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________________ ऋग्वेद 1 ( ८५ ) [ ऋग्वेद 'सामवेद' गेय है । 'यजुर्वेद' में 'ऋग्वेद' के मन्त्रों का यज्ञ में उपयोग किया जाता था । इसमें गद्यमय जो सूक्त प्राप्त होते हैं, वे ही विषय की दृष्टि से नवीन हैं । 'अथर्ववेद' में मारण, मोहन और उच्चाटन आदि मन्त्रों एवं जादू-टोनों का वर्णन है । कर्म, भक्ति या ज्ञान की दृष्टि से अन्य वेदों में कोई नवीनता नहीं है । ऋग्वेद में विचारों की मौलिकता, स्वतन्त्र चिन्तन एवं प्राकृतिक दृश्यों का मनोहारी वर्णन है । ज्ञान, कर्म और भक्ति तीनों विचारधाराओं के सूत्र इसमें विद्यमान हैं। अतः प्राचीनता, विषय, ज्ञान, विस्तार तथा भाषा की दृष्टि से 'ऋग्वेद' वैदिक वाङ्मय का सुमेरु सिद्ध होता है । में ऋग्वेद के विभाग — ऋक् का अर्थ है 'स्तुतिपरक मन्त्र' तथा 'वेद' का अर्थ ज्ञान होता है । 'ऋग्वेद' स्तुतिपरक मन्त्रों का ज्ञान है । इसमें मुख्यतः देवताओं की स्तुतियाँ संगृहीत हैं । इसके दो प्रकार के विभाग हैं- अष्टकक्रम तथा मण्डलक्रम । अष्टकक्रम . के अनुसार सम्पूर्ण ग्रन्थ आठ भागों विभाजित किया जाता है जिन्हें 'अष्टक' कहते हैं । प्रत्येक अष्टक में आठ अध्याय हैं । इस प्रकार पूरे ग्रन्थ में ६४ अध्याय हैं । प्रत्येक अध्याय के भी अवान्तर विभाग किये गए हैं, जिन्हें 'वर्ग' कहा जाता है । ऋचाओं का समूह ही वर्ग कहलाता है, किन्तु वर्गों में ऋचाओं की संख्या नियत नहीं है । सम्पूर्ण वर्गों की संख्या दो हजार छह है । । 'ऋग्वेद' का दूसरा विभाग अत्यन्त महत्त्वशाली है, साथ ही इसे ऐतिहासिक एवं अधिक वैज्ञानिक माना जाता है। इस क्रम के अन्तर्गत समग्र वेद दस खण्डों में विभक्त है, जिन्हें 'मण्डल' कहते हैं इसीलिए निरुक्तादि ग्रन्थों में इसकी संख्या 'दशतयी' है । मण्डलों को 'अनुवाक्' के अन्तर्गत बाँटा गया है एवं प्रत्येक अनुवाक् के भीतर 'सूक्त' आते हैं । सूक्तों के अन्तर्गत 'ऋचाएँ' हैं, जिन्हें 'मन्त्र' भी कहा जाता है । 'ऋग्वेद' के शुद्ध पाठ को अक्षुण्ण रखने के लिए एवं उसकी वैज्ञानिकता पर आँच न आने देने के लिए प्राचीन ऋषियों ने मंत्रों की ही नहीं, अक्षरों तक की डाली है । महर्षि कात्यायन ने अपने ग्रन्थ 'सर्वानुक्रमणी' में समस्त कर एकत्र किया है । 'ऋग्वेद' के दसो मण्डलों में पचासी अनुवाक् हैं तथा सूक्तों की संख्या एक हजार सत्रह है । इनके अतिरिक्त ग्यारह सूक्त ऐसे हैं, जिन्हें 'बाल्य खिल्य' कहा जाता है । सूक्तों की ऋचाओं की संख्या १०५८० है, शब्दों की एक लाख तिरपन हजार आठ सौ छब्बीस और अक्षर चार लाख बत्तीस हजार हैं। खिल ( परिशिष्ट ) सूक्तों का न तो पदपाठ मिलता है और न इनकी अक्षर-गणना की गयी है । खिल का अभिप्राय परिशिष्ट या पीछे जोड़े गए मन्त्रों से है । ये सूक्त अष्टम मण्डल के ४९ से ५९ सूक्त तक हैं । गणना कर मन्त्रों की गणना ऋचां दश सहस्राणि ऋचां पञ्चशतानि च । ऋचामशीतिः पादश्च पारणं संप्रकीर्तितम् ॥ वेदे त्रिसहस्रयुक्तम् । शाकल्यदृष्टे पदलक्षमेकं साधं च शतानि चाष्टौ दशकद्वयं च पदानि षट् चेति हि चचितानि ॥ अनुवाकानुक्रमणी श्लोक ४३, ४५
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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