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________________ 28 इस ग्रन्थ में जो संकेत (नियम) रखे गये हैं वे इस तरह हैं 1- मागधीभाषा का मूलशब्द, और उसका संस्कृत अनुवाद, तथा मूल की गाथा, और मूलसूत्र, जिसकी टीका है ] मोटे (ग्रेट) अक्षरों में रखा है। 2- यदि कोई गाथा टीका में भी आई है और उसकी भी टीका है तो उसे दो लाइन (पङ्क्ति) में रखा है। और मोटे अक्षरों में न रखकर गाथा के आदि अन्त में ("") ये चिह्न दिए हैं। फिर उसके नीचे से उसकी टीका चलाई गई है। अन्य स्थल में तो मूल मोटे अक्षरों में, और टीका छोटे (पाइका) अक्षरों में दी गई है। 3- जहाँ कहीं उदाहरण में प्राकृत वाक्य या संस्कृत श्लोक आया है उसके आद्यन्त में " यह चिह्न दिया गया है, किन्तु एक से ज्यादा गाथा या श्लोक जहाँ कहीं बिना टीका के हैं वहाँ पर भी दो दो लैन करके उनको रखा है। और यदि एक ही है तो उसी लैन में रखा है। और जहाँ टीका अनुपयुक्त है वहाँ पर मूलमात्र ही मोटे अक्षरों में रखा है। 4- जिस शब्द का जो अर्थ है उसको सप्तम्यन्त से दिया है और उसके नीचे यह चिह्न दिया है और उसके बाद जिस ग्रन्थ से वह अर्थ लिया गया है उसका नाम भी दे दिया है। यदि उसके आगे उस ग्रन्थ का कुछ भी पाठ नहीं है तो उस ग्रन्थ के आगे अध्ययन उद्देशादि जो कुछ मिला है वह भी दिया गया है और यदि उस ग्रन्थ का पाठ मिला है तो पाठ की समाप्ति में अध्ययन उद्देश आदि रखे गए हैं, किन्तु अर्थ के पास केवल ग्रन्थ का ही नाम रखा है। ५-मागधीशब्द और संस्कृत अनुवाद शब्द के मध्य में तथा लिङ्ग और अनुवाद के मध्य में भी (-) यह चिह्न दिया है। इसी तरह तदेव दर्शयति-तथा चाह- या अवतरणिका के अन्त में भी आगे से संबन्ध दिखाने के लिए यही चिह्न दिया गया है। ६-जहाँ कहीं मागधी शब्द के अनुवाद संस्कृत में दो तीन चार हुए हैं तो दूसरे तीसरे अनुवाद को भी मोटे ही अक्षरों में रखा है किन्तु जैसे प्राकृत शब्द सामान्य पङ्क्ति (लाईन) से कुछ बाहर रहता है वैसा न रखकर सामान्य पङ्क्ति के बराबर ही रखा है और उसके आगे भी लिङ्गप्रदर्शन दिया है; बाकी सभी बात पूर्ववत् मूलशब्द की तरह दी है। 7- किसी किसी मागधीशब्द का अनुवाद संस्कृत में नहीं है किन्तु उसके आगे 'देशी' लिखा है वहाँ पर देशीय शब्द समझना चाहिए, उसकी व्युत्पत्ति न होने से अनुवाद नहीं है। ८-किसी किसी शब्द के बाद जो अनुवाद है उसके बाद लिङ्ग नहीं है किन्तु (धा०) लिखा है उससे धात्वादेश समझना चाहिये। 6- कहीं कहीं (ब०व०) (क०स०) (बहु०स०) (त०स०) (न०त०) (३त०) (४त०) (५त०) (६त०) (७त०) (अव्यपी० स०) आदि दिया हुआ है उनको क्रम से बहुवचन; कर्मधारय समास; बहुव्रीहि तत्पुरुष; नञ्तत्पुरुषः तृतीयातत्पुरुष; चतुर्थीतत्पुरुष; षष्ठीतत्पुरुष; सप्तमीतत्पुरुष; अव्ययीभाव समास समझना चाहिए। 10- पुंस्त्री० न०। त्रि०ा अव्यo--का संकेत क्रम से पुँल्लिङ्ग; स्त्रलिङ्ग नपुंसकलिङ्ग : त्रिलिङ्ग और अव्यय समझना। अध्ययनादि के सङ्केत और वे किन किन ग्रन्थों में हैं... 11- 1 अ०-अध्ययन-आवश्यकचूर्णि, आवश्यकवृत्ति, आचाराङ्ग, उपासकदशाङ्ग, उत्तराध्ययन, ज्ञाताधर्मकथा, दशाश्रुतस्कन्ध, दशवैकालिक, विपाकसूत्र और सूत्रकृतान में हैं। 2 अधि०-अधिकार-अनेकान्तजयपताकावृत्तिविवरण, गच्छाचारपयन्ना, धर्मसंग्रह और जीवानुशासन में हैं।
SR No.016143
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1078
LanguageHindi
ClassificationDictionary
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