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________________ रओहरण 475 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 6 रंतिदेव गाहा तम्हा ताणि णिवण्णो णिसण्णो वा दाहिणपासे अधोदसं करेज्ज। मुहपुत्ती सेजाए, एसेव गमो उ होइ णायव्वो। ___गाहावोसट्ठमवोसट्टे, सुचे अवरम्मिय पदम्मि॥२८॥ बितियपदमणप्पज्झे, करेल अवि को विनेव अप्पज्झे। मुहपोत्तीए खिसेजा एसेव गमो।वोसढेसु पुव्वावरएसु। ओवास असति मूसग, तेणगमादीसु, जाणमवि॥२९॥ सूत्रम् नि० चू०५ उ० पं०व०। जे भिक्खू रयहरणं अहिटेइ अहिटुंतं वा साइजइ // 7 // रजोहरण-प्रयोजनमाहअहिट्ठाणं णाम सणिसेज्जवेढिए चेव उवविसणं एवं अहिट्ठाणं मासलहुँ, आयाणे निक्खेवे, ठाणनिसीअणतुअदृसंकोए। आणादिया य दोसा। पुट्विं पमजणवा, लिंगट्ठा चेव रयहरणं // 15 // गाहा आदाने-ग्रहणे कस्यचित् निक्षेपे मोक्षे स्थाननिषीदनत्वग्वर्त्तनतिण्हं तु विकप्पाणं, अणंतराएण जो अधिढेजा। सङ्कोचनेषु पूर्वम्-आदौ प्रमार्जनार्थ भूम्यादेर्लिङ्गार्थ चैव साधो रजोहरणं पाउंछणगं भिक्खू, सो पावति आणमादीणि // 28 // भवति इति गाथार्थः। पं०५३ द्वार। दोहि वि णिसिज्जसोहिं, एक्केण व बितियततियबादेहि। अविहीए नियंसणुत्तरी परं पहरणदंडगं वा परिभुजे चउत्थं अधवा मग्गों एको, दोहि विपासेहि दोण्णि भवे // 290| सहसा रयहरणं खंधे निक्खवइ उवट्ठावणं, अंगं वा उवंगं वा इमे तिण्णि विकप्पा दोहि वि उवविसतिएको विकप्पो, एगेण वा बितिओ संवाहावेजाखवणं रयहरणं ! वामुस्संगे धरेइचउत्थं / महा० विकप्पो, दोसु विकप्पेसुपण्हियासुअवक्कमतिततिओ विकप्पो। अहवा- १चू०। मांगतो ति पिट्ठतो अक्कमति एगो विगप्पो, दोसु पासेसु पुतोरूएसु ऋतुबद्धे रजोहरणं ग्राह्य वर्षासु पादलेखनिका पं०भा० 1 कल्प०) अक्कमति / एते दो विगप्पा, एते वा तिन्नि। रंक-पुं०(रङ्क) कृपणे, स्था०५ ठा०३ उ०। गाहा रंकय-पुं०र(क) बलभीपुरवास्तव्ये श्रेष्ठिनि, यो रत्नजटितकङ्कणबितियपदमणप्पज्झे, अधिठेजा कुट्टिते व अप्पज्झे। लुब्धेन बलभीपुरराजेन शिलादित्येन पराभूतःगजनीपतिं म्लेक्षराजजाणते वाऽवि पुणो, मूसगतेणादिमादीसुं // 261|| मानीय तद्राजविनाशाय निमित्तमभूत्। ती०१६ कल्प। मूसगेण वा कुट्टिजाति, तेणगेण वा हरिजति, आदिग्गहणातो चतुरूवाणि | खोलिर-त्रि०(दोलक) उत्क्षेपके "रंखोलिरंपट्टोलिरं" पाइ० ना० 186 वा हरेज्जा पडिणीओ वा तेण अधिटेजा। गाथा। सूत्रम् रंग-न०(रङ्ग) नाट्यस्थाने, व्य०८ उ०। 'रायाए रंगोवजीवियाए' आ० जे भिक्खू रयहरणं उसीसमूले ठवइठवंतं वा साइजइ // 76|| म०१ अ०। मल्लयुद्धमण्डपे, कल्प०१ अधि०५ क्षण / रङ्गमण्डपे, सीसस्स समीवं-उवसीसं वकारलोपात्, स्थानयाची मूलशब्दः। "रंगो पिच्छाभूमी" पाइ० ना० 272 गाथा / रक्ताव-यवच्छविविसीसस्स वा उक्खंभणं उसीसट्ठवणं णिक्खेवो सुत्तपडिसंधितं सेवमाणे, चित्ररूपे, दश०२ अास्था बृ०। त्रपुणि, दे०ना०७ वर्ग 1 गाथा। अन्जेतिपावति; मासियं, परिहरणं परिहारो चिट्ठति जम्मितं ठाणं लहु- रंगण-पुं०(रङ्गण) रङ्गणं रागस्तद्योगाद्रङ्गणः जीवे, भ०२० श०२उ०। गमिति उवघातियं। रंज-धा०(रञ्ज) रागे, / रजे रावः ||8446 इत्यनेन रजेय॑न्तस्य सूत्रम् रावादेशो वा ! रावेइ! प्रा०४ पाद। जे मिक्खू रयहरणं तुयट्टेइ तुयतं वा साइजइ / / 8 / / रंजण-न०(रञ्जन) रागे, ज्ञा०१ श्रु०५ अाघटे, देना०७वर्ग 3 गाथा / गाहा कुण्डमिति केचित् / दे०ना०७ वर्ग 3 गाथा। पाइ० ना०२२२ गाथा। जे भिक्खू तुयट्टते, रयहरणं सीसए ठवेजाहि। रंडक्क-पुं०(राण्डक्य) रण्डकय॑पत्ये, राण्डक्यो नाम भोजः कामात् पुरतो व मग्गतो वा, गमगपासे णिसण्णो वा // 26 // ब्राह्मणकन्यामभिगम्यमानः विनष्टः। ध०१ अधिका त्वग्वर्तनवट्टणं शयनमित्यर्थः, वामपासे दाहिणपासे वा उवरि हत्थदसं | रंडा-स्त्री०(रण्डा) मूषिकपण्याम, वाच०। विधवायाम, महा०२ चू० पादमूले वा ठवेति, ण केवलं णिवण्णो णिसण्णो वा पुरओ मम्गओ वा / रंडिया-स्त्री०(रण्डिका) व्यभिचारिण्यां स्त्रियाम्, तं०। वामपासे ठवेति। रंतुअं-(देशी) रजौ, देवना०७ वर्ग 3 गाथा। गाहा रंतिदेव-पुं०(रन्तिदेव) चन्द्रवंशे स्वनामख्याते नृषे, "ध्योमचुम्बिशिखरं सो आणाअणवत्थं, मिच्छत्तविराहणं तहा दुविहं। मनोहरं रन्तिदेवतटिनीतटस्थितम् / अद्ध चैत्यमवलोक्य यात्रिकाः, पावति जम्हा तेणं, दोहिण पासम्मि तं कुल्ला // 26 // शैत्यमाशु ददति स्वचक्षुषोः॥१॥" ती० 43 कल्प।
SR No.016148
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1492
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size
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