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________________ ग्रंथांक पूर्णता प्रत नाम (पेटा नंबर). पेटा नाम कृति नाम कति प्रकार (पे.४१) एगुणतीसी भावना (पे.४२) नवकारफलकुलक (पाताहेस) पाटण ताडपत्रीय ज्ञान भंडार हेमचन्द्राचार्य संघभंडार प्रत प्रकार प्रतिलेखन वर्ष पत्र क्लिन/ओरिजिनल प्रतविशेष, माप, पंक्ति, अक्षर, प्रतिलेखन स्थल डीवीडी (डीवीडी-पेटांक पृष्ठ, पेटा विशेष भाषा परिमाण रचना वर्ष आदिवाक्य कृति विशेष, पेटांक पृष्ठ, पेटा विशेष गा.३० संसारम्मि असारे (प.पू. २६०-२६२).. गा.१४ (पे.पृ. २६-२६४) पे.वि. : प्रारंभिक वाक्य घिसा हुआ होने से आदिवाक्य नहीं दिया गया है. नमो दुर्वाररागादिवैर (पे.पू. २६४-३१६). पे.वि.: गाथा-१९... अध्याय २० ग्र. यः परात्मा परज्योत पद्य (पे.पृ. ३१६-३२५) [कृ.वि. : प्रकाश-२०] FIE हेमचन्द्रसार अध्याय १२प्रका (पे.४३) योगशास्त्र (पे.४४) वीतरागस्तोत्र हेमचन्द्रसूरि १८ (पे.४५) आत्मानुशासन श्लोक ७७ :वि. १०४२ सकलत्रिभुवनतिलक पद्य पावनाग (दिगम्बर) विमलसूरि का.२८ प्रा.मारुगजर का खलु नालडिक्रयते नवकारेण विवोहो अनुसर धर्मार्थ क्लिश्यते वीरु पार्श्व नमी (पे.पृ. ३२५-३२९) [कृ.वि. : परिमाण आर्या रूपे आप्यु... (प.पू. ३२९-३३१) पे.वि. : का.२९. (पे.पू. ३३१-३३२) पे.वि. : गाथा-३२. (पे.पृ. ३३२-३३३) पे.वि. : गाथा-१४. (पे.पू. ३३३-३३५....... (पे..पू. ३३४-३३६/.. (पे.४६) प्रश्नोत्तररत्नमालिका (पे.४७) रत्नत्रय (पे.४८) धर्मलक्षणप्रकरण (पे.४९) मङ्गलस्तव (प.५०) परमसुखवत्रीसी. परमसुखद्वात्रिंशिका : विमलसरि श्लोक २२ श्लोक १४ श्लोक ३२ धर्माधर्मान्तरं जिनप्रभसूरि (आगमिक) (पे.५१) ज्ञानप्रकाश मारुगुर्जर :उत्तराध्ययन सुत्र संपूर्ण ताडपत्र :वि. १३६९ :१७८ ८/१८(४८) (पे.प्र.) पे.वि. : अन्तिम आवरण पत्र. झेरोक्ष पत्र-१७९-१८०. : गायकवाड केटलॉगमा पत्र १७८+२६ थी ४४ आप्या छे. लेखन स्थल : स्तम्भतीर्थ (पे.पृ. १७८) (पे.१) उत्तराध्ययनसूत्र सुधर्मास्वामी प्रा. सञ्जोगाविप्पमुक्कस्य संयुक्त प+ग अध्याय ३६ ग्रं. २०९५ गा. ६३ (पे.२) चतुःशरणप्रकीर्णक वीरभद्र प्रा. सावज्जजोगविरई उक्कित पद्य (पे.३) आतुरप्रत्याख्यान लघु गा.६० (पे.पृ. २६-?) [कृ.वि. : गाथा-६२ थी ९१ सुधी मळे छे] (पे.पृ. ???) [कृ.वि. : गाथा परिमाणमा ४० थी ९४ सुधीनुं वैविध्य जोवा मळे छे. आनी साथे संकळाएल केटलीक प्रतो वीरभद्र गणि वाला आउर पच्चक्खाणनी अगर "अरहन्ता मंगलं मज्झ... आदिवाक्यवाला के पछी 'कुससत्थरे निसन्नो..."बाला आदिवाक्य वाला आउर. 193
SR No.018001
Book TitleHastlikhit Granthsuchi Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherStambhan Parshwanath Jain Trith Anand
Publication Year2005
Total Pages582
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size38 MB
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