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________________ पत्त 402 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 5 पत्त जे भिक्खू दंतबंधणाणि वा धरेइ, धरतं वा साइज्जइ। 26 / जे भिक्खू दंतबंधणाणि वा भुंजइ, भुजंतं वा साइज्जइ। 30. जे भिक्खू सिंगबंधणाणि वा करेइ, करंतं वा साइज्जइ।३१। जे भिक्खु सिंगबंधणाणि वा धरेइ, धरंतं वा साइज्जइ। 32 / जे भिक्खू सिंगबंधणाणि वा भुंजइ, भुजंतं वा साइज्जइ / 33 / जे भिक्खू चम्मबंधणाणि वा कारेइ, करतं वा साइज्जइ। 34 / जे भिक्खू चम्मबंधणाणि वा धरेइ, धरंतं वा साइजइ। 35 // जे भिक्खू चम्मबंधणाणि वा भुंजह, भुजंतं वा साइज्जइ / 36 / जे भिक्खू चेलबंधणाणि वा करेइ, करंत वा साइज्जइ। 371 जे भिक्खू चेलबंधणाणि वा धरेइ, धरंतं वा साइजइ।३८ / जे भिक्खू चेलबंधणाणि वा भुंजइ, भुंजंतं वा साइज्जइ / 36 | जे भिक्खू सिलबंधणाणि वा करेइ, करतं वा साइज्जइ। 40 / जे भिक्खू सिबंधणाणि वा धरेइ, धरंतं वा साइजह / 41 / जे भिक्खू सिलबंधणाणि वा भुंजति, भुजंतं वा साइज्जइ / 42 / जे मिक्खू अंकबंधणाणि वा करेइ, करंतं वा साइज्जइ / 43 / जे भिक्खू अंकबंधणाणि वा धरेइ, धरंतं वा साइज्जइ। 44 / जे भिक्खू अंकबंधणाणि वा भुंजइ, भुजंत वा साइजइ / 45 / जे भिक्खू संखबंधणाणि वा करेइ, करतं वा साइज्जइ / 46 / जे भिक्खू संखबंधणाणि वा धरेइ, धरंतं वा साइजइ / 47 / जे भिक्खू संखबंधणाणि वा भुंजइ, भुजंतं वा साइज्जइ। 48 / जे भिक्खू वइरबंधणाणि वा करेइ, करंतं वा साइजइ / 46 / जे भिक्खू वइरबंधणाणि वा धरेइ, धरंतं वा साइजइ / 50 / जे भिक्खू वइरबंधणाणि वा भुंजइ, मुंजत वा साइबइ। 511 अयमादिया कंठा / हारपुड णाम-अयमाद्याः पात्रविशेषाः / मौक्तिकलताभिरुपशोभिता मणिमादिया कण्ठा / मुक्ता शैलमय चेलमयं वा, सप्पओ खलियं वा पुडियाकारं कज्जइ। प्रथमसूत्रे स्वयमेव करणं कज्जइ / द्वितीयसूत्रे अन्यकृतस्य धरणम्. तृतीयसूत्रे अयमादिभिः स्वयमेव बन्धं करोति। चतुर्थसूत्रे अन्येन अयमादिभिर्बद्धं धारयति। गाहाअयमाई पाया खलु, जत्तियमेत्ताउ आहिया सुत्ते। तब्बंधणबद्धं वा, नाणि धरे तम्मि आणादी।।२।। करणधरणे आणाअणवत्थमिच्छत्तविराहणा य भवइ, चतुगुरुगं च से पचिछत्तं। इमो य भावपडिसेहो भन्नतितिन्नट्ठारस वीसा, सतमड्डाइज्ज पंच य सयाणि। सहस्संच दससहस्सा, पण्णास तहासयसहस्सा।।३।। मासो लहुओ गुरुओ, चउमासा हों तिलहुय गुरुगा या छम्मासा लहु गुरुगा, छेदो मूलं तह दुर्ग च / / 4 / / एगादिया०जाव तिन्नि कहावणा जस्स मुल्लं, एवं धरेंतस्स मासलहुँ। चउरादिया०जाव अट्ठार कहावणाजस्स मोल्ल, एयं धरेतस्स मासगुरूं। वीसाए चतुलहुं इक्कवीसाइ.जाव सयं पूरं एत्थ चतुगुरुगा। एगुत्तरादियसयाउ०जाव अढाइजा सया, एत्थ छल्लहुग। एदुवरि एगुत्तरवुड्डीए०जाव पंचसया, एत्थ छगुरुगा। एवं सहस्से छेदो। दससहस्सेसुमूलं। पन्नासाए सहस्सेसु अणवहो। सयसहस्से पारंचियं / एक्कक्के ठाणे आणाइया दोसा। इमे-अयसंजमविराधना दोसाभारो भय परितावण-मारण अधिकरण अहियकसिणम्मि। पडिलेहऽऽणाए लोवो, मणसंतावो उवादाणं / / 5 / / पमाणातिरित्ते भारो भवति, अथवा-भारभयाण विहरति। भएण वाण विहरइ-मा मे एवं उक्कोसे पत्ते हीरज, भारेण वा परिताविज्जइ, तेणेगेहि वा दिवो गहिओ परिताविजइ, मा स चावज कहइ ति तेणगा वा मारेज, तेणगेहि य गहिए पाए अहिकरणं, अथवा अइरित्तं अनुपयोगित्वात् अधिकरणं, एते गणणाधिके, पमाणाहिके, मुल्लाधिके य दोसा भणिया। मुल्लपमाणकसिणं च जइ पडिलेहंतितो तेणगा पडुया यत्ति, हरंति यते, अतोपडिलेहिए उवहिणिप्फण्णं संजमविराहणा य, गणणाइरित्तं जई पडिलेहेइ तो सुत्तत्थपलिमंथो, अप्पडिलेहिए उवहिणिप्फण्णं संजमविराहणा य अतिरित्तग्गहणा अप्पडिलेहणाए, आणालोपो कओ भवति / कसिणोऽवराहेमणसंताको भवइ-एरिसं तारिसं मज्झ पायं आसि त्ति, खेत्तादिए भवे कसिणं च, सहस्सउ णिक्खिवउकामम्स उवादाणं भवइ। जम्हा एते दोसा तम्हा महद्धणमोल्लाइं पायाईण धरे, किं तु अप्पाई। गाथावितियपदे गेलण्णे, असतीऍ अभाविते व गच्छम्मि। असिवादी परलिंगे, परिक्खणट्ठा विवेगो वा // 6 // अगदो महसंजोगो, तं पि य रजतादि अहव वजेट्ठा। मल्लगमभावितम्मी, पइदिण दुलभे व रयमादी||७|| अगदमाइया, ते वेज्जुवदेसण गिलाणस्स ओसह टविज्जति, महसंजोए वा वेजट्ठा वा घेप्पइ / राया रायमच्चो वा पव्वाविउ सिया, तस्स य कणगमाइया उवट्टियस्स कंसभायणे मा छद्धो, गेलन्न वा भवेज, तेण कणगदि घेप्पेञ्ज, असइत्ति लाउयमादियाऽभावे अयमादियं गेण्हिज्ज, तत्थ विअप्पमुल्लं, गच्छे वा अभाविया अस्थि तेसिं अट्ठाए मल्लगं गिण्हेज, मल्लगे य पतिदिणं अलभंते दुल्लभे वा रयताऽदिघेप्पेज। गाथागच्छे च करोडादी, पतावणट्ठा गिलाणमादीणं। असिवे सपक्खपत्तं, रायढे च परलिंगे॥|| उवग्गहट्टा वा करोडगाई गच्छे धरिज ति, गिलाणस्स
SR No.016147
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1636
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size
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