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________________ सण्णिवाइय 308 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 7 सण्णिवाइय त्रिकयोगानिर्दिदिक्षुराह-- सम्मत्तं / खओवसमियाई इंदिआइं पारिणामिए जीवे, एस तत्थ णंजे ते दस तिगसंजोगा तेणंइमेअत्थिणामे उदइएउवसमिए णं से णामे खइए खओवसमिए पारिणामिअनिप्फण्णे 10 / खयनिप्फण्णे 1, अत्थि णामे उदइए उवसमिए खओवसम- | (सू०१२७) निप्फण्णे२, अस्थि णाामे उदइए उवसमिए पारिणा-मिअनिप्फण्णे एतदप्यौदयिकौपशमिकक्षायिकक्षायोपशमिकपारिणामिक भाव३, अत्थि णामे उदइए खइए खओवसमनिप्फण्णे 4, अस्थि णामे पशकं भूम्यादावालिख्य तत आद्यभावद्वयस्योपरितनभ वत्रयेण सह उदइए खइए पारिणामिअनिप्फण्णे 5, अस्थि णामे उदइए चारणाया लब्धास्त्रय इत्यादिक्रमेण दशाऽपि भावनीयाः, एतानेव खओवसमिए पारिणामिअनिष्फण्णे 6, अत्थिणामे उवसमिए खइए स्वरूपतो विवरीषुराह- 'कयरे से णामे उदइए उवसमिए' इत्यादि, खओवसमनिप्फण्णे 7, अस्थि णामे उवसमिए खइए व्याख्या पूर्वानुसारतोऽत्रापि कर्त्तव्या,नवरमत्रौदयिक क्षायिकपारिणापारिणामिअनिप्फण्णे 8, अस्थि णामे उवसमिए खओवसमिए मिकभावत्रयनिष्पन्नः पञ्चमो भङ्गः केवलिनः सम्भवति, तथाहिपरिणामिअनिप्फण्णे 6, अत्थि णामे खइए खओवसमिए औदयिकी मनुष्यगतिः, क्षायिकाणि ज्ञानदर्शनचारित्राणि, पारिणामिक पारिणामिअनिप्फणे 10 / कयरे से णामे उदइए उपसमिए तु जीवत्वमित्येते त्रयो भावास्तस्य भवन्ति, औपशमिकरित्वह नास्ति, मोहनीयाश्रयत्वेन तस्योक्तत्वात्, मोहनीयस्य च केवलिन्यसम्भवात्। खयनिष्फण्णे? उदइएत्तिमणुस्सेउवसंता कसाया खइअंसम्मत्तं। एसणं से णामे उदइए उवसमिए खयनिप्फण्णे१, कयरे से णामे तथा क्षायोपशमिकोऽप्यत्रापास्य एव क्षायोपशमिकानामिन्द्रियादि पदार्थानामस्यासम्भवाद्, 'अतीन्द्रियाः केवलिन' इत्यादिवचनात्, उदइए उपसमिए खओवसमियनिष्फण्णे? उदइए त्ति मणुस्से तस्मात् पारिशेष्याद्यथोक्तभावत्रयनिष्पन्नः पञ्चमो भगः केवलिनः उवसंता कसायाखओवसमिआइंइंदिआई, एसणं से णामे उदइए सम्भवति, षष्ठस्त्वौदयिकक्षायोपशमिक पारिणामिकभावनिष्पन्नो उवसमिए खओवसमनिप्फण्णे 2, कयरे से णामे उदइए उवसमिए नारकादिगतिचतुष्टयेऽपि संभवति। तथाहि-औदयिकी अन्यतरा गतिः, पारिणामिअनिप्फपणे? उदइए त्ति मणुस्से उवसंता कसाया क्षायोपशमिकानीन्द्रियाणि, पारिणामिकं जीवत्वमित्येवमेतद्भाववयं पारिणामिए जीवे , एस णं से णामे उदइए उपसमिए सर्वास्वपि गतिषु जीवानां प्राप्यत इति, शेषास्त्वष्टौ त्रिकयोगाः प्ररूपणापारिणामिअनिप्फण्णे 3, कयरे से णामे उदइए खइए मात्रम्, क्वाप्यसम्भवादिति भावनीयम्। खओवसमनिप्फण्णे? उदइए ति मणुस्से खइअं समत्तं चतुष्कसंयोगान्निर्दिशन्नाहखओवसमिआइं इंदिआई / एस णं से णामे उदइए खइए तत्थ णं जे ते पंच चउकसंजोगा ते णं इमे-अस्थि णामे खओवसमनिप्फण्णे 4, कयरे से णामे उदइए खइए पारिणामि उदइए उवसमिए खइए खओवसमनिप्फण्णे 1 अत्थि णामे अनिप्फण्णे? उदइएत्ति मगुस्से खइअंसम्मत्तं पारिणामिएजीवे, उदइए उवसमिए खइए पारिणामिअनिप्फण्णे 2 अस्थि णामे एसणं सेनामे उदइएखइएपारिणामिअनिप्फण्णे 5, कयरे से णामे उदइए उपसमिए खओवसमिए पारिणामिअनिप्फण्णे 3 अस्थि उदइए खओविसमिए पारिणामिअनिप्फण्णे? उदइए त्ति मणुस्से णामे उदइए खइए खओवसमिए पारिणामिअनिप्फण्णे४ अत्थि खओवसमिआईइंदिआई पारिणामिए जीवे, एसणं से णामे उदइए णामे उवसमिए खइए खओवसमिए पारिणामिअनिप्फण्णे 5 / खओवसमिए पारिणामिअनिप्फण्णे 6, कयरे से णामे उवसमिए कयरे से णामे उदइए उवसमिए खइए खओवसमनिप्फण्णे ? खइए खओवसमनिप्फण्णे? उवसंता कसाया खइ सम्मत्तं उदइए त्ति मणुस्से उवसंता कसाया खइयं सम्मत्तं खओवखओवसमिआई इंदिआई, एस णं से णामे उवसमिए खइए समिआई इंदिआई। एस णं से णामे उदइए उवसमिए खइए खओवसमनिप्फण्णे 7, कयरे से णामे उवसमिए खइए खओवस-मनिप्फण्णे 1, कयरे से नामे उदइए उवसमिए खइए पारिणामिअनिप्फण्णे? उवसंता कसाया खइअंसम्मत्तं पारिणामिए पारिणामि-अनिष्फण्णे? उदइए त्ति मणुस्से उवसंता कसाया जीवे, एस णं से णामे उवसमिए खइए पारिणामिअनिष्फण्णे 8, खइ सम्मत्तं पारिणामिए जीवे / एस णं से नामे उदइए कयरे से णामे उवसमिए खओवसमिए पारिणामिअनिप्फण्णे? उवसमिए खइए पारिणामि-अनिफण्णे 2, कयरे से णामे उवसंता कसाया खओवसमिआइं इंदिआइंपारिणामिए जीवे, एस उदइए उवसमिए खओवस-मिए पारिणामिअणिफण्णे? णं से णामे उवसमिए खओवसमिए पारिणामिअनिप्फण्णे , कयरे उदइए त्ति मणुस्से उवसंता कसाया खओवसमिआइं इंदिआई से णामे खइए खओवसमिए पारिणामिअनिप्फण्णे? खइ | पारिणामिए जीवे / एस णं से णामे उदइए उवसमिए ख
SR No.016149
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1276
LanguageHindi
ClassificationDictionary
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