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________________ इंद 563 अभिधानराजेन्द्रः भाग२ हे चेव / दो उदधिकुमारिंदा पं० 20 जलकंते चेव जलप्पभे ___ सोहम्मीसाणेसु णं कप्पेसु दो इंदा पं० त० सके चेव ईसाणे चेव / दो दिसाकुमारिंदा पं० 20 अमियगई चेव अमियवाह चेव एवं सणंकुमारमाहिंदेसु कप्पेसु दो इंदापं०२० सणंकुमारे चेव। दो वाउकुमारिंदा पं० तं० वेलवे चेव पमंजणे चेव।। चेव माहिंदे चेव / बंभलो य लंतगे दो इंदा पं० तं० बंभे चेव दो थणियकुमारिंदा पं० 20 घोसे चेव महाघोसे चेव। लंतए चेव महासुक सहस्सारेसु णं कप्पेसु दो इंदा पं० तं० (दोअसुरेत्यादि) अधुएचेवेत्येतदन्तं सूत्रं सुगमम्। नवरं असुरादीनां महासुके चेव सहस्सारे चेव आणय-पाणया-रण-बुतेसु णं दशानां भवनपतिनिकायानां मेपेक्षया दक्षिणोत्तरदिगद्वयाश्रितत्वेन कप्पेसु दो इंदा पं०२० पाणए चेव अचुए चेव // द्विविधत्वाविंशतिरिन्द्रास्तत्र चमरो दाक्षिणात्यो बली त्वौदीच्य इत्येवं सौधर्मादिकल्पानान्तुदशेन्द्राः स्था०२ठा०॥ अंतिम देवलोक चतुष्ठय सर्वत्र स्था०॥२ ठा०॥ इन्द्रद्वय सद्भावादिति भ०३ श०६ उ०॥ इत्येवं सर्वेऽपिचतुःषष्ठिरिति एतेषां सङ्ग्रहो यथा॥ 'देवेन्द्रस्तव' प्रकीर्णकच सर्वे इन्द्रा गाथया प्रदर्शिता स्तद्यथा॥ "चमरे 1 धरणे 2 तह वेणुदेव 3 हरिकंत 4 अग्गिसीहे य 5 // पुण्णे 6 वत्तीसा देविंदा, जस्स गुणेहिं उवहम्मिया छायं। जलकं ते वि य, 7 अमिय 8 विलंबे यह घोसेय" ||10|| एते नो तस्स वि यच्छेयं, पायच्छायं नु वेहामो॥६॥ दक्षिणनिकायेन्द्र इतरे तु "बलि 1 भूयाणंदे 2 वेणुदालि 3 हरिस्सहे 4 बत्तीसं देविंदत्ति, भणियमित्तं निसापि यं भणइ। अग्गिमाणव 5 वसिढे 6 जलप्पभे 7 अमियवाहणे 8 पहंजणे / अंतरभासं ताहे, को होमा को वहल्लेणं // 7 // महाघोसे" / / भ० टी०१३ श०१ उ०। कयरे ते बत्तीसं, देविंदा को व कत्थ परिवसइ। व्यंतरेन्द्रायथा। केवइया कस्स ठिई,को भवणपरिग्गहो तस्स ||8|| दो पिसायइंदापं० 20 काले चेव महाकाले चेव। दो भूयइंदा केवइया च विमाणा, भवणा नगरा च हुंति केवइया / पं० तं० सूरूवे चेव पडिरूवे चेव / दो जक्खिदा पं० तं० पुढवीण य बाहुल्लं, उच्चत्तविमाणवन्नो वा // 6 // पुण्णभद्दे चेव माणिभद्दे चेव / दो रक्खसिंदा पं० तं० भीमे चेव कारंति व कालेण, उकोसं मज्झिमजहन्नं / महाभीमे चेव / दो कि नरिंदा पं० 20 किन्नरे चेव किंपुरिसे उस्सासो निस्सासो, ओही विसओ व को केसिं॥१०॥ चेव। दो किं पुरिसिंदा पं० तं० सप्पुरिसे चेव महापुरिसे चेव / विणय उवयार उवहंमि, या इहा स व समुथ्यहंतीए। दो महोरगिंदापं० 20 अइकाये चेवमहाकाये चेव। दो गंधविंदा पडिपुच्छि उ पियाए, भणसु अणु तं निसामेह ||11|| पं० तं०1 गीयरई चेव गीयजसे चेव / स्था०॥ सुअणाणसागराओ, सुविणं उपडिपुच्छणाई यं लद्धं / एवं व्यंतराणामष्टनिकायानां द्विगुणत्वात् षोडशेन्द्राः।स्था०।२ ठा० // पुण वागरणावलिअं, नामा वलियाइ इंदाणं / / 12 / / एतैषु च प्रतिनिकायं दक्षिणोत्तरभेदेन द्वौ द्वाविन्द्रौ स्याताम्। सुणु वागरणावलि, रयणं वयणं सियं च वीरेहि। अणपन्निकायादीनां व्यंतरविशेष वाणव्यन्तरनिकायाना मिन्द्र यथा। तारावलिव्व घवलं, हियएण पसन्नचित्तेणं / / 13|| दो अणपनिंदापं० तं०संनिहिए चेव समाणेचेव / दोपणपनिंदा रयणप्पभाई कुड निकुड, वासीसु तणु तेउलेसागा। पं०तं० धाए चेव विधाये चेवा दो इसिवा इंदापं० तं० इसिबवे वीसं विकसियणयणा, भवणवई मे निसामेह॥१४|| इसिवाले चेव / दो भूयवाय इंदा पं० तं० ईसरे चेव महेसरे दो भवणवई इंदा, चमरे वइरोअण असुराणं / चेव ।दो कंदिंदा पं० तं० सुवत्थे चेव विसाले चेव दो महाकंदिदा दो नाग कुमारिंदा, भूयाणंदे य धरणे य // 15 // पं० 20 हासे चेव हासरई चेव। दो कुंभइंदा पं० तं० सेए चेव दो सुयणु सुवणिंदा, वेणुदेवेय वेणुदालिंदा। महासेए चेव / / दो पयगिंदा पं० तं०पए चेव पयगवई चेव / / दो दीवकुमारिंदा, पुने य तहा वसिडे य // 16|| अणपन्निकायादीनामप्यष्टानामेवव्यंतरविशेषनिकायानांद्वि-गुणत्वात् दो उदहिकुमारिंदा, जलकंते जलप्पभे य नामेणं / षोडशेति। स्था० 2 ठा०॥ अमियगइ अमियवाहण, दिसाकुमाराण दो इंदा॥१७॥ ज्योतिष्कदेवानामिन्द्रा यथा / दो वा उ कुमारिंदा, वेलबं पभंजणा य नामेणं / जोइसियाणं देवाणं दो इंदा पं० तं० चंदे चेव सूरे चेव / / दो थणिय कुमारिंदा, घोसे य तहा महाघोसे // 1|| ज्योतिष्काणां त्वसंख्यातचन्द्र सूर्य्यत्वेऽपि जातिमात्रा-श्रयणादावेव दो विजुकुमारिंदा, हरिकंत हरिस्सहे य नामेणं / चन्द्रसूर्याख्याविन्द्रावुक्तौ / / स्था०२ ठा०।। अग्गिसिह अग्गिमाणव, हूयासणवइ वि दो इंदा।।१६।। सौधर्मादिकल्पेन्द्रा यथा।। एए विकसियनयणे दस, दिसीविय सिय जसा भए कहिया।
SR No.016144
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1224
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size
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