________________ भद्दा 1375 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 5 महा यां धिगजातिन्याम, आ० म० 1 अ० / काकन्दीनगरीस्थस्य धनसार्थवाहस्य जनन्याम्, "काकंदीणयपरीए भद्दा नाम सत्थवाही परिवसइ।" अणुला पुरिमतालनगरस्थस्य वमुगुरश्रेष्ठिनः पल्ल्याम्, आ० म०१ अ०। मखलिपुत्रस्य गोशालाकस्य जनन्याम, भ०१५ श०। आ० चू० / पश्चिमरुचकवास्तव्यायां स्वनामख्यातायां दिकुमार्याम् आ० क०१अ०। द्वी० ज०। आ० म०। स्था०। आ० चू०। नन्दीश्वरवरद्वीपस्य दक्षिणाऽञ्जनकपर्वतस्योपरिस्थितायां पुष्करिण्याम, दी। ती०। स्वनामख्यातायां नगाम,आ०च०१अ०भन्दतेकल्याणीकरोति देहिनमिति भद्रा। अहिंसायाम, प्रश्न०१सम्ब० द्वार। अहोरात्राद्वयमाने प्रतिमाभेदे च / स्था०४ ठा०१उ०। 'पंचपडिमायां।'' प्रथमा प्रतिमा द्विदिनाभ्यां भवति। स्था०५ ठा०१ उ०। (व्याख्या 'पडिमा' शब्देऽस्मिन्नेव भागे 332 पृष्ठे गता) राजगृहनगरवास्तव्यधन श्रेष्टिभार्यायाम.ध०र०॥ धनश्रेष्ठिज्ञातं त्विदम्"अस्थिऽत्थ मगहदेसे, देसियदंसियमहल्लकोहल्ले। रायगिह केलिगिह व, भुवणकमलाइवरनयरं / / 1 / / तत्थाऽऽसि रासिकयबहु-मणिरयणो मइधणो धणो सिट्ठी। समुवजियबहुभद्दा, भद्दा नामेण से गिहिणी॥शा धणपालो धणदेवो, धणओ धणरक्खिओ त्ति सुपसिद्धा। चउरो चउराणणआ–णणुव्व तेसिं सुया पवरा / / 3 / / कमसो तेसिं भज्जा, सिरी य लच्छी धणा य धन्ना य। निरुवमसुंदरिमसा-लिणीउ चिट्ठति सुहियाओ॥४॥ कइयावि परिणयवओ, सिट्टी चिंतइवयं गहिउकामो। एएविहिया सुहिया, तणया मे इचिरं कालं // 5 // जइ पुण का विहुसुण्हा, कुडुंबभारं धरिज अविणटुं। तो पच्छा वि अइसुही, न मुणतिगयं पि कालमिति / / 6 / / का पुण इमाण उचिया, गिहचिंताइ त्ति हुं सपुन्ना जा। स उण मईइ नेया, पुन्नणुसारेण जं बुद्धी / / 7 / / जुज्जइ तओ परिक्खा, इमाण सुहिसयणबंधुपचक्खं। जं संदविय कुटुंबा, कुडुबिणो हुति कित्तिपयं / / 8 / / इय चिंतिऊणमुई-डमंडवं ताडिऊण नियगेहे। नियमित्तनाइवरगं, निमंतए, भोयणट्ठाए || भुत्तुत्तरं च सम्मा-णिऊण तंबोल कुसुम माईहिं। तस्रा समक्खं सिट्ठी-हक्कारावेइ बहुआओ।।१०।। पण पण सालिकणे, अप्पिऊण पभणेइ रक्खिय व्य त्ति। जइया मग्गेमि तया, एए मे अप्पियवा य॥११|| एवं तिताहिँ भणिए, विसजिया गउरवेण नियसयणा। पत्ता यसयं ठाणं किमित्थ तत्तं ति सवियकका // 12 // मग्गिहिय जया ताओ, जओ तओ गिहिउं समप्पिस्सं। इय चिंतिय पढमाए, बहूइ ते उज्झिया झत्ति॥१३|| बीयाए तुसभावं, अवणेउं भक्खिया लहुं चेव। तइयाए तायसम-प्पिय ति अइगउरवपराए।।१४।। उज्जलवसणेणं बं-धिऊण पक्खिविय भूसणकरंडे। पइदिणतिकालपडियर--णजोगओ रक्खिया ते उ।1१५|| अह धन्नाए नियपिय--गेहओ सहिऊण सयणजणो। भणिओ जह पइयरिसं, वुड्डिमिमे जति तह कुणह // 16 // तेण वि वरिसारत्ते, पत्ते ते वाविया पयतेण। खुडम्मि कियारे जल-भरियम्मि परोहमणुपत्ता / / 17 / / तो सव्वे उवखणिउं. पुणरवि आरोविया कमेण तओ। ज ओ पढमे वरिसे, पसत्थओ पत्थओ तेसिं॥१८॥ वीयम्मि वच्छरे आ-ढगो उतइयम्मि खारिया जाया। तुरिए कुंभो पंचम-वरिसे पुण कुंभसहसाणि / / 16 / / अह सिट्ठिणा वि भोयण-पुरस्सरं सयमणाइ पच्चक्खं। सद्दाविय बहुयाओ, सालिकणा मग्गिया तेउ // 20 // किच्छेण सुमरिय सिरी, जओतओ अप्पए कणे पंच। अइ सवहमाविया भण-इ उज्झिया ते माए ताय ! // 21 // एवं लच्छी वि कहे-इ केवलं भक्खिया मए तेउ। आभरणकरंडाओ, ते गहिय धणा समप्पेइ // 22 // अइधन्ना धन्ना वि, मग्गिया सविणयं भणइ ताय ! ते एवमेव अइभूरि-भावमिम्हि समणुपत्ता॥२३॥ एवं भवंति एए, सुरक्खिया ताय! वाविया संता। सन्निक्खाया पुण वु-डिभावरहियत्तओ नेव // 24 // संति मम जणयगेहे, बहु कुजारेसुसंनिखित्ता ते। सगडाइवाहणेहि, तो आणावइ लहुँ सिट्ठी॥२५॥ तो नियऽभिप्पायं कहि य सिट्टिणा पुच्छिमो सयणवग्गो। किं इत्थ उवियमिहि, स आह तुब्भि चिह मुणेह॥२६॥ जंपइ धणो वि उज्झण-सीला पढम त्ति उज्झिया नाम। छारछगणाइछडण-वावारा वसउ मह गेहे // 27 / / रंधण कंडणसोहण-दलणाइ नियोगिणी हवउ वीया। नियआयरणवसेणं, भोगवई नाम सुपसिद्धा॥२८॥ जं सालिकणा जत्ते–ण रक्खिया रक्खियाभिहा तेण। मणिकणगरयणम-डारसामिणी हवउ तइयबहू // 26 / / अणइक्कमणिज्जाणा, तुरिया सव्वस्स सामिणी होउ। सालिकणारोहणवसा, रोहिणिनामा गरुयपुन्ना // 30 // एवं चदीहदंसि-तणेण काउंकुडुबसुत्थं सो। धणसिट्टी निम्मलध-म्मकम्मआराहगो जाओ॥३१।। अन्नो वि इहो विणओ, छठेंगे रोहिणीइ नायम्मि। भणिओ सुहम्मपहुणा, बहुप्प किर वित्थरेणेवं // 32 / / जह सो धणो तह गुरू, जह नायजणो तह समणसंधो। जह बहुया तह भव्वा, जह सालिकणां वयाइँ तहा॥३३॥ जह सा उज्झियनामा, ते सालिकणे समुज्झिउं पत्ता। एसणदुक्खं परम, तह कोइ जिओ कुकम्मवसा / / 34 / / सयलसमीहियसंसि-द्धिकारएतारए भवसमुद्दा। उज्झित्तु वए मरणा-इआवयाओ उवजे // 35 // अन्नो उण वीयबहु, व्व वत्थभोयणजसाइलोभेण। भुत्तुं ताई परलो-यदुक्खलक्खक्खणी होइ॥३६॥ तत्तो विय जो अन्नो, सो ताइं जीवियं व रक्खित्ता। रक्खियबहव्व जायइ,सव्वेसिंगउरवट्ठाणं / / 37 / / जो पुण तओ वि अन्नो, रोहिणिबहुय व्व वुड्डिमाणेइ। पंच वि वयाइव हवइ. संघपहाणो गणहरु व्य / / 38|| अन्नो वि इत्थ दीसइ, ववहारे उवणओइहंनाए। जह किल कस्सइ गुरूणो, सीसा चत्तारि निप्फन्ना // 39 / / आयरियत्तजुग्गा, पज्जाएणं सुएण स समिद्धा। अहु चितिउंपवत्तो, गुरू समप्पेमि कस्स गणं / / 4 / / तत्तो तेण परिच्छा-हेउं देसंतरे विहाराय। का होइ कस्स सिद्धि, ति पेसिया उचियपरिवारा।।४।।