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________________ बहुविध्नानि' की उक्ति के अनुसार हमें यह पुनीत कार्यस्थगित करना पड़ा। कोई ऐसा अवरोध इसके प्रकाशन मार्ग में उपस्थित हो गया कि उसे दूर करना आसान नहीं था प्रकाशन को स्थगित करना सबके लिए दुःखद था, पर मैं मजबूर था। आंतरिक विरोध को जन्म देकर कार्य करना मुझे पसन्द नहीं है। हमारी इस मजबूरी से नाजायज लाभ उठाया-दिल्ली की प्रकाशन संस्थाओं ने .... .............! उन्होंने इस पुनीत ग्रन्थ को शुद्ध व्यावसायिक दृष्टि से चुपचाप प्रकाशित कर दिया / श्रीमद् गुरुदेव ने जो भी लिखा, स्वान्तःसुखाय और सर्वजन हिताय लिखा, व्यवसायियों के लिए नहीं। यही कारण है कि इसकी प्रथम आवृत्ति में यह स्पष्ट कर दिया कि इसके पुनःप्रकाशन का अधिकार त्रिस्तुतिकसकल संघको है। 'त्रिस्तुतिकसमाज की इस अनमोलधरोहर को प्रकाशित करने से पहले त्रिस्तुतिक समाज को इसके प्रकाशन से आगाह करना आवश्यकथा / ऐसा न करके अन्य प्रकाशकों ने एक तरह से नैतिकता का भंग ही किया है। श्रीभाण्डवपुर तीर्थ पर अखिल भारतीय श्रीसौधर्मवृहत्तपोगच्छीय श्रीजैन श्वेताम्बर त्रिस्तुतिक संघका विराट अधिवेशन सम्पन्न हुआ। देश के कोने-कोने से गुरुभक्त उस अधिवेशन के लिए उपस्थित हुए। पावनपुण्यस्थल श्री भाण्डवपुर भक्तजनों के भक्तिभाव की स्वर लहरियों से गूंज उठा। अधिवेशन प्रारंभ हुआ / संयमयःस्थविर मुनिप्रवर श्रीशान्तिविजयजी महाराज साहब आदिमुनि मण्डल की सान्निध्यता में मैंने संघ के समक्ष विश्व की असाधारण कृत्ति इस' अभिधान राजेन्द्र के पुनःप्रकाशन का प्रस्ताव रखा / श्री संघ ने हार्दिक प्रसन्नता व हार्दिक व अपूर्व भावोल्लास के साथ मेरा प्रस्ताव स्वीकार किया और उसी जाजम पर श्रीसंघने इसे प्रकाशित करने की घोषणा कर दी। परमकृपालु श्रीमद् गुरुदेव के प्रति श्री संघ की यह अनन्य असाधारण भक्ति सराहनीय है। और आज अखिलभारतीय श्री सौधर्म बृहत्तपोगच्छीय श्री जैन श्वेताम्बर त्रिस्तुतिकसंघ केद्वारा यह कोशग्रन्थपुनर्मुद्रित होकर विद्वज्जनों के समक्ष प्रस्तुत हो रहा है, यह हम सबके लिए परम आनंद का विषय है। इस महाग्रन्थ के पुनर्मुद्रण हेतु एक समिति का गठन किया गया है, फिर भी इस प्रकाशन में अपना अमूल्य योगदान देने वाले श्रेष्ठिवर्य संघवी श्रीगगलभाई अध्यक्ष अभा सौ.बृ.त्रिस्तुतिकसंघगुजरात विभागीय अध्यक्ष श्री हीराभाई,मंत्री श्री हिम्मतभाई एवं स्थानीय समस्त कार्यकताओं की सेवाओं को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता / इनकी सेवाएं सदा स्मरणीय हैं। इस कार्य में हमें पंडित श्रीमफतलाल झवेरचन्दका स्मरणीय योगदान मिला है। प्रेसकार्य, प्रफरीडिंग एवं प्रकाशन में हमें उनसे अनमोल सहायता मिली है। हम उन्हें नहीं भूल सकते। त्रिस्तुतिक संघ के समस्त गुरुभक्तों ने इस प्रकाशन हेतु जो गुरुभक्ति प्रदर्शित की है, वह इतिहास में अमर हो गई है। वे सबधन्यवाद के पात्र हैं, जिन्होंने इस कार्य में भाग लिया है। शुभम्। नेनावा (बनासकांठा) दिनांक 2-12-85 - आचार्य जयन्तसेनसूरि
SR No.016144
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1224
LanguageHindi
ClassificationDictionary
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