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________________ आमुख डिक्शनरी को हिन्दी में शब्दकोश कहा गया है। इससे लगता है कि ऐसे ग्रन्थ में शब्दभंडार पर अधिक बल दिया जाता है। अंग्रेज़ी के 'डिक्शन' शब्द का अर्थ कुछ व्यापक है। 'डिक्शन' से तात्पर्य शब्दों के चयन के आधार पर उनका शैलीगत प्रयोग होता है। प्रयोग की शिक्षा व्याकरण देता है किन्तु सबसे अधिक महत्व शैली में अर्थ का होता है। इस दृष्टि से डिक्शनरी केवल शब्दकोश नहीं है। शायद, ऐसे ग्रंथ को शब्दार्थ कोश कहना उचित जान पड़ता है। फिर भी, रूढ़ अर्थ में शब्दकोश के अन्तर्गत व्याकरण का संकेत और अर्थों की छटाएँ सम्मिलित हैं। कोश में शब्दों का चयन एक महत्वपूर्ण समस्या है। हिन्दी में एक परम्परा चली हुई है कि शब्दकोश में सब तरह के शब्द जो प्राप्त हैं आ जाने चाहिये । हमारे कोश साहित्य में तीन बड़े कोश उदाहरण स्वरूप लिए जाएँ – हिन्दी शब्द सागर, मानक हिन्दी कोश और बृहत् हिन्दी कोश । इन सब में हिन्दी की आधुनिक शब्दावली का संग्रह करने पर इतना ध्यान नहीं दिया गया जितना उपलब्ध कोशों में प्राप्त शब्दभंडार पर । एक ओर तो जन-विज्ञान, दर्शन, मनोविज्ञान, भूगोल आदि की शास्त्रीय शब्दावली का अभाव सा है और दूसरी ओर हिन्दी बोलियों के ठेठ शब्द सम्मिलित कर लिए गए हैं, यहाँ तक कि कबीर, सूर, तुलसी, बिहारी आदि के काव्यों से ढेरों शब्द संग्रहीत करके दे दिए गए हैं। ऐसे शब्दों का प्रचलन बहुत सीमित है और मानक हिन्दी में इनका प्रयोग कतई नहीं होता है। बोलियों के शब्दकोशों का महत्व अवश्य है। कबीर, सूर, तुलसी और बिहारी के काव्यों पर आधारित शब्दकोश प्राप्त हैं। अन्य कवियों या लेखकों की शब्दावली का संग्रह कर लेने की आवश्यकता से इनकार नहीं किया जा सकता। अंग्रेज़ी, रूसी, फ्रेंच आदि यूरोप की भाषाओं में बोली के कोश अलग हैं और प्राचीन मध्यकालीन और अर्वाचीन भाषा के कोश अलग हैं। अधिकतर प्रकाशन अर्वाचीन भाषाओं से संबंधित हैं क्योंकि इस युग में अर्वाचीन भाषाओं का विस्तार अधिक होने के कारण उनकी उपयोगिता भी बहुत अधिक है। रेडियो, दूरदर्शन, पत्र-पत्रिकाओं और शिक्षा-दीक्षा के क्षेत्र में प्रचलित भाषा का ही व्यवहार होता है। प्रस्तुत कोश अर्वाचीन, प्रचलित और व्यापक हिन्दी भाषा का शब्दकोश है। शब्द-चयनः- हिन्दी में छोटे-बड़े अनेक शब्दकोश प्राप्त हैं । उन्नीसवीं शताब्दी में जो कोश प्रकाशित हुए थे उनमें एक हज़ार से लेकर पाँच हज़ार शब्द थे। उनका उद्देश्य स्कूली पाठ्य-पुस्तकों से शब्द-संग्रह करके मात्र छात्रोपयोगी बनाना था। बीसवीं शताब्दी के पहले चरण में काशी नागरी प्रचारिणी सभा ने उस समय तक प्राप्त हिन्दी के सारे शब्द-भंडार की खोज करके हिन्दी शब्द सागर का प्रकाशन कराया। सभा का उद्देश्य स्पष्ट था। इस दृष्टि से हिन्दी शब्द सागर हमारे कोश साहित्य में मील के पत्थर के समान था। इससे नए युग का
SR No.016141
Book TitleShiksharthi Hindi Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHardev Bahri
PublisherRajpal and Sons
Publication Year1990
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size30 MB
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