SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 480
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पचासी पचासी - 1 (वि०) जो अस्सी से पाँच अधिक हो II (पु० ) 85 की संख्या पचित - सं० (वि०) 1 पचा हुआ 2 मिला हुआ पचीस - I (वि०) बीस से पाँच अधिक II ( पु० ) 25 की संख्या 466 = पचीसी (स्त्री०) 1 एक ही तरह की पचीस वस्तुओं का समूह 2 गणना का एक प्रकार जिसमें पचीस चीज़ों की एक इकाई मानी जाती है (जैसे-पचीसी गाही फल में 125 फल होते हैं) पचूका - बो० (पु० ) पिचकारी पचोतर - (वि०) पाँच अधिक, पाँच ऊपर (जैसे-पचोतर सौ) पचौनी - ( स्त्री०) 1 पचने पचाने की क्रिया 2 अँतड़ी, आँ पचौली - बो० (पु० ) गाँव का मुखिया, पंच पचौवर - (वि०) पंचवर पच्चड़, पच्चर - (पु० ) 1 बाँस, लकड़ी आदि का छोटा तथा पतला टुकड़ा (जैसा-पच्चड़ घुसेड़ना) 2 अड़चन, रुकावट । ~ ठोंकना, मारना बाधा खड़ी करना, रुकावट डालना पच्ची - (स्त्री०) धातुओं, पत्थरों आदि पर नगीने आदि के छोटे-छोटे टुकड़े जड़ने की क्रिया (जैसे सोने के कंगन में हीरे की पच्ची) । कारी + फ़ा० (स्त्री०) 1 पच्ची की जड़ाई करने की क्रिया 2 पच्ची करके तैयार किया गया काम पच्छम- (वि०) / (पु० ) पश्चिम पच्छमी - (वि०) पश्चिम का पच्छिम - I (पु० ) पिछला पश्चिम (जैसे- पच्छिम दिशा) II (वि०) - = पछड़ना - ( अ० क्रि०) : परास्त होना, हार जाना 2 पटका जाना पछताना - (अ० क्रि०) पश्चाताप करना पछतावा - (पु० ) पछताने की क्रिया, पश्चाताप (जैसे- पछतावा करना) पछना - (अ० क्रि०) हल्का चीरा लगाया जाना पछवाँ-I (वि०) 1 पश्चिम दिशा संबंधी 2 पश्चिम की ओर से आनेवाला (जैसे-पछवाँ हवा) II (स्त्री० ) पश्चिम से आनेवाली हवा III (अ० ) - पीछे पछाँह - ( पु० ) सुदूर पश्चिम का प्रदेश पछाँहिया - (वि०) पछाँही पछाड़ - ( स्त्री०) 1 पछाड़ने की क्रिया 2 पछाड़े जाने की अवस्था 3 बेसुध होने की अवस्था (जैसे-दुःखद समाचार सुनकर वह पछाड़ खाकर ज़मीन पर गिर पड़ी)। खाना बेसुध होना, बेहोश होना पछाड़ना - 1 (स० क्रि०) साफ़ करने के लिए कपड़े को पत्थर आदि पर पटकना II (स० क्रि०) 1 कुश्ती आदि में चित करना 2 वाद-विवाद आदि में हराना पछिआना - (स० क्रि०) 1 पीछा करना 2 अनुगामी बनकर चलना, अनुकरण करना पछियाँव - (स्त्री०) पछवाँ पछियाना- (स० क्रि०) पछिआना पछीत - (स्त्री०) मकान के पीछे का भाग, घर का पिछवाड़ा पछुवाँ - (वि०) / (पु० ) ( स्त्री० ) = पछवाँ पछेलना- (स० क्रि०) 1 आगे निकलना 2 पीछे ढकेलना पछली - (स्त्री०) पिछली पछोड़ना - (स० क्रि०) बो०, पछोरना (स० क्रि०) सूप पटबंधक अनाज आदि रखकर हिलाते हुए कूड़ा-करकट अलग करना, फटकना (जैसे- अनाज पछोड़ना) पजरना - (अ० क्रि०) 1 प्रज्वलित होना 2 जलना 3 तपना पजामा - फ़ा० बो० (पु०) = पाजामा पजारना - (स० क्रि०) 1 प्रज्वलित करना 2 जलाना 3 संतप्त करना पजावा - फ़ा० (पु० ) ईंट, चूना आदि पकाने का भट्ठा, आँवा पजोखा - ( पु० ) मातम - पुरसी पटंबर - सं० (पु०) रेशमी कपड़ा, कौषेय पट - सं० (पु० ) 1 वस्त्र, कपड़ा 2 पोशाक 3 परदा, आवरण । ~ कथा ( स्त्री०) मुख्य कथा ~ चित्र (पु० ) 1 पर्दे पर आनेवाला चित्र 2 सिनेमा की फ़िल्म ~धारी (वि०) जो वस्त्र पहने हो; परिवर्तन (पु० ) 1 परदा बदलना 2 दृश्य बदलना पट - I ( पु० ) 1 चिपटा एवं चौरस तल 2 चौरस ज़मीन (जैसे-पट उघड़ना) 3 दरवाज़ा पट-II (वि०) 1 खाली पड़ा हुआ 2 उलटा पड़ा हुआ, औंधा (जैसे- भगोना पट पड़ा था ) पट - III (अ०) तुरंत, शीघ्र, तत्काल (जैसे-पट से बोल पड़ना) पटकना - I (स० क्रि०) 1 गिराना (जैसे उसने थाली पत्थर पर पटक दी) 2 रखना (जैसे-सिर पर हाथ पटकना) 3 दे मारना (जैसे- उसने कुश्ती में उसे पटक दिया) पटकना - II ( अ० क्रि०) 1 सिकुड़ना 2 पट ध्वनि करते हुए टूटना (जैसे-मिट्टी का घड़ा पटकना) 3 पचकना पटकनी - (स्त्री०) 1 पटकने की क्रिया, पटकान 2 पटके जाने की क्रिया 3 पछाड़ खाकर गिरने की क्रिया पटका - (पु० ) 1 कमर में बाँधने का दुपट्टा, कमरबंद 2 गले क दुपट्टा । ~पकड़ना रोक रखना; बाँधना उद्यत होना, तैयार होना पटड़ा - (पु० ) = पटरा पटतर- I (पु०) 1 तुल्यता, बराबरी 2 सादृश्य आधार पर दी जानेवाली उपमा II (वि०) चौरस, समतल III ( क्रि० वि०) तुल्य, समान पटना- (अ० क्रि०) 1 पाटा जाना 2 बराबर होना 3 पाटन पड़ना 4 खेत का पानी से सींचा जाना 5 सौजन्य पूर्ण संबंध होना (जैसे- आजकल उन लोगों की खूब पटती है) 6 सहमति होना (जैसे-सौदा पटना ) 7 चुकता होना (जैसे-सारा कर्ज़ पट गया) पटनिया- (वि०) पटना नगर से संबंध रखनेवाला पटनी - (स्त्री०) 1 पटने की अवस्था 2 पाटने की क्रिया 3 छत पट-पट - (स्त्री०) वस्तुओं के गिरने से उत्पन्न होनेवाला पट शब्द पटपटाना - I (अ० क्रि०) 1 पट-पट शब्द करना 2 कष्ट पाना 3 शोक करना II (स० क्रि०) पट-पट ध्वनि उत्पन्न करना पटपर-I (वि०) 1 चौरस, समतल 2 बरबाद II (पु०) उजाड़ और सुनसान जगह पटबंधक - I हिंο + सं० (पु०) संपत्ति को रेहन रखने का वह प्रकार जिसमें संपत्ति की सारी आय महाजन ले लेता है तथा आय से सूद निकालने के बाद बचा धन मूल ऋण में जमा होता जाता है II (वि०) रेहन रखा हुआ
SR No.016141
Book TitleShiksharthi Hindi Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHardev Bahri
PublisherRajpal and Sons
Publication Year1990
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy