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________________ सुरिंद 1001 - अमिधानराजेन्द्रः - भाग 7 सुरिन्ददत्त सुरिंद-पुं०(सुरेन्द्र) सुष्ठुराजन्ते इति सुरास्तेषामिन्द्रः-प्रभुः सुरेन्द्रः, सुराणां देवानां वा इन्द्रः सुरेन्द्रः / शक्रे, उपा०२ अ०। ति० स०। द्वात्रिंशत् सुरेन्द्राः। प्रश्न०५ संव०।द्वार। सुरिन्ददत्त-पुं०(सुरेन्द्रदत्त) इन्द्रपुरनगरराजस्येन्द्रदत्तस्य स्वामात्यसुताकुक्षिसंभूते पुत्रे, आ० म०१ अ०। मथुराजाताया निवृत्ते स्वयंवरवरके, ती०८ कल्प। दयायां सुरेन्द्रदत्तचरितनिदर्शनमाह"पयडियदइक्कधम्म, दंसियजीववहदारुणविवागं। किं पि जसोहरचरियं, भणामि संवेगसभरियं / / 1 / अत्थि पुरी उज्जेणी, जत्थ जणो विमलसीलदुल्ललिओ। कलिओ विहवभरेणं, न कयावि निएइ परदारं / / 2 / / अमरू व्व अमरचंदो, सुहासओ तत्थ आसि नरनाहो। वरलावन्नमणहरा, जसोहरा तस्स पाणपिया / / 3 / / ताण कयविबुहतोसो, सुरिंददत्तो सुओ सुरिंदुव्व। परमेस गुत्तभेई, ने वय कइयावि वइरकरो॥४॥ नियसंगमउज्जीविय, मयणासारयससंकसमवयणा। तस्स य नीलुप्पलदल-नयणा नयणावली भजा ||5|| अन्नदिणे रजभर, पुत्ते संकमिय अमरचंदनिवो। पडिवन्नो कयउन्नो, समणतं असम सुमणत्तं // 6 // महिहरछुज्झंतकरो, पयडियकमलो य हणियरिउतिमिरो। रविरिव सुरिंददत्तो, वि कुणइ सव्वक्क मइसुहियं // 7 // अह अन्नदिणे रन्नो, सारसियानामियाऍ दासीए। पलियच्छलेण कहिओ, समागओ धम्मदूओ ति / / 8 / / सत्तो चिंतेइ निवो, अथिरत्तं अहह सव्वभावाणं। ही तुच्छया भवस्स य, ह हाचलत्तं तरुणयाएEll दिवसनिया घडिमालं, आउयसलिलं जणस्स वित्तूणं। चंदाइचबइल्ला, कालरहट्ठ भमाडति // 10|| जीवियजलंमि खीणे, सरीरसस्संमि परिसुसंतंमि। को विहु नत्थि उव==, तहवि जणो पावमायरइ // 11 // तो किं इमीइ मज्झ, रगततरंगभंगुरतराए। निवलच्छीइ सुतुच्छा-इनरयपुरसरलसरणीए॥१२॥ गुणहरकुमरं गुणरय-ण कुलहरं ठावि*ण नियरज्जे। पुष्वपुरिसाणुचिन्नं, सामन्नं अणुवरामि त्ति / / 13 / / तो सिट्ठो दइयाए, नियमिप्पाओ निवेण सा आह। जंभे रोयइ तं कुल-सुनाह न करेमि विग्घमहं॥१४| किंतु अहं पिगहिस्सं,सहेव पव्वज्जमज उत्तेण। चिट्ठइ पच्छा जुण्हा, फुडमुड्वइणो विणा कह णु॥१५॥ तो चिंतइ नरनाहो, अहो अहो मज्झ उवरि देवीए। अइनिविडो पडिबंधो, अहो अहो विरहभीरत्तं / / 16 / / इत्थंतरंमि मिउगहि-र सद्दओनमिय दाहिणकरेण। कालनिवेएण निउए, पढियामिणं तन्निउत्तेणं / / 17 / / ल« पसिद्धमुदयं, पयावपसरं कमेण वढित्तो। उज्जोवित्ता भुवणं, संपइ अत्थमइ दिणनाहो|१८|| तं सोउ चिंतइ निवो, हहा इहं नत्थि कोइ निच्चसुही। इत्तिय दसाउ विवसो, पइदिवसं सहइ सूरो वि।।१६।। संझाकिचं तो का-उठाउ मत्थाण मंडवंमि खणं। नयणावलीइ समलं-कियंमि पत्तो रइगिहमि // 20 // संसारसरूवनिरू-बणिकपवणस्स निहुयचित्तस्स। विसयविमुहस्स रन्नो, दूरं ओसरियनिहस्स॥२१॥ सुत्तो निवु त्ति उक्कड, मयणा नयणावली समुढेइ। रुग्घाडिउं कवाडे, विणिग्गया वासगेहाओ।।२२।। चिंतइ निवो अवलं किं, एसा निग्गय त्ति हुं नायं / महभाविविरहभीरू, नूणं मरिहि त्ति वारेमि // 23 / / तयणु अणुपुहिमेई, इजाइ जा नरवई गहियआसी। पासायपालओ ता-व खुजओ तीइ उट्ठविओ॥२४।। अह ते दोवि पमत्ते, करालकरवालघायपायाले। जा खिविही कोववसा, निवई इय चिंतए ताव // 25 // उब्भडरिउभडसंघडिय-करडिघडकरडदलणदुल्ललिओ। वियलियसीलेसु इमे-सु एस कह वहउ मइ खग्गो॥२६॥ अहव किमिमीइ चिंता-इ पत्थुयत्थस्स अणणुरूवाए। इयवलिय विलियचित्तो, सिज्जाठाणं निवो पत्तो // 27 // चिंतइ सयणिज्जगओ, अहो महेला अनामिया वाही। विसकदली अभूमा, विसूइया भोयणेण विणा // 28 // वग्घी अकंपरा तह, अणग्गि चुडली अवेयणा मुच्छा। निवडं निवडमलोहं, अकारणो तइय मधु त्ति // 26 / / इयजा चिंतेइ इमो, ता देवी तत्थ आगया सणियं / गंभीरयाइ नहु किं-पिजंपियं नरवरेण तया // 30 // इत्तो समाहयाई, पभायतूराइ किंकरगणेण। कालमिवेयगपुरिसे-ण गहियसद्देण इय पढियं // 31 // एसा वचइ रयणी, वि मुक्कगुरुतिमिरचिहुरपडभारा। दाउंजलंजलिं पिव, परलोगगयस्स सूरस्स॥३२॥ तो काउगोसकिच्चं, अत्थाणसहाइ आगओ राया। पणओय मंतिसाम-तसिद्विसत्थाहपमुहेहिं।।३३|| कहिओ नियभिप्पाओ, निवेण विमलमइमाइमतीस। भालयलमिलियकरको-रगेहिं तेहिं पि विन्नवियं // 34 // देव ! न अज्ज वि जायइ, कवयहरो जाव गुणहरो कुमरो। ताव सयं चिय सामी, एसाउ पयाउ पालेउ॥३५|| भणइ निवो मंतिवए, किं अम्ह कुले समागए पलिए। कोवि ठिओ गिहवासे, भणंति ते देव ! नहु एवं // 36 / / इय सह मंतीहिँ निवो, विविहालावेति तु दिणं गमिउं। सुहसुत्तो रयणीए, विरामसमए नियइ सुमिणं // 37 / / जह सत्तभूमिमंदिर-उवरिं सीहासणंमि उवविट्ठो / पडिकूलभासिणीए, अंबाए पाडिओ हिट्ठा // 3 // निवडतो पत्तो हं, भूमीओ सत्त तह य अंबावि। उट्ठिय कह पि मंदिर-गिरिसिहरं पुणवि आरूढो॥३६।। अह गयनिदो राया, चिंतइ आवायदारुणविवागो। परिणामसुहो सुमिणो, एसो किं भावि नहु जाणे // 40|| अत्रान्तरे पठितं प्राभातिककालनिवेदकेनपतितोऽपि दैवयोगात्, पुनरुत्पातं क्षणेन किल लभते। कन्दुक इव सद्दत्तो, न भवति चिरकालविनिपातः // 41 // अह कयपयभायकिच्यो, ता अत्थाणमि उवविसइ राया। बहुपरियणपरियरिया,जसोहराता तहिं पत्ता॥४२॥ अब्भुट्ठिया निवेणं, निवेसिया आसणे अइमहंते। पुच्छइवच्छ! कुसलं, सभणइ अंबापसाएण॥४३॥ चिंतइय निवों मज्झं, वयगहणं कहणु मन्निही अंबा। अइबंधुर पडिबंधा, हुं अत्थि इमो इहोबाओ॥४४॥
SR No.016149
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1276
LanguageHindi
ClassificationDictionary
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