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________________ कृति उपरथी प्रत माहिती आवश्यकसूत्रनो हिस्सो (प्रा.)चैत्यवन्दनासूत्र (चैत्यवन्दनासूत्र) प्रा.. भांता ६९- पे.क्र. १४, पृ. १२०B-१२५A, आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरण आदि, संपूर्ण पे. विशेष- सूचीपत्रमा आपेल १३ थी २४ सुधीना पेटांक चैत्यवन्दनासूत्र अन्तर्गत लई लीधा छे. प्रत विशेष- सूचीपत्र-नं.२-१३३. कुल झे.पृष्ठ-४०, डीवीडी-७२/८२ आवश्यकसूत्रनो हिस्सो चैत्यवन्दनासूत्र-(प्रा.)चूर्णी आचार्य-यशोदेवसूरि, प्रा., गद्य, रचना सं. विक्रम ११७४, ग्रं.८४०, आदि वाक्यः इच्छामि पडिक्कमिउं इरियावहियाए इत्यादि जाव तस्स मिच्छामि दुक्कडं ति एयस्स..... पातासंघवी १३८-२- पे.क्र. १, पृ. १-१७८, चैत्यवन्दन-वन्दनक-प्रत्याख्यानचूर्णि, वि-१४१४, संपूर्ण प्रत विशेष- विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका. डीवीडी-३५/५३ आवश्यकसूत्रनो हिस्सो चैत्यवन्दनसूत्र-(सं.)ललितविस्तरावृत्ति (ललितविस्तरावृत्ति), (चैत्यवन्दनसूत्र व्याख्या) आचार्य-हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि वाक्यः प्रणम्य भुवनालोकं महावीरं जिनोत्तमं... पातासंघवीजीर्ण ८९- पे.क्र. १, पृ. १२, ललितविस्तरा चैत्यवन्दनटीका आदि, वि-११८५, त्रुटक डीवीडी-५८/६० पातासंघवी १९२-२- पे.क्र. १, पृ. १-८८, ललितविस्तरा तथा ललितविस्तरापञ्जिका, त्रुटक पे. विशेष- पत्र ४-५-९-१५-१६-४०-६४ थी ६६-६८-७३-८० नथी. डीवीडी-३७/५४ पाताहेसं १६०, पृ. ४६, ललितविस्तरा चैत्यवन्दनसूत्रटीका , संपूर्ण डीवीडी-८/१८ आवश्यकसूत्रनो हिस्सो चैत्यवन्दनसूत्र की ललितविस्तराटीका-(सं.)पञ्जिका टीका (ललितविस्तरापञ्जिका टीका), (पञ्जिका टीका) आचार्य-मुनिचन्द्रसूरि, सं., गद्य, ग्रं.२०५०, आदि वाक्यः नत्वानुयोगवृद्धेभ्यश्चैत्यवन्दन... पातासंघवी १६३, पृ. २७१, ललितविस्तरापञ्जिका, वि-१२८९, संपूर्ण डीवीडी-३६/५३ पातासंघवी १९२-२- पे.क्र. २, पृ. ८९-२२९, ललितविस्तरा तथा ललितविस्तरापञ्जिका, त्रुटक पे. विशेष- पत्र ९८-९९-१२०-१३६-१४३-१५३ थी १६७ नथी. डीवीडी-३७/५४ पाताहेसं ९९, पृ. ५२, ललितविस्तरापञ्जिकावृत्ति अपूर्ण, संपूर्ण डीवीडी-७/१६ भांता ६६, पृ. २४८, ललितविस्तरापञ्जिका, संपूर्ण प्रत विशेष- सूचीपत्र-नं.१-८४६. डीवीडी-७२/८२ चैत्यवन्दनासूत्र-(मा.गु.)गाथार्थ मारुगूर्जर, गद्य, डतामुक्ता ४५१, पृ. ४, चैत्यवन्दन गाथार्थ, संपूर्ण डीवीडी-१०१/१०२ आवश्यकसूत्रनो हिस्सो चैत्यवन्दना-वन्दनक-प्रत्याख्यान* (चैत्यवन्दना वन्दनक प्रत्याख्यानभाष्य) प्रा., पातासंघवी १६६- पे.क्र.१, पृ. १-५, चैत्यवन्दन आदि, संपूर्ण पे. नाम- चैत्यवन्दनक प्रत विशेष- प्रारंभना १-८ पत्र बढते पत्ररूपे लीधा छे. (८+१९४) डीवीडी-३६/५४ 86
SR No.018002
Book TitleHastlikhit Granthsuchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherStambhan Parshwanath Jain Trith Anand
Publication Year2005
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size6 MB
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