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________________ 34 १२-'अमावसा' शब्द पर एक वर्ष में द्वादश अमावास्याओं का निरूपण, तथा उनके नक्षत्रों का योग और उनके कुल, एवं कितने मुहूर्तों के जाने पर अमावास्या के बाद पूर्णमासी और पूर्णमासी के बाद अमावास्या आती है इत्यादि विषय हैं; और 'अयण' शब्द पर अयन का परिमाण, करण का निरूपण, चन्द्रायण के परिज्ञान में करण आदि विषय रमणीय हैं। 13- 'अहिंसा' शब्द पर अहिंसा का स्वरूपनिरूपण, अहिंसा व्रत का लक्षण, जिनको यह मिली है और जिन्होंने इसको ग्रहण की है उनका वर्णन, अहिंसा पालन में उद्यत पुरुषों का कर्तव्य, अहिंसा की पांच भावनाएँ, प्राणीमात्र की हिंसा करने का निषेध, वैदिक(याज्ञिक) हिंसा पर विचार, प्राणी के न मारने के कारण, जैनों के समान अन्य मत में अहिंसा के अभाव का निरूपण, अन्य मत में अहिंसा को मोक्ष की कारणता मुख्य न (गौण) होना, एकान्त नित्य अथवा एकान्त अनित्य आत्मा के मानने वालों के मत में अहिंसा का व्यर्थ हो जाना, आत्मा के परिणामी होने पर भी हिंसा में अविरोध का प्रतिपादन, आत्मा के नित्यानित्यत्व और देह से भिन्नाभिन्नत्व होने में प्रमाण, तथा आत्मा के शरीरावच्छिन्न होने में गुण आदि विषय ध्यान देने के योग्य हैं। प्रथम माग में जिन जिन शब्दों पर कथा या उपकथायें आई हैं उनकी नामावली'अइमुंतय' 'अउज्झा' 'अंगारमद्दग"अंजू' 'अंड' 'अंबड' 'अक्कर' कीर्तिचन्द्र नरचन्द्र की 'अक्खपूया' 'अक्खुद्द' 'अगडदत्त' 'अगहिल्लगराय' 'अचंकारियभट्टा' 'अचल' 'अजिअदेव' 'अज्जगंग' 'अजचंदणा' 'अज्जमंगु''अज्जमणग' 'अज्जरक्ख' 'अज्जरक्खिय' 'अज्जव' (अङ्गर्षिकथा) 'अज्जवहर' 'अजुमणग' ' अट्ठण' 'अट्ठावय' 'अहिअगाम' 'अडवि' 'अणिस्सिओवहाण' 'अणीयस' 'अणुवेलंधर' 'अणुब्भमवेस' 'अण्णायया' 'अण्णियाउत्त' 'अत्तदोसोवसंहार' 'अत्थकुसल' 'अदृगकुमार' 'अप्पमाय' 'अव्वुय' 'अभग्गसेण' 'अभयकुमार' 'अभयदेव' 'अमरदत्त' 'अर' 'अरहण्णय' 'अरिट्ठनेमि' 'अलोभया' 'अवंतिसुकुमाल''असढ' 'अस्साववोहितित्थ' 'अहिच्छत्ता' 'अहिणंदण' 'आदि शब्दों पर कथायें द्रष्टव्य हैं। द्वितीय भाग के कतिपय शब्दों के संक्षिप्त विषय१- 'आउ' शब्द पर आयु के भेद, आयु प्राणीमात्र का अतिप्रिय है इसका निरूपण, आयु की पुष्टि के कारण, और उनके उदाहरणादि देखने चाहिये। 2- 'आउक्काय' शब्द पर अप्कायिकों के भेद, अप्कायिक के शरीरादि का वर्णन, और उसके सचित्त-अचित्त-मिश्र भेदों का निरूपण, उष्ण जल की अचित्तसिद्धि, अप्काय शस्त्र का निरूपण, अप्काय की हिंसा का निषेध, अप्काय के स्पर्श का निषेध, और शीतोदक के सेवन का निषेध आदि विषय हैं / 3- 'आउट्टि शब्द में चन्द्र और सूर्य की आवृत्तियाँ किस ऋतु में और किस नक्षत्र के साथ कितनी होती हैं इत्यादि विषय देखने के योग्य हैं। ४-'आगम' शब्द पर लौकिक और लोकोत्तर भेद से आगम के भेद, आगम का परतः प्रामाण्य, आगम के अपौरुषेयत्व का खण्डन, आप्तों के रचे हुए ही आगम का प्रामाण्य, जहाँ जहाँ प्रामाण्य का संभव है वह सभी प्रमाणीभूत है इसका निरूपण, मूलागम से अतिरिक्त के प्रामाण्य न होने पर विचार,शब्द के नित्यत्व का विचार, जो आगमप्रमाण का विषय होता है वह अन्य प्रमाण का भी विषय हो सकता है इसका विचार, धर्ममार्ग और मोक्षमार्ग में आगम ही प्रमाण है, जिनागम का सत्यत्वप्रतिपादन, सब व्यवहारों में आगम के ही नियामक होने का विचार, बौद्धों के अपोहवाद का संक्षिप्त निरूपण इत्यादि पचीस विषय बड़े रमणीय हैं। 5- 'आणा' शब्द पर आज्ञा के सदा आराधक होने का निरूपण, परलोक में आज्ञा ही प्रमाण है, आज्ञा की विराधना करने में दोष, तथा आज्ञाभङ्ग होने पर प्रायश्चित्त, आज्ञारहित पुरुष का चारित्र ठीक नहीं रह सकता, और आज्ञा के व्यवहार आदि का बहुत ही अच्छा विचार हैं। 6- 'आणुपुव्वी' शब्द पर बहुत ही गम्भीर 12 विषय विद्वानों के देखने योग्य हैं /
SR No.016143
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1078
LanguageHindi
ClassificationDictionary
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