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________________ 40 32- 'चेइयवंदण' शब्द पर नैषेधिकत्रिय, पूजात्रिक, भावनात्रिक, त्रिदिनिरीक्षणप्रतिषेध, प्रणिधान; अभिगम, चैत्यवन्दनदिक् अवगाह, 3 वन्दना, 3 या 4 स्तुति, जघन्यवन्दना, अपुनर्बन्धकाऽऽदिक अधिकारी हैं, नमस्कार, प्रणि-पात दण्डक, 24 स्तव, सिद्धस्तुति, वीरस्तुति, वैयावृत्य की चौथी स्तुति, 16 आकार, कायोत्सर्ग इत्यादि अनेक विषय आए हैं। __तृतीय भाग में जिन जिन शब्दों पर कथा या उपकथायें आई हुई हैं उनकी संक्षिप्त नामावली'एगत्तभावणा,' 'एलकक्ख,' 'एसणासमिइ,' 'कण्णाणयणीय,' 'कण्णीरह, 'कत्तिय, 'कप्प,' 'कप्पअ,' 'कयण्णू, 'कवड्डिजक्ख,' 'कंडरिय, 'कंबल, 'करंडु,' 'कादिय, 'कायगुत्ति, 'काल,''कालसोअरिय,''कासीराज, 'किइकम्म,' 'कुबेरदत्त,. "कुबेरदत्ता,' 'कुबेरसेणा,' 'कोडिसिला,' 'गंगदत्त,' ‘गयसुकुमाल,' 'गुणचंद,' 'गुणसागर,' 'गुत्तसूरि,' 'गुरुकुलवास,' 'गुरुणिग्गह,,' 'गोट्ठामाहिल,' 'चंडरुद्द,' 'चंदगुत्त,' 'चंदप्पभसूरि,' 'चंपा,' 'चक्कदेव,' 'चेइयवंदण,'। चतुर्थमाग में आये हुए कतिपय शब्दों के संक्षिप्त विषय१- 'जीव' शब्द पर जीव की व्युत्पत्ति, जीव का लक्षण, जीव का कथञ्चिन्नित्यत्व, और कथञ्चित् अनित्यत्व, हस्ति और कुन्थु का समान जीव है इसका प्रतिपादन, जीव और चैतन्य का भेदाभेद, संसारी और सिद्ध के भेद से जीव के दो भेद, संसारियों का सेन्द्रियत्व, सिद्धों का अनिन्द्रियत्व इत्यादि विषय वर्णित हैं। 2- 'जोइसिय' शब्द पर जम्बूद्वीपगत चन्द्र सूर्य की सङ्ख्या , तथा लवण समुद्र के, धातकी खण्ड के, कालोद समुद्र के, पुष्करवर द्वीप के, और मनुष्यक्षेत्रगत समस्त चन्द्रादि की संख्या का मान, चन्द्र-सूर्यो की कितनी पङ्क्तियाँ हैं और किस तरह स्थित हैं इसका निरूपण, चन्द्रादिकों के भ्रमण का स्वरूप, और इनके मण्डल, तथा चन्द्र से चन्द्र का और सूर्य से सूर्य का परस्पर अन्तर इत्यादि अनेक विषय हैं जिनका पूरा 2 निरूपण यहाँ नहीं किया जा सकता। 3- 'जोग' शब्द पर योग का स्वरूप, तथा योग के भेद, और योग का माहात्म्य आदि अनेक बृहत् विषय हैं। 4- 'जोनि' शब्द पर योनि का लक्षण, और उसकी संख्या, और भेद, तथा स्वरूप आदि अनेक विषय हैं। 5 'झाण' शब्द पर ध्यान का अर्थ, ध्यान के चार भेद, शुक्लध्यानादि का निरूपण, ध्यान का आसन, ध्यातव्य और ध्यानकर्ताओं का निरूपण, ध्यान का मोक्षहेतुत्व इत्यादि विषय हैं। 6- 'ठवणा' शब्द पर स्थापनानिक्षेप, प्रतिक्रमण करते हुए गणधर स्थापना करते हैं, स्थापनाचार्य का चालन, स्थापना कितने प्रदेश में होती है इसका निरूपण, स्थापना शब्द की व्युत्पत्ति, और स्थापना के भेद इत्यादि विषय हैं। 7- 'ठाण' शब्द पर साधु और साध्व को एक स्थल पर कायोत्सर्ग करने का निषेध, स्थान के पंद्रह भेद, बादर पर्याप्त तेजस्कायिक स्थान, पर्याप्तापर्याप्त नैरयिक स्थान, पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चों का स्थान, भवनपति का स्थान, और स्थान शब्द की व्युत्पत्ति इत्यादि विषय हैं। 8- "ठिई' शब्द पर नैरयिकों की स्थिति, पृथिवीविभाग से स्थितिचिन्ता, देवताओं की स्थिति, तथा देवियों की, भवन वासियों की, भवनवासिनियों की, असुरकुमारों की, असुरकुमारियों की, नागकुमारों की, नागकुमारियों की, सुर्वणकुमारों की, सुवर्णकुमारियों की, पृथिवीकायिकों की, सूक्ष्म पृथिवीकायिकों की, आउकायिकों की, बादर आउकायिकों की, तेउकायिकों की,सूक्ष्म तेउकायिकों की, बादर तेउकायिकों की, वायुकायिक-सूक्ष्म वायुकायिक बादर वायुकायिकों की, वनस्पतिकायिक सूक्ष्म वनस्पतिकायिक बादर वनस्पतिकायिकों की, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक, संमूर्छिम पञ्चेन्द्रिय तिर्यक्, जलचरपञ्चेन्द्रिय, संमूर्छिम जलचर पञ्चेन्द्रिय, चतुष्पद स्थलचरपञ्चेन्द्रिय, संमूर्छिम चतुष्पद स्थलचर पञ्चेन्द्रिय, गर्भापक्रान्तिक चतुष्पद स्थलचर पञ्चेन्द्रिय, उरःपरिसर्प स्थलचरपञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक, भुजपरिसर्प स्थलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक, संमूर्छित भुजपरिसर्प स्थलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक, गर्भापक्रान्तिकभुज०, खचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यम्योनिक, समूछिम०, गर्भापक्रान्ति०, मनुष्यों की स्त्रियों की, नपुंसकों की, निर्ग्रन्थों की, वाणव्यन्तरों की, वाणव्यन्तरियों की, ज्योतिष्कों की, ज्योतिष्कियों की स्थिति-चन्द्रविम न में, सूर्य विमान में, ग्रहविमान में, नक्षत्रविमान में, ताराविमान में स्थिति, वैमानिकों
SR No.016143
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1078
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size
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