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________________ उत्तररामचरित]. ( ७० ) [ उत्तररामचरित वेदना नष्ट हो जाती है और वे सन्तोषपूर्वक कहती हैं-अहमेवैतस्य हृदयं जानामि, ममैष-मैं भी उनके हृदय की बात जानती हूँ और वे भी मेरे मन की बात जानते हैं। 'उत्खातितमिदानी मे परित्यागशल्यमार्यपुत्रेण । आर्यपुत्र ने मेरे निर्वासनरूपी शल्य को उखाड़ दिया। राम के वियोग में उनके शरीर की जो अवस्था हो जाती है उससे उनके प्रेम की प्रतीति होती है परिपाण्डुदुर्बलकपोलसुन्दरं दधती विलोलकवरीकमाननम् । . .. करुणस्य मूतिरथवा शरीरिणी विरहव्यथेव वनमेति जानकी ।। ३।४ ।। 'पीत एवं कुश कपोलों से सुन्दर चन्चल केश-समूह से युक्त मुख को धारण करती हुई करुणा की मूर्ति अथवा शरीरधारिणी विरह-वेदना ही जानकी के रूप में आ रही है।' सीता-त्याग के कारण वासन्ती जब राम को उपालम्भ देती है तो सीता उसे अच्छा नहीं मानतीं। उनके अनुसार वह प्रदीप्त आर्यपुत्र को और भी अधिक प्रदीप्त कर रही है-'स्वयमेव सखि वासन्ति, दारुणा कठोरा च यैवमार्यपुत्र प्रदीप्तं प्रदीपयसि ।' ___सीता विशालहृदया नारी हैं तथा उदार भी। पशु-पक्षी आदि के लिए भी उनके हृदय में स्नेह भरा हुआ है। राम के वन-गमन के समय पालित कदम्ब वृक्ष, गजशावक एवं मयूरों को देखकर उनके हृदय में वात्सल्य की धारा उमड़ पड़ती है। पशु पक्षियों एवं प्रकृति के प्रति भी वे अनुराग प्रदर्शित करती हैं। पूर्वपालित वन वृक्षों को देखकर उन्हें अपने पुत्र लव-कुश की भी याद हरी हो जाती है और फलस्वरूप उनके पयोधरों से दूध चूने लगता है। "सीता में गम्भीरता के साथ विनोदप्रियता भी है। प्रथम अङ्क में चित्र-दर्शन के समय जब लक्ष्मण माण्डवी एवं श्रुतिकीत्ति का परिचय देकर उर्मिला को छोड़ देते हैं तो सीता उर्मिला की ओर संकेत करती हुई मधुर परिहास करती हैं-'वत्स इयमप्यरा का ?' इस प्रकार 'उत्तररामचरित' में सीता आदर्शपत्नी, विरह की प्रतिमा, सहनशीलता की मूर्ति एवं निश्छल, दृढ़ तथा पवित्र प्रेम से पूरित चित्रित की गई हैं। .. 'उत्तररामचरित' में दो दर्जन के लगभग पात्रों का चित्रण किया गया है, किन्तु उनमें महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व सीता एवं राम का ही है। अन्य चरित्रों में लव, चन्द्रकेतु, जनक, कौसल्या, वासन्ती एवं महर्षि वाल्मीकि भी कथावस्तु के विकास में महत्त्वपूर्ण शृङ्खला उपस्थित करते हैं। इसमें कवि ने तमसा, मुरला, भागीरथी, पृथ्वी एवं वन देवता आदि प्रतीकात्मक पात्राओं का भी चरित्रांकन किया है तथा ये, विशिष्ट भावों से पूर्ण भी हैं। विद्याधर एवं विद्याधरी भी कथानक को गति देने में महत्त्वपूर्ण योगदान करती हैं । सबों के हृदय में सीता के प्रति करुणा का भाव एवं राम के प्रति श्रद्धा है। - रस-'उत्तररामचरित' का अङ्गीरस करुण है । कवि ने करुण को प्रधान रस मानते हुए इसे निमित्त भेद से अन्य रसों में परिवत्तित होते हुए दिखाया है। - एको रसः करुण एव निमित्तभेदाद्भिन्नः पृथक्पृथगिवाधयते विवर्तान् । .. आवर्तबुबुदतरङ्गमयान्विकारानम्भो यथा सलिलमेव हि तत्सरूपम् ॥ ३।४७, - प्रधान रस करुण के शृङ्गार, वीर, हास्य एवं अद्भुत रस सहायक के रूप में उपस्थित किये गये हैं। इस. नाटक में भवभूति की भारती करुण रस से इस प्रकार ITRA
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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