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________________ पसेणइय 814 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 5 पहल्ल पापा पसेणइय पुं०(प्रसेनजित्) अवसर्पिणीजातानां पश्चादशानां पञ्चमे पहजणो पवणो। 'पाइ०ना०२५ गाथा। स०। कल्पा कुलकरे, स्था० ७ठा० / जं० / प्रश्न०। कल्प०! आ०म०। प्रति०। पहकर पु०(प्रहकर) समूहे भ०६श०३३उ०। अन्तला निकरे, ज्ञा०१श्रु० द्वारवत्यां नगमिन्धकवृष्णेर्धारण्यां जाते स्वनामख्याते पुत्रे, स चारिष्ट- १अ० संघाते, रा०ा विपा०। जं०। औ० जी०। नेमेरन्तिके प्रव्रज्य शत्रुञ्जयेऽनशनेन मृतस्सिद्ध इत्यन्तकृदशाना प्रथम पहट्ट त्रि०(प्रहृष्ट) प्रमुदिते, तं०। प्रहसितवदने समुद्भूतरोमहर्षे, बृ० 120 वर्गेऽष्ट मे ऽध्ययने सूचितम् / अन्त० १श्रु० १वर्ग 10 स्था २प्रक० / दे०ना राजनगरमहाराजे श्रेणिकमहाराजपितरि, नं० "आसीत्पुरे राजगृहे, पहट्ठभमरगण पुं०(प्रहृष्टभ्रमरगण) प्रमुदितमधुकरनिकरे, प्रश्न० 4 महाराजः प्रसेनजित् / श्रेणिकस्तस्य पुत्रोऽभूत, राजलक्षणलक्षितः आश्र० द्वार। जी०। भ० // 1 // " आ०क०१अ० आवळा येन राजगृहनगर निवासितम्। आव० पहण (देशी) कुले, दे०ना०६ वर्ग 5 गाथा। 4 अ०। आ०क०। आ००। पहणी (देशी) संमुखाऽऽगतनिरोधे, देना०६ वर्ग 5 गाथा। पसेय पु०(प्रसेक) अधिकनिष्ठीवनप्रवृत्तौ, "प्रसेकः सदन भ्रम'' इत्येतानि पहद (देशी) सदा दृष्ट, देवना०६ वर्ग 10 गाथा। अजीर्णकार्याणि / ध० १अधि०। पहम्म धा०(प्रहम्म) 'हम्म' गतौ / प्रघाते, 'पहम्मइ' / प्रहम्मते / प्रा० पसेयग पुं०(प्रसेचक) कोत्थलके, दृती, स च ऊर्द्धमपाटितेनापनीत ४पाद। सुरखाते, देवना० ६वर्ग 11 गाथा। मस्तकेन निकर्षितचन्तिर्वतिसर्वास्थ्यादिकचवरेणापरचर्ममयस्थि पहय त्रि०(प्रहत) आच्छोटिते, जं० २वक्ष० / क्षणे, "आयरिएहिं पहओ गलकस्थगितापानच्छिद्रेण संकीर्णमुखीकृतग्रीवाऽन्तर्विवरेणाजाप मग्गो।" बृ० १उ०१प्रका श्वोरन्यतरस्य शरीरेण निष्पन्नश्चर्तमयः प्रसेवकः कोत्थलकः। प्रायो पहयर (देशी) निकरे, देखना० ६वर्ग 15 गाथा। "उप्पको ओप्पीलो, यवनैर्जलभाण्डतया व्यवहार्यते। पिं०। उक्केरो पहयरो गणो पयरो / / 18 / / ओहो निवहो संघो, संघाओ संहरो पसेवअ (देशी) ब्रह्मणि, देना०६ वर्ग २२गाथा / पाइ० ना० / स०। निअरो। संदोहो निउरंबो, भरो निहाओ समूहनामाई।।१६। पाइ०ना० कल्पा 18-16 गाथा। पस्ट पुं०(पट्ट) "पृष्ठयोः स्टः"||८४१२६०।। इति द्विरुक्तस्य दृस्य पहर पुं०(प्रहर) अहोरात्राष्टमे भागे, 'पढमपहराइकाला, जंबूदीवम्मि सकाराऽऽक्रान्तः स्टः / वस्त्रे, प्रा० ४पाद। दोसु पासेसु।' मण्डला पस्स त्रि०(दृश्य) दर्शनयोग्ये, स्था०। *प्रहार पुं० "ध वृद्धिर्वा / 18 / 1 / 68|| इति दीर्घाऽऽकारस्य हस्वः। चउण्हमेगसरीरं नो पस्सं भवइ / तं जहा-पुढवीकाइया-णं, प्रहरणैति: प्रा०१पाद। आउकाइयाणं तेउकाइयाणं वणस्सइकाइयाणं। पहरण न० (प्रहरण) प्रहारप्रवृत्ते, प्रश्न० ३आश्र० द्वार। असिकुन्ताऽऽदिके (नो पस्सं ति) चक्षुषा नो दृश्यमिति सूक्ष्मत्वात्। वचिन्न सुषस्सं तीति आयुधे, आचा०१श्रु०१अ०५ उ०। आ०म०। नि०चू०। औ० जी०। पाटः / तत्र न सुखदृश्यं न चक्षुषा प्रत्यक्षदृश्यमनुमानाऽऽदिभिस्तु स्था०। आ०क० / प्रश्र०। रा०ा उत्तका ज्ञा० "जामो पहरो।" पाइ० दृश्यमपीत्यर्थः / बादरवायूनां तथा सूक्ष्माणां पञ्चानामपि यदेकमनेक ना०२६८ गाथा। "पहरणाभरणभरियजुद्धसज्ज।" प्रहरणानामायुधवाऽदृश्यमिति चतुर्णामित्युक्तं, वनस्पतय इति साधारणा एव ग्राह्याः, कवचानां भृतं यद्युद्धसज्जं च संग्रामगुणं च यत्तत्तथा। औ०। भावेल्युट्। प्रत्येकशरीरस्यैकस्यापि दृश्यत्वादिति। स्था० 4 ठा०३उ०। प्रहारदाने, ज्ञा०१श्रु०२०। “आउहं अत्थं च पहरणं होइ।" पाइ० पस्संत त्रि०(पश्यत्) पर्यालोचयति, सूत्र०१श्रु० 3104 उ०। ना० 121 गाथा। पस्सयवत्तण न०(प्रश्रवत्व) विनयनम्रतायाम, सूत्र० २श्रु०१अ०। पहरणकोस पुं०(प्रहरणकोश) प्रहरणस्थाने, रा०। स्था०। स०) पह पुं०(पथ) मार्गे विश०। अनु० / स्था०। प्रश्न०रा०ा पथिन्नितिशब्द- 1 पहराइया स्त्री०(प्रहरादिका) ब्राम्या लिपे दे, प्रज्ञा०१पद। पर्यायस्य पथशब्दस्यादन्तस्य दर्शनात।स्या०। प्रज्ञा० आ०मा मग्गो पहराय पुं०(प्रभाराज) सप्तमषष्ठवासुदेवप्रतिशत्रौ, तिला आव०ा तीन पंथो सरणी, अद्धाणं वत्तिणी पहो पयवी।' पाइ० ना०५२ गाथा। प्रव०। *पथिन् पुं० मार्गे-'पथिपृथिवीप्रतिश्रुन्मूपिकहरिद्राविभीत पहरिस पुं०(प्रहर्ष) प्रहर्षणं प्रहर्षः / स्वजनमेलापकाऽऽदी संघमेलापकेष्वत्" ||18 // इति इकारस्याकारः। प्रा०१पाद। सामान्य- काऽऽदौ वा महती पूजा भविष्यतीति प्रमोदे, आतु"आमोओपहरिसो मार्ग, कल्प० १अधि० 5 क्षण। तोसो।" पाइना०१६८ गाथा। पहएल्ल (देशी) पणके, दे०ना०६वर्ग 18 गाथा। पहलिअ (देशी) विषमे, दे०ना०६ वर्ग 15 गाथा। पहंकरा स्त्री०(प्रभङ्करा) स्वनामख्यातायां सूर्यागमहिष्याम्. ज्ञा०२श्रु० पहल धा०(चूर्ण) भ्रमणे, "घूर्णो घुल-घोल-घुम्म-पहल्लाः ८वर्ग 4 अग / 1814 / 117 // " इति घूर्णधातोः पहल्लाऽऽदेशः। 'पहलइ।' घूर्णते। पहंजण पुं०(प्रभञ्जन) पवने, “अणिलो गंधवहो मा-रुओ समीरो / प्रा० ४पाद।
SR No.016147
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1636
LanguageHindi
ClassificationDictionary
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