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________________ भत्तपरिण्णा 1363 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 5 भत्तपरिण्णा णा भणसु भणसु सचं, जीवहियत्थं पसत्थमिणं / / 15 / / कयविप्पियं पई झ-निति निहणं हयासाओ॥११५|| विस्ससणिज्जो माया, व होइ पुज्जो गुरु व्व लोअस्स। रमणीयदंसणाओ, सुउमालंगीओं गुणनिबद्धाओ। सयणु व्व सच्चवाई, पुरिसो सव्वस्स होइ पिओ IIEII नवमालइमालाओ, व हरंति हिययं महिलियाओ॥११॥ होउ व जडी सिहंडी, मुंडी वा वक्कली व नग्गो वा। किं तु महिलाण तासिं,दंसणसुंदरजणियमोहाणं / लोए असचवाई, भण्णइ पासंडचंडालो।।१०।। आलिंगणमइरा दे-इ वज्झमालाण व विणासं / / 120 / / अंलियं सणं पि भणियं, विहणइ बहुआई सचवयणाई। रमणीपादसणं चे-सुंदरं होउ संगमसुहेणं / पडिओ नरयम्मि वसू, इक्केण असचवयणेण / / 101 / / गंधो दिवय सुरहिमा-लईइ मलणं पुण विणासो॥१२१॥ या कुणसु धीर! बुद्धिं, अप्पं च बहुं च परधणं चित्तुं / साकेयपुराहिवई, देवरई रजसुक्खपन्भट्ठो। दंतंतरसोहण्यं, किलिंचमित्तं पि अविदिन्नं // 10 // पंगुलहेउं बूढो, बूढो य नईइ देवीए / / 122 / / जो पुण अत्थं अवहरइ, तस्स सो जीवियं पि अवहरइ। सोयसरी दुरियदरी, कवडकुडी महिलिया किलेसकारी। जं सो अत्थकएणं, उज्झइ जीयं न पुण अत्थं / / 103 / / वइरविरोयणअरणी, दुक्खखणी सुक्खपडिवक्खा॥१२३।। तो जीवदयापरम, धम्म गहिऊण गिण्ह माऽदिन्नं / अमुणियमाणपरिक्कमों, सम्म को नाम नासिउं तरइ ? जिणगणहरपडिसिद्ध,लोगविरुद्धं अहम्मं च / / 104 / / वम्महसरपसरोहे, दिद्विच्छोहे मयच्छीणं / / 124|| चोरो परलोगम्मि वि, नारयतिरिएसु लहइ दुक्खाई। घणमालाउ व दुरु-नमंतसुपओहराउ वडति। मणुयत्तणे विदीणो, दारिद्दोबद्दुओ होइ॥१०॥ मोहविसं महिलाओ, आलक्कविसं व पुरिसस्स / / 125|| चोरिक्कनिवित्तीए, सावयपुत्तो जहा सुहं लहइ। परिहरसु तओ तासिं, दिढेि दिट्ठीक्सिस्स व अहिस्स। किढिमोरपिच्छचित्तियं-गुट्ठी चोराण चलणेसु॥१०६।। जं रमणिनयणबाणा, चरित्तपाणे विणासंति॥१२६।। रक्खाहि बंभचेरं, बंमगुत्तीहिं नवहिं परिसुद्धं / महिलासंसग्गीए, अग्गी इव जंच अप्पसारस्स। निचं जिणीह कामं, दोसपकामं वियाणित्ता / / 107 / / मीणं व मणो मुणिणो, विहंत सिग्घं चिय विलाइ॥१२७।। जावइया किर दोसा, इह परलोए दुहावहा हुंति। जइ वि परिचत्तसंगो, तवतणुयंगो तहावि परिवडइ। आवहइ ते उ सव्वे, मेहुणसन्नामणुस्सस्स / / 108|| महिलासंसग्गीए, कोसाभवणूसिय व्व रिसी।।१२८|| रइअरइतरलजीहा-जुएण संकप्पउक्कडफणेण। सिंगारतरंगाए, विलास बेलाऐं जोव्वणजलाए। विसयविलवासिणा, मदमुहेण बिब्वोअरोसेण / / 106 / / के के जयम्मि पुरिसा, नारिनईएन वुड्डति / / 12 / / कामभुअगेण दट्ठा, लज्जानिम्मोयदप्पदाढेण / विसयजलमोहकलं, विलासबिब्बोयजलयराइण्णं / भासंति नरा अदसा, दुस्सहदुक्खावहविसेण // 110 / / मयमयरं उत्तिन्ना, तारुन्नामहण्णवं धीरा // 130 / / लल्लकनरयवियणा-उधोरसंसारसायरव्वहणं / अभिंतरबाहिरए, सव्वे संगे तुमं विवजेहि। संगच्छईन पिच्छइ, तुच्छत्तं कामियसुहस्स / / 111 // कयकारियऽणुमईहिं, कायमणोवायजोगेहिं // 131 / / बम्महसरसयविद्धो, गिद्धो वणिउव्व रायपत्तीए। संगनिमित्तं मारइ, भणइ अलीयं करेइ चोरिकं / पाउक्खालयगेहे, दुग्गंधेणेगसो वसिओ॥११२।। सेवइ मेहणमित्थं, अप्परिमाणं कुणइ जीवो // 132 / / कामाऽऽसत्तो न मुणइ, गम्माऽगम्म पि वेसियाणु व्व। संगो महाभओ जं, विहेडिओ सावरण संभेणं / सिट्ठी कुवेरदत्तो, निययसुयासुरयरइरत्तो // 113 / / पुत्तेण हिते अत्थ-म्मिं मुणिवईकुंचिएण जहा / / 133 / / पडिपिल्लियकामकलिं, कामग्घत्थासु मुयसु अणुबंधं / सव्वग्गंथविमुक्को, सीईभूओ पसंतचित्तोय। महिलासु दोसविसव-ल्लरीसु पयई नियच्छंतो॥११४॥ जं पावइ मुत्तिसुहं,न चक्कवट्टी वितं लहइ॥१३४|| महिला कुलं सुवंसं, पई सुयं मायरं व पियरं वा। निस्सल्लस्सेह मह-व्वयाइँ अक्खंडनिटवणगुणाई। विसयंधा अगणंती, दुक्खसमुद्दम्मि पाडेइ।।११।। उवहम्मति य ताई, नियाणसल्लेण मुणिणो वि।।१३।। नीयंगमाहिँ सुपओ-हराहिं, उप्पिच्छमंथरग्गईहिं। अह रागदोसगभं, च मोहगडभं च तं भवे तिविहं। महिलाहिँ निन्नयाहिँ व,गिरिवरगुरुया व भुजंति।।११६।। धम्मत्थं हीणकुला-ई पत्थणं मोहगडभं तं / / 136 // सुद्ध वि जियासु सुट्ठ वि, पियासु सुटु वि परूढपिम्मासु। रागेण गंगदत्तो, दोसेणं विस्सभूइमाईया। महिलासु अभुअगीसु अ, विस्संभं नाम को कुणइ ? ||117 / / मोहेण चंडपिंगल-माईया हंति दिट्ठता ||137 / / विस्संभनिन्भरं पि हु, उवयारपरं परूढपिम्मं पि। अगणिय जो मोक्खसुह, कुणइ नियाणं असारसुहहेउं।
SR No.016147
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1636
LanguageHindi
ClassificationDictionary
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