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________________ गंथांक सं. गद्य (पाताहेस) पाटण ताडपत्रीय ज्ञान भंडार हेमचन्द्राचार्य संघभंडार प्रत नाम स्थिति पूर्णता प्रत प्रकार प्रतिलेखन वर्ष पत्र क्लिन/ओरिजिनल प्रतविशेष, माप, पंक्ति, अक्षर, प्रतिलेखन स्थल (पेटा नंबर). पेटा नाम डीवीडी (डीवीडी-पेटांक पृष्ठ, पेटा विशेष कृति नाम কর परिमाण रचना वर्ष आदिवाक्य कृति विशेष, पेटांक पृष्ठ, पेटा विशेष कति प्रकार (पे.३) श्रावकसामाचारीप्रकरण- तिलकसरि प्रणिपत्य जिनं वीरं गद्य (पे.पृ. १५१-१५९) आवकसामाचारीवृत्ति (पे.४) पौषधिकप्रायश्चित्तसामाचारी ... तिलकसूरि गा.१० पोसहिओ न करेइ आवसिअं पद्य (पे.पृ. १५१-१६१) (पे.५) पौषधिकप्रायश्चित्तसामाचारी- तिलकसूरि (पे.पृ. १६१-१६३) :वृत्ति (पे.६) जीतकल्पसूत्र जिनभद्रगणिप्रा . गा. १०५ ग्रं. कयपवयणप्पणामो वोच्छं पद्य (पे.पृ. १६४-१७५) [कृ.वि. : हस्तप्रतसूचीओमां क्षमाश्रमण १३० जीतकल्प, यतिजीतकल्प अने श्रावकजीतकल्पमा घणी वखत परस्पर अस्पष्टताओ रहेल छे.] श्रेष्ठ संपर्ण ताडपत्र धर्मरत्नप्रकरणवृत्ति .वि.१२७११७१ Q/9 (190) .(१६४१.७ धर्मरत्नप्रकरण शान्तिसरि गा. १४५ नमिउण सयल गुणरयणकुल पद्य धर्मरत्नप्रकरण-वृत्ति शान्तिसूरि संपर्ण ताडपत्र १४3 सारस्वत व्याकरण ९/१९(५७). .(१३४२.५ सारस्वतच्याकरण अनभतिस्वरुप सं आवश्यकनियुक्ति श्रेष्ठ संपूर्ण ताडपत्र वि. १३९२ ९/१९(१२६) अन्तरंग संधिनो उल्लेख गायकवाड केटलॉगमां १७७ २३३ (पे.१) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति भद्रबाहुस्वामी :प्रा. पद्य गा.२५०० ग्रं. ३१०० अध्याय ९ग्रं. जयइ जगजीवजोणी वियाणओ परमवि दुहखण्डण दुरिय (पे.पृ. १-२३२) [कृ.वि. : आनुं अने नंदिसूत्रनुं आदिवाक्य समान छे] (प.पृ. १-१२) अपभ्रं. पद्य २०६ प्रतिपूर्ण ताडपत्र वि. १२९७ ३८६ ९/१९(६०) (१६४२-२) अहे। सिद्धिः स्याद गद्य (पे.२) अन्तरङ्गसन्धि धर्मप्रभसूरि, रत्नप्रभसूरि सिद्धहेमशब्दानुशासन स्वोपज्ञ वृहद्वृत्ति श्रेष्ठ सह तद्धित सिद्धहेमशब्दानुशासन हेमचन्द्रसुरि सिद्धहेमशब्दानुशासन-बृहदृत्ति हेमचन्द्रसूरि दशवैकालिकसूत्र आदि (पे.9) दशवैकालिकसूत्र शरयम्भवसरि (पे.२) पाक्षिकसूत्र :(पे.३) ओघनियुक्ति भद्रबाहस्वामी ताडपत्र वि. १३७२ 1३१६............ ग्रं. ७00 गं.340 धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ तित्थड़करे य तित्थे दुविहोवक्कमकालो सामा 1९/१९(९०).........(१३४२). लेखन स्थल : स्तम्भतीर्थ संयुक्त प+ग . (पे.पू. १-३७). संयुक्त प+ग (प.पू. ३७-५४) (पे.पृ. ५५-१२२) [कृ.वि. : गाथा-११४० थी ११९० सुधी मळे छे पद्य (प.पू. १२३-१२९[कृ.वि. : गाथा १०५ सुधी मळे । :प्रा. पद्य गा. ११६३. १४३२ (पे.४) पिण्डविशुद्धिप्रकरण ........... | जिनवल्लभ प्रा ........ गा. १०४ देविन्दविन्दवन्दियपय 203
SR No.018001
Book TitleHastlikhit Granthsuchi Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherStambhan Parshwanath Jain Trith Anand
Publication Year2005
Total Pages582
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size38 MB
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