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________________ वीर 1381 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 6 वीर दिहि अप्पाइजइ, जहासंभव सेसाणि वि भासियव्वाणि, ईसिं पब्भारगओईसि ओणयकाओ। सक्को अ देवराया, सभागओ भणइ हरिसिओ वयणं। तिण्णि वि लोगसमत्था, जिणवीरमणं न चालेउं॥४६८|| इओ य सक्को देवराया, भगवंत ओहिणा आभोएत्ता सभाए सुहम्माए अस्थाणीवरगओ हरिसिओ सामिस्स नमोकारं काऊण भणति-अहो भगवं तेलोकं अभिभूअ ठिओ, न सका केणइ देवेण वा दाणवेण वा चालेउ। सोहम्मकप्पवासी, देवो सक्कस्स सो अमरिसेणं। सामाणिअ संगमओ, वेइ सुरिंदं पडिनिविट्ठो||४६६ll तेल्लोकं असमत्थं, ति पेहए तस्स चालणं काउं। अजेव पासह इमं, मम वंसग भट्ठजोगतवं / / 500 / अह आगमो तुरंतो, देवो सक्कस्स सो अमरिसेणं / कासी य ह उवसग्गं, मिच्छद्दिट्ठी पडिनिविट्ठो॥५०१।। इओ य संगमओ नाम सोहम्मकप्पवासी देवो सक्कसामाणिओ अभवसिद्धीओ, सो भणति-देवराया अहो रागेण उल्लवेइ. को माणुसो देवेण न चालिजइ ? अह चालेमि, ताहे सक्को तं न वारेइ, मा जाणिहिइपरनिस्साए भगवं तवोकम्मं करेइ, एवं सो आगओ। धूली पिवीलिआओ, उइंसा चेव तह य उण्होला। बिछुय नउला सप्पा, य मूसगा चेव अट्ठमगा / / 502 / / हत्थी हस्थिणिआओ, पिसायए घोररूववग्धो य। थेरो थेरीइ सुओ, आगच्छइ पक्कणो य तहा।५०३॥ खरवायकलंकलिया, कालचक्कं तहेव य। पाभाइयउवसग्गे, वीसइमो होइ अणुलोमो / / 504|| सामाणिअदेवड्डि, देवो दावेइ सो विमाणगओ। भणइ य वरेह महरिसि!, निप्फत्ती सग्गमोक्खाणं // 50 // उवहयमइविण्णणो, ताहे वीरं बहुप्प साहेउं। ओहीए निज्झाइ, झायइ छजीवहियमेव / / 506 // ताहे सामिस्स उवरि धूलिवरिसं वरिसइ, जाहे अच्छीणि कण्णा य सव्वसोत्ताणि पूरियाणि, निरुस्सासो जाओ, तेण सामी तिलतुसतिभागमित्तं पि झाणाओ न चलइ, ताहे संतोतंतो साहरित्ता ताहे कीडिआओ विउव्वइ वज्जतुंडाओ, ताओ समंतओ विलग्गाओ खायंति, अण्णातो सो तेहिं अन्तोसरीरगं अणुपविसित्ता अण्णेणं सोएणं अतिति अण्णेण णिति, चालिणी जारिसो कआ, तह वि भगवं न चालिओ, ताहे उसे वजतुंडे विउव्वइ, ते तं उद्दसा वज्जतुंडा खाइंति, जे एगेण पहारेण लोहियं नीणिति, जाहे तह वि न सका ताहे उण्होला विउव्वति, उण्होला तेल्लपाइआओ. ताओ तिक्खेहि तुडेहिं अतीव डसंति, जहाजहा उवसगं करेइ तहातहा सामी अतीव झाणेण अप्पाणं भावेइ, जाहे तेहिं न सकिओताहे विच्छुए | विउव्वति, ताहे खायंति जाहे न सका ताहे नउले विउज्वइ, ते तिक्खाहि दाढाहिं डरांति, खंडखंडाइं च अवणेति, पच्छा सप्पे विसरोसपुण्णे उग्मविसे डाहजरकारए, तहि विन राक्का, मूसए विउव्वइ, ते खंडाणि अवणेत्ता तत्थेव वोसिरति मुत्तपुरीस, ततो अतुला वेयणा भवति। जाहे न सक्का ताहे हस्थिरूवं विउव्वति, ते ण हत्थिरूवेण सुडाए गहाय सत्तऽहताले आगासं उक्खिवित्ता पच्छा दंतमुसलेहि पडिच्छति, पुणो भूमीए विंधति, चलणतलेहिं मलइ, जाहे न सको ताहे हस्थिणियारूव विउव्वति, साहत्थिणिया सुंडाएहिं दंतेहिं विंधइ फालेइय पच्छा काइएण सिंचइ, ताहे चणणेहि मलेइ जाहे न सका ताहे पिसायरूवं विउव्वति, जहा कामदेवे, तेण उवसग करेइ। जाहे न सका ताहे वग्घरूवं विउव्वति, सो दाहिं नखेहि य फालेइ, खारकाइएण सिंचति, जाहे न सका ताहे सिद्धत्थरायरूवं विउव्वति, सो कट्ठाणि कुललाणि विलवइएहि पुत्त ! मा मा उज्झाहि, एवमादि विभासा, ततो तिसलाए विभासा, ततो सूर्य, किह ? सो ततो खंधावार विउव्वति, सो परिपेरंतेसु आवासिओ, तत्थ सूतो पत्थरे अलभंतो दोण्ह वि पायाण मज्झे अग्गिं जालेत्ता पायाण उवरि उक्खलियं काउं पयइओ, जाहे एएण वि न सक्का ततो पक्कण विउव्वति, सो ताणि पंजराणि बाहुसुगलए कण्णेसुय ओलएइ, तेसउणगा तंतुंडेहिं खायति विधति सण्णं काइयं च वोसिरति, ताहे खरवायं विउब्वेइ, जेण सक्का मंदर पि चालेउ, न पुण सामी विचलइ, तेण उप्पाडेत्ता उप्पाडेत्ता पाडेइ, पच्छा कलंकलियवाय विउव्वइ, जेण जहा चक्काइडगो तहा भमाडिजइ, नंदिआवत्तो वा, जाहे एवं न सक्का ताहे कालचक्क विउव्वति, तं घेत्तूणं उढुंगगणतलं गओ, एत्ताहे मारेमि त्ति मुएइ वजसंनिभ ज मंदरं पिचूरेज्जा, तेण पहारेण भगवताव णिवुड्डो जाव अग्गनहा हत्थाण, जाहे न सक्का तेण विताहे चिंतेति-न सक्को एस मारेउं, अणुलोमे करेमि, ताहे पभायं विउव्वइ, लोगो सव्वो चंकमिउं पवत्तो भणति-देवजगा ! अच्छसि अज वि ? भयवं पि नाणेण जाणइ जहा न ताव पभाइ जाव सभावओपभायंति, एस वीसइमो। अन्ने भणन्ति तुट्ठोमि तुज्झ भगवं! भण किं देमि ? सगं वा ते सरीरं नेमि मोक्खं वा नेमि, तण्णि वि लोए तुज्झ पादेहिं पाडेनि? जाहे न तीरइ ताहे सुट्ट्यरं पडिनिवेसं गओ, कल्लं काहिति, पुणो वि अणुक डइ। वालुयपंथे तणा, माउलपारणग तत्थ काणच्छी। तत्तो सुभोम अंजलि, सुच्छित्ताए य विडरूवं / / 507 / / ततो सामी वालुगा नाम गामो तं पहाविओ, एत्थंरा पंच चोरसए विउव्वति, वालुगं च जत्थ खुप्पइ, पच्छा तेहि माउलोत्ति वाहिओ पव्ययगुरुतरेहिं सागयं च वज्जसरीरा दिति जहिं पव्वयावि फुट्टिना, ताहे वालुयं गओ, तत्थ सामी भिक्खं पहिडिओ, तत्थावरेतुं भगवतो रूवं काणच्छि अविरझ्याओ गडेइ, जाओ तत्थ तरुणीओताओ हम्मति, ताहे निग्गतो ! भगवं सुभोमं वचइ. तत्थ वि अतियओ भिक्खायरियाए, तत्थ वि आवरेत्ता महिलाणं अंजलिं करेइ, पच्छा तेहिं पिट्टिजति, ताहे भगवं णीति, पच्छा सुच्छेत्ता नाम गामो तर्हि वचइ जाहे अतिगतो सामी भिक्खाए
SR No.016148
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1492
LanguageHindi
ClassificationDictionary
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