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________________ भुवणतिलय 1563 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 5 भुवणतिलय किं च तयं चिय मित्त, व कमलिणी निच्चमेव झायंती। परिचत्तकुसुमतंवो-लमाइ कह कह विगमइ दिणे॥११॥ जा अज्ज वि सा बाला, तणं वन हुचयइ जीवियं निययं / ता तुडभेहिं नरवर!, पुव्वसिणेहाभिवुड्डिकए।।१२।। सहला किज्जउ अम्हा-ण पत्थणा पेसिनियं तयणं / तीए गिण्हाविज्जउ, वरलखणलक्खिओ पाणी॥१३॥ अह मइविलासवरम--तिवदणमवलोयए निवो सो वि। विणएण भणइ सामिय!, जुत्तमिणं कीरउ पमाणं // 14 // जं भणह तयं कुणिमु, त्ति निवइणा जंपिए पहाणनरो। सो पत्तो निवदिन्ने, आवासे फुरियगुरुहरिसो।।१५।। तो न्नाऽणुन्नाओ, अणेयसामंतमंतिमाइजुओ। सो कुमरो संचलिओ, अखलियचउरङ्गबलकलिओ।।१६।। संपत्तो अइदूर, पहम्मि सिद्धउरनयरबाहिम्मि। मुच्छामीलीयनयणो, सो पड़िओ रहवरुच्छंगे॥१७॥ अह मज्झिमखंधारे, सहसा कोलाहले समुच्छलिए। मिलिओ अम्गिमपच्छिम-खंधारजणो तहिं सव्वो // 18|| तो मंतिमाइणोतं, महुरालावेहि आलवंति भिसं। कट्ठ व विगयचिट्ठो, न कि पि पडिजपए कुमरो // 16 // आदन्ना ते सध्ये, विविहोसहमततंतमणिपमुहे। पकुणंति बहुवयारे, न य से जायइ गुणो को वि।।२०।। किं तु पवट्टइ अहिथं, वियणा विलयंति सयलअंगाई। तो मतिमाइलोओ, करुणसरं पलवए एवं // 21 // हा गुणरयणमहोदहि! हा निरुवमविणयकणयकणयगिरे! हा पणयकप्पपायव ! कुमार ! पत्तोऽसि किमवत्थं ?||22|| सुयवच्छलस्स देव-स्स किं तु गंतु वयं कहिस्सामो? इय जा पलवेइ जणो, सिद्धपुरवहिहिउज्जाणे // 23 // ता सुरकिन्नरसेवि-ज्जमाणचरणो अणेगसमणजुओ। नामेण सरयभाण, वरनाणी आगओ तत्थ ||24|| अमरकयकणयकमला-55सीणो धम्मकहेड अह तत्थ। सो मंतिप्पमुहजणो, गओ गुरु नमियं उवविठ्ठो |25|| अह कंठीरवसामं-तपुच्छिओ कुमरदुक्खवुत्तंत। तेसिं आउलभावा, समासओ कहइ इय सूरी।।२६।। धायइसंडे दीवे, भरहे भवणागरम्मि नयरम्मि। विहरतो संपत्तो, इको गच्छो सुगुरुकलिओ॥२७॥ तत्थय एगो साहू, वासवनामा सुवासणारहिओ। गुरुगच्छपचणीओ, अइअविणिओ किलिट्ठमणो॥२८॥ सो कइया वि गुरूहि, भणिओ भो भद्द! होसु विणयपरो। जम्हा विणएण चिय,कल्लाणपरंपरा होइ॥२६॥ उक्तंच"विनयफलं शुश्रूषां, गुरुशुश्रूषाफलं श्रुतज्ञानम्। ज्ञानस्य फलं विरति-र्विरतिफलं चाऽऽश्रवनिरोधः // 30 // संवरफलं तपोबल-मथ तपसो निर्जरा फलं दृष्टम्। तस्मात् क्रियानिवृत्तिः, क्रियानिवृत्तेरयोगित्वम् // 31 // योगनिरोधादवस-न्ततिक्षयः सन्ततिक्षयान्मोक्षः। तस्मात् कल्याणानां, सर्वेषां भाजनं विनयः // 3 // " तथामूलाउ खंधप्पभवो दुमस्स, खंधाउ पच्छा समुर्विति साहा। साहप्पसाहा विरुहंति पत्ता, तओ सि पुष्पं च फलं रसोय॥३३॥ एवं धम्मस्स विणओ, मूलं से परम सुखं / जेण कितिं सुयं सिग्घ, नीसेस चाभिगच्छई॥३४॥ इय गुरुवयणं पवणं, व वणदवो पप्प सप्प इव कूरो। कोवेण धगधगतो, सो अहिययरं समुज्जलिओ॥३५॥ सो अन्नया अकज्ज-म्मि कत्थई चोईओ मुणिहिं पि। जाओ भिस पउट्ठो, इह परलोए य निरविक्खो॥३६।। सव्वेसि घायणत्थं, तालउडविसं खिवित्तु-जलमज्झे। सो एगदिसाहुत्तो, सयं पणट्टो उभयभीओ // 37 // गच्छाणुकंपियाए,यदेवयाए तयं कहेऊण। तप्परिभोगपवत्ता, निवारिया साहुणो सब्वे // 38|| सो वच्चंतोऽरन्ने, कत्थ विवणदवपलित्तसव्वंगो। मरिऊण समुप्पन्नो,परमाऊ अप्पइहाणे॥३६॥ तो मच्छेसुं पुणरवि, नरए तिरिए पुणो विनरयम्मि। सव्वत्थ दहणछिदण-भिंदणवियणाहिं संतत्तो।।४।। भमिओ भूरि भवेसु, अन्नाणतवं करित्तुं किं पि पुरा। जाओधणयनरिद-स्स एस अइबल्लहो पुत्तो।।४१॥ रिसिघायपरिणएणं, जं च तया अज्जियं असुहकम्म। तस्सेस वसा इम्हि, एयमवत्थं गओ कुमरो।।४२|| तो भीएणं कंठी-रवेण पणमित्तु पभणियं नाह! कह होइ पुणो एसो? पउणो पडिभणइ मुणिनाहो // 43 // खीणप्पायं कम्म, इमस्स संपइ विमुच्चमाणो य, चिट्ठइ वियणाहि इहा-ऽऽगओ विमुच्चिहिइ सव्वत्तो / / 44 / / इय सोउ मंतिपमुहा, लोया हरिसियमणा कुमरपासं। संपत्ता अहदिट्ठो, पउणप्पाओतओ तेहिं।।४।। कहिओ केवलिकहिओ, पुव्वभवाई य वइयरो तस्स। तो सो भीओ पमुइय-मणो य पत्तो सुगुरुपासे / / 46 / / नमिउं सूरि कंठी-रवाइबहुलोय संजुओ कुमरो। निस्सीमभीमभवभय भीओ दिक्खं पवज्जेइ॥४७॥ इय सुणिय जसमई विहु, तत्थाऽऽगंतूण गिण्हए दिक्खं। सेसजणो पुण वलिउ,धणयनिवस्साऽऽह तं चरियं / / 48|| पुवकयअविणयफलं, सुमिरन्तो माणसे कुमरसाहू। अइसयविणयपहाणो, जाओ अचिरेण गीयत्थो / / 4 / / विणए वेयावच्चे, सो तह दढऽभिग्गहो समुप्पन्नो। जह तग्गुणतुट्टेहि, अमरेहि वि संथुओ बहुसो।।५०।। तं उवहति गुरू, अभिक्खणं महुरनिउणवयणेहिं। धन्नोऽसि भो महायस!,तुह सहलं जम्म जीयं च // 51 // परिचत्तरायरिसिणा, दमगमुणीसु विपउत्तविणएण। वेयावच्चपरेण य, सच्चवियं ते इमं वयणं // 52 / / पणमति य पुटबयरं, कुलया न नमंति अकुलया पुरिसा। पणओ पुट्विं इहजई-जणस्स जह चक्कवट्टिमुणी।।५३।। इय उववूहिज्जतो, सो केयलिणा वि फुरियमज्झत्थो। पालइ वयमकलकं, वावत्तरिपुव्वलक्खाई // 54 / / सव्वाउ पुव्वलक्खे, असिइंपरिपालिऊण पजते। पडिवन्नपायवगमो, अज्झीणज्झाणलीणमणो / / 5 / / उम्पन्नविमलनाणो, विलीणनीसेसकम्मसंताणो। सो भुवणतिलयसाहू, भुवणोवरिमं पयं पत्तो // 56 // "
SR No.016147
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1636
LanguageHindi
ClassificationDictionary
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