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________________ शिवकुमार शास्त्री ] ( ७०५ ) [ सत्यव्रत शास्त्री चरण स्वरूप जिनेश्वर की स्तुति की गयी है तथा वस्तुव्यंजना के रूप में नगर, वन, षड्ऋतु, संयोग, वियोग, विवाह, युद्ध आदि विविध विषय वर्णित हैं। महाकाव्य में जातीय जीवन की अभिव्यक्ति एवं प्रौढ भाषाशैली के दर्शन होते हैं। प्रसादगुणमयी भाषा के प्रयोग से यह ग्रन्थ दीप्त है । पुत्रं बिना न भवनं सुषमां दधाति चन्द्रं विनेव गगनं समुदग्रतारम् । सिंहं विनेब विपिनं विलसत्प्रतापम् क्षेत्रस्वरूपकलितं पुरुषं विनेव ३।७१ । शिवकुमार शास्त्री - [ १८४० - १९१८ ई० ] इनका जन्म वाराणसी से उत्तर बारह मील की दूरी पर स्थित उन्दी नामक ग्राम में हुआ था । इनकी माता का नाम मतिरानी एवं पिता का नाम रामसेवक मिश्र था । ये सरयूपारीण ब्राह्मण थे । इन्होंने वाणीदत्त चौबे से व्याकरण का अध्ययन किया था तथा १८५१ ई० में गवर्नमेन्ट संस्कृत कॉलेज, वाराणसी में प्रवेश किया । इन्हें तत्कालीन सरकार द्वारा महामहोपाध्याय की उपाधि प्राप्त हुई तथा शृंगेरी के जगद्गुरु शंकराचार्य ने 'सर्वतन्त्र स्वतन्त्रपण्डितराज' की उपाधि से अलंकृत किया । इन्होंने अने ग्रन्थों की रचना की है । ( १ ) लक्ष्मीश्वरप्रताप :- यह महाकाव्य है जिसमें लक्ष्मीश्वर सिंह तक दरभंगा नरेशों की वंश गाथा का वर्णन है । यती वनचरितम् - यह १३२ श्लोकों का खण्डकाव्य है । इसमें भास्करानन्दसरस्वती का जीवन चरित वर्णित है । ( ३ ) शिवमहिम्नश्लोक की टीका, (४) परिभाषेन्दुशेखर की व्याख्या, ( ५ ) लिङ्गधारणचन्द्रिका श्लोक है - दिने दिने कालफणी प्रकोपं कुर्वन् समागच्छति सन्निधानम् । निपीतमोहासवजातमादो न भीतिमायाति कदापि कोऽपि ॥ दे० आधुनिक संस्कृत साहित्य डॉ० हीरालाल शुक्ल । १४ वर्ष की अल्पावस्था में उत्तीर्ण की। १९५३ ई० सत्यव्रत शास्त्री ( डाक्टर ) - इनका जन्म १९३० ई० में लाहौर में हुआ था । इन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा अपने पिता एवं संस्कृत के सुप्रसिद्ध विद्वान् पं० चारुदेव शास्त्री के निर्देशन में प्राप्त की। डॉ० सत्यव्रत ने ही पंजाब विश्वविद्यालय की शास्त्री परीक्षा १९४४ ई० में में इन्होंने संस्कृत एम० ए० की परीक्षा पंजाब विश्वविद्यालय से उत्तीणं की ओर प्रथम श्रेणी में प्रथम रहे। इन्हें १९५५ ई० में हिन्दूविश्वविद्यालय से पी-एच० डी० की उपाधि प्राप्त हुई । इनके अनुसन्धान का विषय था- 'सम इम्पॉर्टेन्ट एस्पेक्टस् ऑफ द फिलॉसफी ऑफ भर्तृहरि - टाइम एण्ड स्पेस' । ये १९७० ई० से दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृतविभाग में अध्यक्ष हैं । इन्होंने 'श्री बोधिसत्वचरितम्' नामक महाकाव्य की रचना एक सहस्रश्लोकों में की है। इनका अन्य महाकाव्य 'गुरुगोविन्द सिंहचरितम्' है, जिसमें सिखों के गुरु गुरुगोविन्द सिंह की जीवनगाथा वर्णित है । इस ग्रन्थ पर कवि को १९६८ ई० के साहित्य अकादमी का पुरस्कार प्राप्त हुआ है । [दे० 'गुरु गोविन्द सिंहचरितम्'] लेखक की अन्य रचनाओं के नाम इस प्रकार है-मैकडोनल कृत 'वैदिकग्रामर' का हिन्दी अनुवाद 'एसेज ऑन इण्डोलॉजी', 'द रामायण : ए लिंग्विष्टिक स्टडी', 'द कन्सेप्ट ऑफ़ टाइम एण्ड स्पेस इन इण्डियन थॉट' एवं 'द लैंगुएज एण्ड पोस्ट्री ऑफ द योगवासिष्ठ' । ४५ सं० सा०
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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