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________________ पउमुप्पल 22 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 5 पएस च उत्पलकृष्ट, तयोर्गन्धेन सौरभेण सदृशः सभो यो निश्वासस्तेन सुरभिगन्धिवदनं मुखं येषां ते पद्मोत्पलगन्धसदृशनिश्वाससुरभिवदनाः। तं०। जी०॥ पउय पु० (प्रयुत) चतुरशीतिलक्षगुणिते प्रयुताड़े, स्था० 2 ठा० 4 उ० / जी०। पउयंग न० (प्रयुताङ्ग) चतुरशीतिलक्षगुणिते अयुतशतसहस्त्रे, जी० 3 प्रति०४ अधिक। पउर त्रि० (प्रचुर) प्रभूते, आ०म०१ अ० / औ० / प्रश्न० / अतिप्रभूते. व्य०३ उ० / ज्ञा० / बहुले, स्था०२ ठा०४ उ०। *पौर- त्रि० "अउः पौराऽऽदौ च" ||8/1161 / / इत्यौतोऽउः / 'पउरो।' पुरोद्भवे, प्रा० 1 पाद / विशिष्टनगरनिवासिलोके, आ०म० 1 अ० / "पउरजणबालवुड्डपमुइयतुरियपहावियवियलाउलयोलबहुल नभं करते।" पौरजनाश्च, अथवा प्रचुरजनाश्च बाला वृद्धाश्च से प्रमुदितास्त्वरितप्रधाविताश्च शीघ्रं गच्छन्तः, तेषा व्याकुलाऽऽकुलानामतिव्याकुलाना, यो बोलः स बहुलो यत्र तत्तथा, तदेवंभूतं नमः कुर्वन्निति। भ० 6 श० 33 उ०। पउरगोयर पुं० (प्रचुरगोचर) प्रचुरचरणभूमौ भ०१२ श०७ उ०। पउरिस न० (पौरुष) पुरुषस्य भावे, "अउः पौराऽऽदौ च / " ||8/1 / 162 // इत्यौतोऽउः / प्रा०१ पाद। "पुरुषे रोः" / 1 / 111 / / इत्युकारस्येकारः / प्रा०१ पाद। पउरिंधण न० (प्रचुरेन्धन) बहुलकाष्ठे, उत्त०३२ अ०। पउरुस न० (पौरुष) 'पउरिस' शब्दार्थे प्रा० 1 पाद। पउ(औ)ल पुं० (पटोल) अनन्तजीववनस्पतिभेदे, प्रज्ञा० 1 पद। पउ(त्त)लहि स्त्री० (प्रतोत्रयष्टि) प्राजनकदण्डे, दशा० 10 अ०। पउलण न० (प्रचोटन) पचनविशेषे, प्रश्न०१ आश्रद्वार। पउलिअ त्रि० (पक्व ) दग्धे, पुलुट्ठयं "पउलिअंदव। पाइ० ना० 200 गाथा। पउस्संत त्रि० (प्रद्विषत्) प्रद्वेषमुपयाति, प्रतिका पऊद न० देशी गृहे, दे०ना० 6 वर्ग 4 गाथा। पएस पुं० (प्रदेश) प्रकृष्टों देशः / उत्त० 4 अ०। निर्विभागे भागे, अनु०। आ०म० ! स्था० / विशेष धर्माधर्माऽऽकाशजीवपुद्गलानां निरवयवे (स्था० 3 ठा०२ उ०) निरंशे धर्माऽधर्माऽऽकाशजीवानां देशेऽवयवविशेषे, स्था०१ ठा०। विशेला जी० आ०म०ा निरशावयव परिमाणे, स०५अङ्ग। प्रमितपरिमाणे, स०। लघुतरभागे, भ०६ 2033 उ०। जनपदैकदेशे, स्था०३ ठा०३ उ० / कणिकाऽऽदिरूपे, (कर्म०१ कर्म०) दलसंचये, कर्म०५ कर्म० ज०। जीवाना सप्रदेशत्वाप्रदेशत्वम-- जीवे णं मंते ! कालादेसेणं किं सपएसे, अपएसे ? गोयमा ! नियमा सपएसे / नेरइए णं भंते ! कालादेसेणं किं सपएसे, अपएसे ? गोयमा! सिय सपएसे, सिय अपएसे, एवं०जाव सिद्धे। जीवा णं मंते ! कालादेसेणं किं सपएसा, अपएसा ? गोयमा ! नियमा सपएसा। नेरइया णं भंते ! कालादेसेणं किं सपएसा, अपएसा ? गोयमा ! सव्वे वि ताव होज सपएसा / अहवासपएसाय, अपएसेय / अहवासपएसा य, अपएसा य / एवं०जाव थणियकुमारा / पुढविकाइया णं भंते ! किं सपएसा, अपएसा ? गोयमा ! सपएसा वि, अपएसा वि / एवं.जाव वणस्सइकाइया, सेसा जहा नेरइया तहा सिद्धा, आहारगाणं जीवेगिंदियवजो तियभंगो, अणाहारगाणं जीवेगिंदियवज्जा छन्भंगा एवं भाणियव्वासपएसा वा 1, अपएसा वा 2 / अहवा सपएसे य, अपएसे य३ / अहवा सपएसे य, अपएसा य 4 / अहवा- सपएसा य, अपएसे य 5 / अहवा- सपएसा य, अपएसा य 6 / सिद्धेहिं तियभंगोभवसिद्धी य, अभव सिद्धी य,जहा ओहिया, नोभवसिद्धीय, नोअभवसिद्धीय जीवसिद्धेहिं तियभंगो, सन्नीहिं जीवादिओ तियमंगो, असन्निएहिं एगिदियवजो तियभंगो, नेरइयदेवमणुएहिं छब्भंगो, नोसन्निनोअसन्नि जीवे मणुयसिद्धेहिं तियभंगो, सलेसे जहा ओहिया कण्हलेस्सा नीललेस्सा काउलेस्सा जहा आहारओ, णवरं जस्स अस्थियाओ तेउलेस्साए जीवाइओ तियभंगो, णदरं पुढविकाइएसु आउवणप्फईसु छन्भंगा, पम्हलेस्से सुकलेस्साए जीवाइओ तियभंगो, अलेस्सेहिं जीवसिद्धेहिं तियभंगो, मणुएसु छन्भंगा, सम्मट्ठिीहिं जीवादिओ तियमंगो, विगलिंदिएसु छडभंगा, मिच्छादिट्ठीहिं एगिदियवजो तियभंगो, सम्मामिच्छदिट्ठी,हिं छडभंगा, संजएहिं जीवादिओ तियभंगो, असंजएहिं एगिदियवञ्जो तियभंगो, संजयासंजएहिं जीवादिओ तियभंगो, नोसंजयनोअसंजयनोसंजयासंजयजीवसिद्धेहिं तियभंगो, सकसाइएहिं जीवादिओ तियभंगो, एगिदिएसु अंभगयं, कोहकसाईहिं जीवेगिंदियवञ्जो तियभंगो, देवेहिं छन्भंगा, माणकसाईमाइकसाईहिं जीवेगिंदियवो तियभंगो, नेरइयदेवेहिं छब्मंगा लोहकसाईहिं जीवेगिंदियवञ्जो तियभंगो, नेरइएसु छडभंगा, अकसाईजीवमणुएहिं सिद्धेहि तियभंगो, ओहियणाणे आमिणिबोहियणाणे सुयनाणे जीवादिओ तियभंगो, विगलिं दिएहिं छब्भंगा, ओहिणाणे मणपज्जवणाणे केवलणाणे जीवादिओ तियभंगो, ओहिए अण्णाणे मतिअण्णाणे सुयअण्णाणे एगिदियवजो तियभंगो, विभंगणाणे जीवादिओं तियभंगो, सजोई जहा ओहिओ मणजोगिवइजोगिकायजोगिजीवादिओ तियमंगो, णवरं कायजोगी एगिदिया, तेसु अभंगकं. अजोगी जहा अ
SR No.016147
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1636
LanguageHindi
ClassificationDictionary
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