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________________ 44 15- 'भरह' शब्द पर भरत वर्ष का स्वरूपनिरूपण, दक्षिणार्द्ध भरत का निरूपण, और वहाँ के मनुष्यों का स्वरूप, भरत के सीमाकारी वैताढ्य गिरि का स्थाननिर्देश, और इसके गुहाद्वय का निरूपण, तथा श्रेणि और कूटों का निरूपण, उत्तरार्द्ध भरत का निरूपण, भरत इस नाम पड़ने का कारण, तदनन्तर राजा भरत की कथा है। 16 ‘भावणा' शब्द पर भावना का निर्वचन, प्रशस्ताप्रशस्त भावना का निरूपण, मैत्र्यादि भावनाओं के चारभेद, सद्भावना से भावित पुरुष का निरूपण इत्यादि विषय आए हैं। पञ्चम भाग में जिन जिन शब्दों पर कथा या उपकथायें आई हुई हैं उनकी संक्षिप्त नामाऽवली'पण्णपरीसह, 'पउमसेह,''पउमावई,' 'पउमसिरी, 'पउमभद्द,' 'पुढविचंद,' 'फासिंदिय,''बंधुमई,"भद्द, "भद्दणंदिन्, 'भरह,' 'भीमकुमार। षष्ठ भाग में आये हुए कतिपय शब्दों के संक्षिप्त विषय१- 'मग्ग' शब्द पर द्रव्यस्तव और भावस्तव रूप से मार्ग के दो भेद, मार्ग का निक्षेप, मार्ग के स्वरूप का निरूपण इत्यादि अनेक विचार हैं। २-'मरण' शब्द पर सपराक्रम और अपराक्रम मरण, पादपोपगमनादिकों का संक्षिप्त स्वरूप, भक्तपरिज्ञा, बालमरण, कालद्वार, अकाम मरण और सकाम मरण, विमोक्षाध्ययनोक्त मरणविधि, मरण के भेद इत्यादि विषय दिए गए हैं। 3- 'मल्लि' शब्द पर मल्लिनाथ भगवान् की कथा द्रष्टव्य है। 4- 'मिच्छत्त' शब्द पर मिथ्यात्व के छ स्थान, मिथ्यात्वप्रतिक्रमण, मिथ्यात्व की निन्दा मिथ्यात्व का स्वरूप, द्रव्य और भाव से मिथ्यात्व के भेद आदि निरूपित हैं। 5- 'मेहुण' शब्द पर मैथुन के निषेध का गंभीर विचार है। 6- 'मोक्ख' शब्द पर मोक्ष की सिद्धि, निर्वाण की सत्ता है, या नहीं , इसका निरूपण, मोक्ष का कारण ज्ञान और क्रिया है, धर्म का फल मोक्ष है, मोक्ष पर साङ्ख्य और नैयायिकों का मत, मोक्ष पर विशेष विचार, मोक्ष पर वेदान्तियों के मत का निरूपण और खण्डन, स्त्री की मोक्षसिद्धि मोक्ष का उपाय इत्यादि विषय हैं। 7- 'रओहरण' शब्द पर रजोहरण शब्द का अर्थ और व्युत्पत्ति, रजोहरण का प्रमाण, मांसचक्षु वाले मनुष्यों को सूक्ष्म जीव दिखाई नहीं दे सकते इसलिये उनको जीवदयार्थ रजोहरण धारण करना चाहिये, रजोहरण की दशा (कि नारी या अग्रभाग) सूक्ष्म नहीं करना चाहिये, रजोहरण के धारण करने का क्रम और नियम, अनिसृष्ट रजोहरण ग्रहण नहीं करना चाहिये इत्यादि विषय देखने के योग्य है। 8- 'राइभोयण' शब्द पर रात्रिभोजन का त्याग, रात्रिभोजन करने वाला अनुद्घातिक होता है, रात्रिभोजन के चार प्रकार, रास्ते में रात्रि को आहार लेने का विचार, कैसा आहार रात्रि में रक्खा जा सकता है इसका विवेक, राजा से द्वेष होने पर रात्रि को भी आहार लेने में दोषाभाव, रात्रि में उद्गार आने पर उगिरण करने में दोष, रात्रिभोजन प्रतिगृहीत हो तो परिष्ठापना करना, रात्रिभोजन के प्रायश्चित्त, औषधि के रात्रि में लेने का विचार इत्यादि अनेक विषय हैं। 6- 'रुद्दज्झाण' शब्द पर रौद्रध्यान का स्वरूप, और उसके चार भेद, रौद्रध्यानी के चिह्न आदि अनेक विषय हैं। 10- 'लेस्सा' शब्द पर लेश्या के भेद, लेश्याके अर्थ, आठ लेश्याओं का अल्पबहुत्व, देवविषयक अल्पबहुत्व, कौन लेश्या कितने ज्ञानों मे मिलती है, कौन लेश्या किस वर्ण से साधित होती है, मनुष्यों की लेश्या, लेश्याओं में गुणस्थानक,धर्मध्य-नियों की लेश्या आदि विषय हैं। 11- 'लोग' शब्द पर लोक शब्द का अर्थ; और व्युत्पत्ति, लोक का लक्षण, लोक का महत्व, लोक का संस्थान आदि विषय हैं।
SR No.016143
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1078
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size
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