________________ अक्खयपूया 137 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 1 अक्खयपूया पुरओ नरा कुणतो, पावंति अखंडियसुहाई।।८५!। इय गुरुवयणं सोउं, अक्खयपूआ समुच्छलं लोओ। दठूणं सा सूई,पभणइ निअअत्तणो कंत।।८६|| अम्हे विनाह! एवं, अक्खयपुंजत्तएण जिणनाह। पूएमो अचिरेणं, सिद्धिसुहं जेण पावेमो॥८७॥ एवं तीए भणिऊण चंचुपुडे खिविय चोक्खक्खएहिं। रइअंजिणिंदपुरओ, पुंजतिअंकीरमिहुणेण ||8|| भणिअं अवच्चजुअलं, जणणीजणएहिं जिणवरिंदस्स। पुरओ मुंचह अक्खे, पावह जेणक्खयं सुक्खं / / 6 / / इय पइदियह काउं, अक्खयपूअंजिणिंदभत्तीए। आउक्खए गयाई, चत्तारि वि देवलोगम्भि ||6|| भुत्तूण देवसुक्खं, सो सुअजीवो पुणो विचविऊण। संजाओ हेमपूरे,राया हेमप्पहो नाम ||1|| सो विय सूईजीवो, तत्तो चविऊण देवलोगाओ। हेमप्पहस्स भज्जा, जाया जयसुंदरी नाम // 12 // सा पच्छिमा वि सूई,संसारे हिंडिऊण सा जाया। हेमप्पहस्स रन्नो, रइनामा भारिया दुइया / / 63| अन्नाओ वि कमेणं, पंचसया जाव भारिया तस्स। जायाओ पुण इहा, पढमा ते भारिया दो वि // 14 // (संजाया पुण इट्ठा, पढमाओ भारिया दुन्नि) इति पाठान्तरम्। अह अन्नया नरिंदो, दूसहजरतावतावियसरीरो। चंदणजलुल्लिओ विहु, लोलइ भूमीइ अप्पाणं / / 65|| एवं असणविहूणो, चिट्ठइ जा तिन्नि सत्तए राया। ता मंततंतकुसला, विज्जा वि परं मुहा जाया // 66|| उग्धोसयई सत्ती, दिजंति य बहुविहाइँ दाणा'। जिणभवणेसु य पूआ, देवयआराहणाओ य॥६७।। रयणी य पच्छिमद्धे, पयडी होऊण रक्खसो भणइ। किं सुत्तो सि नरेसर, ! भणइ निवो कहं णु मह निद्दा / / 68|| ओआरणं करेउं,अप्पाणं जइ नरिंद! तुहभज्जा। पक्खिवइ अग्गिकुंडे, तो जीविअं अन्नहा नत्थि |6|| इअ भणिऊण नरिंद, विणिग्गओ रक्खसो नियट्ठाणं / राया विम्हियहियओ, चिंतइ किं इंदजालु त्ति / / 100 / / किं वा दुक्खत्तेणं, अज्ज मए एस सुविणगो दिहो। अहवा न होइ सुविणो, पचक्खो रक्खसो एसो॥१०१।। इत्तो विनयपसहिया, योलीणा जामिणी नरिंदस्स। उदयाचलम्मि चढिओ, सूरो विहुकमलिणीनाहो // 102 / / रयणीए वुत्तंतो, नरवइणा साहिओ सुमंतिस्स। तेण वि भणिउं किज्जउ, देव ! इमं जीवियकज्जम्मि // 103 / / परजीविएणं नियजीवियरक्खणं न हुकुणंति सप्पुरिसा। ता होउं मज्झ विहियं, इय भणिओ राइणा मंती // 104|| सदाविऊण सव्याउ,मंतिणा नरवइस्स भजाओ। कहिओ रक्खसभणिओ, वुत्तंतो ताण नीसेसो॥१०५|| सोऊण मंतिवयणं, सव्वाओ नियजीवियस्स लोहेण / ठाउं अहोमुहीओ, न दिति मंतिस्स पडिवयणं / / 106 / / पप्फुल्लवयणकमला, उद्देउ भणइरई महादेवी। मह जीविएण देवो, जइ जीवइ किं न पज्जत्तं / / 107 / / इय भणिए सो मंती, भवणगवक्खस्स हिट्ठभूमीए। काराविऊण कुंडं, आरोहइ अगरुकठेहिं / / 108 / / सा वि य कयसिंगारा, नमिऊणं भणइ अत्तणो कंत। सामिय ! मह जीविएणं, जीवसु निवडामि कुंडम्मि // 10 // भणइ सक्ख राया मज्झकएदेवि! चयसमा जीयं / अणुहवियव्यं च मए,सयमेवपुराकयं कम्म।।११। पभणइ चलणविलग्गा, सामिय ! मा भणसु एरिसं वयणं / जंजाइ तुज्झ कज्जे, तं सुलह जीवियं मज्झ॥१११।। ओआरणं करेउं, अप्पोणं साडबला विनरवइणो। भवणगवक्खे ठाउंजलिए कुंडम्मि पक्खिवई // 112|| अह सो रक्खसनाहो, तीसे सत्तेण तोसिओ सहसा। अप्पत्तं विय कुंडे, हुयासदूरं समुक्खिवई / / 113 / / भणिया रक्खसवइणा, तुह्रो हं अज्ज तुज्झ सत्तेण / मग्गसु जं हियइट्ठ, देमि वरं तुज्झ किं बहुणा ? ||114 // जणणिजणएहि दिन्नो, हेमपहो महवरो किमन्नेण? | मग्गसु तह विहुभद्दे !, देवाण न दंसणं विहलं // 11 // जइ एवं ता एसो, मह भत्ता देव ! तुह पसाएण। जीवउ वाहिविहीणो, चिरकालं होउ एस घरो।।११६।। एवं तिपभणिऊणं, दिव्वालंकारभूसियं काउं। कंचणपउमे मूत्तु, देवो हुअदंसणीहूओ।।११७।। जीव तुम भणइ जणो, सीसे पुप्फक्खए खिवेऊण। नियजीवियदाणेणं, जीए जीवाविओ भत्ता // 118|| तुट्ठो तुह सत्तेणं, वरसुवरं जंपिए पियं तुज्झ। भणिया पइणा पभणइ, देव ! वरो मह तुमं चेय॥११॥ जीवियमुल्लेण तुए, वसीकओ हंसया वि कमलच्छि!। ता अन्नं करणीयं, भणसु तुम भणइ सा हसिउं / / 120 // जइ एवं ता चिट्ठउ, एस वरो सामि! तुह सयासम्मि। अवसरवडियं एयं, पच्छिस्सं तुह सयासाओ।।१२१। अह अन्नया रईए, भणिया पुत्तस्थितीइ कुलदेवी। जयसुंदरिपुत्तेणं, देमि बलिं होउ मह पुत्तो।।१२२। भवियव्वयावसेणं, जाया दुण्हं पि ताण वरपुत्ता। बहुलक्खणसंपुन्ना, सुहजणया जणणिजणयाणं / / 123 / / तुट्ठा रई वि चिंतइ, दिन्नो कुलदेवयाइ मह पुत्तो। जयसुंदरिपुतेणं, कह कायव्या मए पूआ।।१२४॥ एवं चिंततीए, लद्धो पूयाइ साहुणो वाओ। नरवइवरेण रज्ज़, काऊण वसे करिस्सामि / / 125 / / इय चिंतिऊण तीए, अवसरपत्ताइ पभणिओ राया। जो पुट्विं पडिवन्नो, सो दिजउ मह वरो सामि!॥१२६।। मग्गसु जं हियइट्ठ, देमि वइंजीवियं पि किं बहुणा?| जइ एवं ता दिज्जह,मह रज पंचदियहाई॥१२७|| एवं त्ति पणिऊणं, दिन्नं तुह पिये! मए रज्ज। पडिवन्नं तं तीए, महापसाउत्ति काऊणं / / 128| पालइ सा तं रजं. पत्तो रयणीए पच्छिमे जामे / जयसुंदरीइ पुत्तं, आणावइ रोयमाणीए / / 126 / / तंण्हाविऊण बालं, चंदणपुप्फक्खएहिं पूएउं। पडलयउवरि काउं, ठावइ दासीइसीसम्मि।।१३०|| वचइ परियणसहिया, उजाणे देवयाइ भवणम्मि। वजिरतूर-रवेणं, नच्चिर नरनारिलोएण // 131 / / अह विजाहरवइणा, कंचणपुरसामिएण सूरेण। वचंतेण नहेणं, दिट्ठो सो दारगो तेण / / 132 / उज्जोयंतो गयणं, दिणयरतेउव्व निययतेएण। गहिऊण तेण अलक्खं, अन्नं मयबालगं मुत्तुं // 133|| भणिया सुता भञ्जा, जंघोवरिबालगं ठवेऊण। उहह लहुं किसोयरि!, पिच्छसु नियदारगं जायं / / 134 //