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________________ स्वप्नवासवदत्त ] ( ६७२ ) [ स्वप्नवासवदत्त स्वप्रवासवदत्त - यह महाकवि भास रचित उनका सर्वश्रेष्ठ नाटक है [ दे० भास ]। इसमें ६ अंक हैं तथा वत्सराज उदयन की कथा वर्णित है । उदयन राजा प्रद्योत के प्रासाद से वासवदत्ता का हरण कर विषय-वासना में लिप्त हो राजकीय कार्यों से विरत हो जाता है। इसी बीच उसका शत्रु आरुणि उस पर आक्रमण कर देता है, पर उदयन का मन्त्री यौगन्धरायण सचेत होकर सारी समस्याओं का समाधान निकाल लेता है । यौगन्धरायण मगधनरेश की पुत्री पद्मावती से राजा का ( उदयन का ) विवाह करा कर उसकी शक्तिविस्तार करना चाहता है, पर राजा वासवदत्ता के प्रति अत्यन्त अनुरक्त है, अतः वह दाव पेंच के द्वारा यह कार्य सम्पन्न करना चाहता । वह वासवदत्ता से सारी योजना बनाकर इस कार्य में उसकी सहायता चाहता है । एक दिन जब राजा मृगया के लिए जाते हैं तो योगन्धरायण यह अफवाह फैला देता है कि वासवदत्ता और वह दोनों ही आग में जल गए। जब राजा आखेट से आते हैं तो अत्यधिक संताप से पीड़ित होकर प्राणत्याग करने को उद्यत हो जाते हैं, पर अमात्यों के समझाने पर विरत होते हैं । अमात्य रुमण्यवान् राज्य का संरक्षण करने लगता है । यौगन्धरायण परिव्राजक का वेष बनाकर वासवसत्ता को लेकर मगधनरेश की राजधानी में घूमता है । उसी समय पद्मावती अपनी माता के दर्शन के लिए जाती है और कंचुकी आश्रमवासियों से पूछता है कि जिसे जो वस्तु अभीष्ट हो, वह मांगे । यौगन्धरायण आगे आकर पूछता है कि यह मेरी भगिनी प्रोषितपतिका है आप इसका संरक्षण करें। उसने दैवज्ञों से सुन रखा था कि पद्मावती के साथ उदयन का विवाह होगा, अतः वह वासवदत्ता को पद्मावती के साथ रखना उपयुक्त समझता है । पद्मावती के साथ उदयन का विवाह हो जाता है। राजा को वासवदत्ता की स्मृति आ जाती है और वे उसके वियोग में बेचैन हो जाते हैं । उनके नेत्रों में आंसू आ जाते हैं । उसी समय पद्मावती आ जाती है और उदयन उससे बहाना बनाते हुए कहता है कि उसकी आंखों में पुष्व-रेणु पड़ गए थे। पद्मावती शिरोवेदना के कारण चली जाती है और राजा सो जाता है । वह स्वप्न में वासवदत्ता का नाम लेकर बड़बड़ाने लगता है । उसी समय वासवदत्ता आती है और राजा को पद्मावती समझकर उसके पास सो जाती है। राजा वासवदत्ता का नाम पुकारने लगता है । वासवदत्ता वहाँ से चल देती है, पर नींद टूटने पर उदयन उसका पीछा करता है और धक्का लगने पर द्वार के पास गिर पड़ता है । विदूषक उसे बतलाता है कि यह स्वप्न था । एक दूत महामेन के यहाँ से आकर राजा उदयन एवं वासवदत्ता का चित्र - फलक लाकर राजा को देता है | पद्मावती उसे देखकर कहती कि ऐसी ही स्त्री एक मेरे पास भी है जिसे एक ब्राह्मण ने प्रोषितपतिका कह कर मेरे पास रखा था। राजा उससे तुल्यरूपता की संभावना की बात कहता है, अतः वह कोई अन्य स्त्री होगी। इसी बीच यौगन्धरायण आ जाता हैं और पद्मावती से अपना न्यास मांगता है । वासवदत्ता आ जाती है और सभी लोग उसे पहचान लेते हैं । यौगन्धरायण राजा के चरणों पर गिर पड़ता है और अपने अविनय के लिए क्षमा मांगता है। राजा द्वारा इस रहस्य को पूछने पर वह बतलाता है कि देवशों ने पद्मावती के साथ आपके विवाह की बात
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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