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________________ मधुसूदनसरस्वती] (७००) [ मधुसूदन ओझा इन्होंने भारतीय संविधान के उत्तराखं का संस्कृत में अनुवाद किया है। शास्त्री जी ने कई शोधनिबन्धों का भी प्रणयन किया है जो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं जैसे-ऐतरेय ब्राह्मण पर्यालोचन, ऐतरेयारण्यक पर्यालोचन, कौषीतकि ब्राह्मण पर्यालोचन, एवं शतपथब्राह्मण पर्यालोचन । इन्होंने 'रश्मिमाला' एवं 'अमृतमंथन' नामक दो नीति उपदेशप्रधाम काव्यों की रचना की है। 'रश्मिमाला' में १६ रश्मियां हैं और नीति, सदाचार, लोकनीति, राजनीतिजाध्यात्मक एवं ईश्वरभक्ति-विषयक पद्य हैं । 'अमृत-मंथन' के तीन विभाग हैं-लम्मान, जीवनपाथेय तथा प्रज्ञा प्रसाद । उनकी 'प्रबन्ध प्रकाश' नामक संस्कृत गद्यरचना दो भागों में प्रकाशित है। इनकी पद्यरचना सरस एवं प्रौढ़ है। अवाप्य विद्या विनयेन शून्या अहंयवो दुर्जनतां व्रजन्ति । दुग्धस्य पानेन भुजङ्गमानां विषस्य वृद्धिभुवनासिता ॥ सप्तरश्मि २९ । मधुसूदनसरस्वती-इनका जन्म बंगलादेश के कोठालीपाद नामक स्थान (जिला फरीदपुर ) में १६ वीं शताब्दी में हुआ था। ये गो० तुलसीदास के समकालीन थे और वाराणसी में रहकर ग्रन्थलेखन करते थे। इनके पिता का नाम पुरन्दराचार्य था। यहां से ये नवद्वीप में न्यायशास्त्र के अध्ययन के निमित्त गये थे और वहाँ से वाराणसी गए। इनके द्वारा रचित ग्रन्थों की संख्या आठ है-वेदान्तकल्पलतिका, अद्वैतरत्न रक्षण, सिद्धान्तबिन्दु, संक्षेपशारीरकसारसंग्रह, गीता गूढार्थदीपिका, भक्तिरसायन, भागवतपुराणप्रथमश्लोकव्याख्या, महिम्नस्तोत्रटीका । इनकी सर्वाधिक महत्वपूर्ण रचना गीता का भाष्य है। भक्तिरसायन भक्ति रस की महनीय रचना है जिसमें एकमात्र भक्ति को ही परम रस सिद्ध किया गया है। मधुसूदन अद्वैतवादी आचार्य थे । इन्होंने अद्वैतिसिद्धान्त के आधार पर ही भक्तिरस को सर्वोत्कृष्ट रस माना है। इनके अनुसार परमानन्द-रूप परमात्मा के प्रति प्रदर्शित रति ही परिपूर्ण रस है और श्रृंगारादि क्षुद्ररसों से उसी प्रकार प्रबल है जिस प्रकार कि खद्योतों से सूर्य की प्रभा । परिपूर्णरसा क्षुद्ररसेभ्यो भगवदतिः । खद्योतेभ्य इवादित्यप्रभेव बलवत्तरा ।। भगवद्भक्तिरसायन, २१७८ । दे० स्टडीज इन द फिलॉसफी ऑफ मधुसूदनसरस्वतीडॉ० संयुक्ता गुप्ता। मधुसूदन ओझा (विद्यावाचस्पति)-(समय १८४५ ई. १९१८ ई०)। इनका जन्मस्थान बिहार राज्य के अन्तर्गत मुजफ्फरपुर जिले का गाढ़ा गांव है। इनके पिता वैद्यनाथ ओझा संस्कृत के उद्भट विद्वान् थे। ओमाजी अपने पिता के बड़े भाई के दत्तक पुत्र थे । इन्होंने वाराणसी में शिक्षा पायी थी और १८६८ ई. में महाराजा संस्कृत कॉलेज, जयपुर में वेदान्त के अध्यापक नियुक्त हुए। ये १९०२ ई० में एडवर्ड के राज्याभिषेक के अवसर पर इंग्लैण्ड गए । इन्हें समीक्षाचक्रवर्ती, विद्यावाचस्पति तथा महामहोपदेशक की उपाधियां प्राप्त हुई थीं। इन्होंने लगभग १३५ ग्रन्थों का प्रणयन किया है। दिव्यविभूति, आर्यहृदयसर्वस्व, निगमबोध, विज्ञानमधुसूदन, यज्ञविज्ञानपद्धति, प्रयोगपारिजात, विश्वविकास, देवयुगयुगाभास, ज्योतिश्चक्रधर, भात्मसंस्कारकल्प, वाक्पदिका, गीताविज्ञानभाज्यस्य प्रथमरहस्यकाण्डम्, गीताविज्ञानभाष्यस्य द्वितीयमूल.
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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