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________________ परिणामिया 620 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 5 परिणिट्ठिय हियमेत्तेण नवणीएण पालि बंधामि एत्थ वि ता मे होलं वाएहि। अन्नो पारिणामिगी 16 // "खग्गी ति" सावयपुत्तो जोव्वणबलुम्मत्तो धम्म न भणइ जच्चाण नवकिसोराण तदिवसेण जायमेत्ताण केसेहिं नह छाएमि गिहराइ, मरिऊण खगिसु उव्ववण्णो, पिट्ठिस्स दोण्हिं वि पासेहिं जहा एत्थ विता मे होलं वारहि। अन्नो भणइ-दो गज्झ अस्थि रयणा सालि | पक्खरा तहा चम्माणि लंबंति अडवीए चउप्पहे जणं मारेइ, साहुणो य पसूई य गद्दभिया य छिन्ना छिन्ना वि रुहंति एत्थ वि ता मे होलं वारहि। तेणेव पहेण अइक्कमति, वेगेण आगओ, तेएणण तरइ अल्लिङ, चिंतेइ.अन्नो भणइ-सयसुकिलनिचसुयंधो भज्ज अणुव्वय नत्थिपवासो निरिणो / जाई संभरिया, पञ्चक्खाणं, देवलोगगमण। एयस्स पारिणामिगी 20 / / यदुपंघसओ एत्थ विता मे होलंवाएहि। एवं णाऊण रयणाणि मग्गिऊण थूभे-वेसालाए णयरीए णाभीए मुणिसुव्वयस्स थूभो, तस्स गुणेण कोहाराणि सालीण भरियाणि, गद्दभियाए पुच्छिआ छिन्नाणि 2 पुणो कूणियरस ण पडइ, देवया आगासे कूणियं भणइ-''समणो जइ पुणो जायंति, आसा एगदिवसजाया मग्गिया एग दिवसिय णवणीयं, एस कूलबालए मागहियं गणिय लभिस्सति। लाया य असोगचंदए, वेसालि पारिणामिया चाणकस्स बुद्धी 12|| यूलमद्दरस पारिणामिया पिइम्मि नगरिंगहेस्सइ।।१।।' सो मग्गिजा तस्स का उप्पत्ती?-एयरस आयरिमारिए णंदेण भणिओअमञ्चो होहि त्ति असोगवणियाए चिंतेइ-केरिसा यस्स चेल्लओ अविणीओ, तं आयरिओ अंबाडेइ, सो वेरं वहइ। अन्नया भोगा वाउलाणं ति पव्वइओ / रण्णा भणिया-पेच्छह मा कवडेण आयरिया सिद्धसिलं तेण समं वंदगा विलग्गा० उत्तरंताण वधाए सिला गणियाघर जाएजा, नितस्स सुणगमडेण वावण्णेण णासं ण गेण्हइ, मुक्का० दिट्टा आयरिएण, पाया ओसारिया इहरा मारिओ होतो, सावो पुरिसेहिं रण्णो कहिय, विरत्तभोगो त्ति सिरिओ ठविओ. थूलभद्दसा दिण्णो दुरात्मन्! इत्थीओ विणस्सिहिसि त्ति, मिच्छावाई एसो भउत्ति मिस्स पारिणामिया रणो य १३॥णासिक ण्वरं, णंदो वाणियगो, सुन्दरी काउं तावसाऽऽसमे अत्थइ, नईए कूले आयावेइ, पंथब्भासे जो सत्थो एइ तओ आहारो होइ, णईए केले आयावेमाणस्स सा गई अण्णओ से भजा, सुंदरिनंदो से नाम कय, तस्स भाया पव्वइयओ, सो सुणेइजहा सो तीए अज्झविवन्नो, पाहुणओ आगओ, पडिलाभिओ, भाणं पवूढा, तेण कूलवारओ नामंजायं, तत्थ अत्यंतो आगमिओ, गणियाओ सद्दावियाओ, एगा भणइ अहं आणेभि कवडसाविया जाया, सत्थेण तेणं गहियं, इह पत्थवियउ ति उजाणं निणिओ, लोगेण य भायणहत्थो गया, वंदइ उद्दाणे होइयम्मि चेइयाइं वंदामि तुब्भे य सुया, आगयामि, दिहो, तओ ण उवहसंतिपव्वइओ सुंदरिनंदो, तओ सो तहविगओ उज्जाणं, पारणगे मोदगा संजोइया दिन्ना, अइसारो जाओ, पओगेण ठविओ, साहुणा से देसणा कया, उमट्ठरागो तिन तीरइ मग्गे लाइउं, वेउव्विय उव्वत्तणाईहिं संभिन्नं वित्त, ओणिओ, भणिओण्णो वयणं करेहि, कह?, लाद्धिभं च भगवं साहू, तओऽणेण चिंतियन अण्णो उवाओ ति अहिंगयरेणं जहा वेसाली घेप्पइ, थूमो नीणाविओ, गहिया। गणिया कूलबालगाणं उवलेभिति, पच्छा मेरू पयट्टाविओ, न इच्छइ, अविओगिओ, मुहुत्तेण दोण्ह वि पारिणामिगी 21 / / इंदपाउयाओ चाणक्केण पुखभणियाओ, अणिपि, पडिसुए पयट्टो, मक्कजुयलं विठव्वियं। अन्ने भणतिसचक चेव, एसा पारिणामिया 22 // आव०१ अ०। परिणामज्ञायाम्, 'परिणामिय दिटुं, साहुणा भणिओ-सुंदरीए वानरीओ य का लट्ठयरी? सो भणइ परिणाम, जा जाणइ पुग्गलाणंतु।' पुद्गलानां विचित्रं परिणाम जानाति भगवं! अवडती सरिस व्व मेरुवमत्ति, पच्छा विज्जाहरनिहुण दिट्ट, तत्थ सा पारिणामिकी। व्य०५ उ०॥ पुच्छिओ भणइ तुल्ला चेव, पच्छा देवमिहुणं दिट्ट, तत्थ वि पुच्छिओ परिणाह पुं० (परिणाह) परिघौ, स्था० 2 ठा०३ उ०। शरीरविस्तरे, भणति-भगवं ! एईए अग्गओ वानरी सुंदरि त्ति, साहुणा भणियं थोवेण स्था० 8 ठा०। नातिस्थौल्ये, नातिदुर्बलतायाम्, बृ० 130 2 प्रक० धम्मेण एसा पाविज्जइ त्ति, तओ से उवगय, पच्छा पव्वइओ। साहुस्स विस्तारे, पाइ० ना०१६८ गाथा। परिणामिया बुद्धी 14 / वइरसामिस्स पारिणामिया-माया णाणुवत्तिया, परिणिज्जमाण त्रि० (परिणीयमान) दुःखं प्राप्यभाणे, "एगे रूवे सुगिद्धे मा संघो अवमन्निजिहिति त्ति, पुणो देवेहि उज्जेणीए वेउव्वियलद्धी दिन्ना, / परिणीयमाणे।" आचा०१ श्रु०५अ० 1 उ०। पाडलिपुत्ते मा परिमाविहि त्ति वेउव्वियं कयं, पुरियाए पवयणओहावणा परिणिट्ठा स्त्री० (परिनिष्ठा) संपूर्ती, सिद्धौ, "परिणद्विसत्तमए'' सप्तमे मा होहिति त्ति सव्वं कहेयव्वं 15|| चल णाहए राया तराणेहिं वुग्गाहिज्जइ, श्रवणे परिनिष्ठा भवति। एत दुक्तं भवति-गुरुवदनुभाषत एव सप्तमे श्रवणे। जहा थेरा कुमारम चा अयणिजंतु, सो तेसिं परिक्खणणिमित्तं भणइ- विशे०। आ० म०। जो रायं सीसे पारण आहणइ तरस को दंडो? तरुणा भणति, तिलं तिलं परिणिट्ठाण न०(परिनिष्ठित)अवसाने, विशे०। छिंदियव्वओ, थेरा पुच्छ्यिा -वितेमो त्ति ओसरिया। चिंतेति-नूण देवीए | परिणिट्ठिय त्रि० (परिनिष्ठित)संपूर्णे सिद्धे, उत्त० 2 अ०। आव०। परि को अण्णीआहणत ति आगया भणंति सक्कारेयवा। रण्णो तेसिं च समन्तान्निष्ठां गतः परिनिष्ठितः। ज्ञाननिष्ठां गते, आ० म०।'' पडुच मिट्ठ पारिणामिया 16 / / (आमहे ति)आमलगं, कित्तिम एगेण णायं अइकढिणं / गतो परिणिहिता। " आ० चू०१ अ० / परिन्नओ।' परिनिष्ठितो नामअकालि बिंबो होइ ति। तस्स वि पारिणामिया 17 / / (मणि ति)* गतम् / यथायोग विधेयतया सम्यक् परिज्ञातः / व्य० 10 अ० / निष्पन्नकृत्ये, 18 // सप्पो चंडकीसिओ वितइएरिसो महप्पा इचाइविभासा, एयरस / असाधनीये सिद्धे, विशे० /
SR No.016147
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1636
LanguageHindi
ClassificationDictionary
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