१५मी, संपूर्ण पे. नाम- कातन्त्रव्याकरण दौर्गसिंहवृत्ति सहित टिप्पणी सहित प्रत विशेष- पत्र २४७मां खरतरगच्छीय आचार्य श्रीजिनचन्द्रसूरिनुं तथा सरस्वती- एम बे अतिसुन्दर चित्रो कुल झे.पृष्ठ-९० पाकाहेम १२८३८ - पे.क्र. १, पृ. १-२६०, कातन्त्रव्याकरण दौर्गसिंहीवृत्तिसहित टिप्पणीसहित आदि, वि-१४९३, संपूर्ण पे. नाम- कातंत्रव्याकरण दौर्गसिंहीवृत्ति सहित टिप्पणी सहित कुल झे.पृष्ठ-११२ पाकाहेम १२८३९, पृ. २५, कातन्त्रव्याकरण दौर्गसिंहीवृत्ति-कृवृत्ति टिप्पणीसहित त्रुटक, वि-१५मी, त्रुटक कुल झे.पृष्ठ-१० कातन्त्रव्याकरण-(सं.)दौर्गसिंहीवृत्ति (दौर्गसिंहीवृत्ति), (कातन्त्रव्याकरण-बृहद्वृत्ति) जैनेतर-दुर्गसिंह, सं., गद्य, आदि वाक्यः देवदेवं प्रणम्यादौ सर्वज्ञं सर्वदर्शिनम्... पातासंघवीजीर्ण ९५- पे.क्र. १, पृ. ?, कातन्त्रव्याकरण दौर्गसिंही टीका, सूत्रकृताङ्गटीका व अन्य ग्रन्थों के त्रुटक पत्र, संपूर्ण पे. विशेष- प्रारंभमात्र है. प्रत विशेष- जीर्ण-त्रुटक-अव्यवस्थित पाकाहेम ९०३, पृ. ४०, कातन्त्रव्याकरण सह आख्यात वृत्ति व दौर्गसिंही वृत्ति, वि-१४८०, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-२५ पाकाहेम ९०४, पृ. २८, कातन्त्रव्याकरण - कृद्धृत्ति दौर्गसिंहीवृत्ति सहित, प्रतिपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-२० पाकाहेम १०३६, पृ. ३६, कातन्त्रव्याकरण दौर्गसिंहीवृत्ति चतुष्कवृत्ति, प्रतिपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-३९ पाकाहेम १०३७, पृ. ६०, कातन्त्रव्याकरण दौर्गसिंहीवृत्ति आख्यातवृत्ति, प्रतिपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-६० पाकाहेम २८७१, पृ. १४, कातन्त्रव्याकरण आख्यातवृत्ति प्रथमपाद दौर्गसिंहीवृत्तिसहित सावचूरि पञ्चपाठ, वि १५मी, प्रतिपूर्ण प्रत विशेष- पत्रांक-१५ थी ४८ द्वितीयपाद प्रत नं.२८७२ के अन्तर्गत है. कुल झे.पृष्ठ-१४ 190
SR No.018002
Book TitleHastlikhit Granthsuchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherStambhan Parshwanath Jain Trith Anand
Publication Year2005
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size6 MB
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