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________________ कोशकारों में रामचन्द्र वर्मा इस संबंध में बहुत सावधान रहे हैं, वे शब्दार्थ निश्चयन में सबसे कुशल माने जा सकते हैं, किन्तु अर्थ की साधना में वे पूर्णतया सफल नहीं हो पाए। मानक हिन्दी कोश में (उदाहरणस्वरूप) 'अकर्मक' का अर्थ "क्रिया के दो मुख्य भेदों में से एक, जिसके साथ कोई कर्म नहीं होता अथवा जिसमें कर्म की उपेक्षा नहीं होती' दिया गया है। इस अर्थ में पुनरुक्ति दोष भी है और अतिव्याप्ति दोष भी। प्रस्तुत कोश में दोषों से बचने का भरसक प्रयास किया गया है, फिर भी यह दावा नहीं किया जा सकता कि हम पूर्णतया सफल हो पाये हैं। यह सही है कि अर्थ की भाषा सरल होनी चाहिए, परंतु शब्द ही सरल हो तो उसका अर्थ और अधिक सरल करना कठिन ही नहीं, कभी-कभी असंभव हो जाता है। रोटी, हाथ, दाँत, आना, जाना, उठना, बैठना आदि सैंकड़ों शब्द ऐसे हैं जिनका अर्थ देने में बड़ी कठिनाई होती है। हमने कोशिश अवश्य की है कि अर्थ को यथासम्भव सरल भाषा में दिया जाये। जिन शब्दों के अर्थ एक से अधिक हैं उनके अर्थों को 1, 2, 3, 4 संख्या देकर लिखा गया है ताकि पाठक को स्पष्ट रूप में अर्थ की भिन्नता जान पड़े। जहां शब्द के अर्थ, व्याकरण, भाषा स्रोत अथवा वैज्ञानिक शाखा के अनुसार भिन्न हैं वहां अर्थ से पूर्व रोमन I, II, III, आदि लिखा गया है। बहुत से अनेकार्थ शब्दों की व्याख्या में कोई पदबंध या छोटा सा वाक्य दे दिया गया है जिससे शब्द का प्रयोग अधिक स्पष्ट हो जाता है। शब्दों और अर्थों के चयन में हमने अनेक कोशों से सहायता ली है जिसके लिए हम उन कोशों के संपादकों के प्रति अपना आभार मानते हैं और जो कुछ इस कोश में नया या मौलिक है वह अपने पाठकों को समर्पित करते हैं। अप्रेल, 1990 हरदेव बाहरी
SR No.016141
Book TitleShiksharthi Hindi Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHardev Bahri
PublisherRajpal and Sons
Publication Year1990
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size30 MB
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