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________________ ग्रंथांक २७९६ २७९७ २८०० २८०१ २८४० २८४१ २८४८ २८६९ २८७१ २८७२ प्रत नाम (पेटा नंबर), पेटा नाम कृति नाम जैनसामुद्रिकशास्त्र जैनसामुद्रिकशास्त्र सह बालावबोध जैनसामुद्रिकशास्त्र जैन सामुद्रिकशास्त्र - बालावबोध आर्यवसुधाराधारिणीकल्प वसुधारा जाङ्गुलीमहाविद्या पदार्थतत्त्वतात्पर्यटीका पदार्थतत्त्वनिर्णय तात्पर्य टीका न्यायमकरन्दप्रकरण नवसंवादसुन्दर सावचूरि त्रिपाठ नवसंवादसुन्दर नवसंवादसुन्दर अवचूरि न्यायदीपिका सह टिप्पण न्यायदीपिका न्यायदीपिका-टिप्पण कातन्त्रव्याकरण आख्यातवृत्ति प्रथमपाद दौर्गसिंहीवृत्तिसहित सावरि पञ्चपाठ कातन्त्रव्याकरण कातन्त्रव्याकरण- दीर्गसिंहीवृत्ति कातन्त्रव्याकरण- दीर्गसिंहीवृत्तिनी अवचूरि कातन्त्रव्याकरण द्वितीयपादपर्यन्त दौर्गसिंहीवृत्तिसहित सावचूरि पञ्चपाठ स्थिति कर्ता श्रेष्ठ जीर्ण श्रेष्ठ श्रेष्ठ जीर्ण आनन्दज्ञान जीर्ण आनन्दबोध श्रेष्ठ जीर्ण अभिनवधर्मभूषण श्रेष्ठ शर्ववर्मदेव दुर्गसिंह श्रेष्ठ पूर्णता भाषा संपूर्ण सं. संपूर्ण सं. मारुगूर्जर संपूर्ण सं. संपूर्ण सं. संपूर्ण सं. संपूर्ण सं. त्रुटक सं. सं. संपूर्ण प्रतिपूर्ण सं. सं. प्रतिपूर्ण (पाकाहेम) पाटण कागळ प्रतोनो भंडार प्रतिलेखन वर्ष पत्र प्रत प्रकार आदिवाक्य परिमाण कागज श्लोक १२६ कागज श्लोक १२६ श्लोक ७०० कागज कागज कागज कागज कागज श्लोक ३५२ कागज कागज कागज रचना वर्ष वि. १६५३ वि. १७मी वि. १८मी वि. १८मी वि. १८मी वि. १४८० वि. १८मी वि. १८मी वि. १५मी वि. १६मी 345 ७ आदिदेवं प्रणम्यादी.. १९ आदिदेवं प्रणम्यादी.. १ १०८ ५८ ७ २० १४ सिद्धो वर्णसमाम्नायः देवदेवं प्रणम्यादौ ४८-१४(१ थी १४ ) = ३४ क्लिन / ओरिजिनल डीवीडी (डीवीडीझे. पत्र (झे. पत्र) कृति प्रकार (c) पद्य (98) पद्य पद्य (६) (२) गद्य (१२) (९) पद्य गद्य (29) गद्य (१४) गद्य गद्य गद्य (३५) प्रतविशेष, माप, पंक्ति, अक्षर, प्रतिलेखन स्थल पेटांक पृष्ठ, पेटा विशेष कृति विशेष, पेटांक पृष्ठ, पेटा विशेष ( १०.२४४.५) सामुद्रिकशास्त्र - नारदीय अने आ बन्ने एक छे? (१०.५४४.५) सामुद्रिकशास्त्र - नारदीय अने आ बन्ने एक छे? प्रथम पत्र नथी. (१० २४४. २). दण्डकछन्दोमयी पाछल कोई बीजुं मंत्रकल्प जेवुं छे.. (१०x४.२) पत्र ८०मुं नथी. (९.७x४) मूलना कर्ता अने आनंदज्ञानवाली टीकाओ विशे निर्णय बाकी. पत्र५७मुं नथी. (९.७x४.२) चुटक, (९.७५४.५) (११४४.५) पत्रांक- १५ थी ४८ द्वितीयपाद प्रत नं. २८७२ के अन्तर्गत है. (१०.७x४.१) पत्रांक- १ थी १४ प्रथमपाद प्रत नं. २८७१ के अन्तर्गत है.. (११x४.२)
SR No.018001
Book TitleHastlikhit Granthsuchi Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherStambhan Parshwanath Jain Trith Anand
Publication Year2005
Total Pages582
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size38 MB
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