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________________ स्तोत्र काव्य या भक्तिकाव्य ] [ स्तोत्रकाव्य या भक्तिकाव्य नामक ५१ स्रग्धरावृत्त में लिखित स्तोत्र में भगवान् विष्णु का नखशिख वर्णित है । इसके रचयिता आद्यशंकराचायं न होकर कोई पीठाधीश हैं। मधुसूदन सरस्वती ( १६वीं शती) ने 'आनन्दमन्दाकिनी' नामक स्तोत्र में विष्णु के स्वरूप का मधुर चित्रण किया है। इसमें १०२ पद्य हैं। माधवभट्ट कृत 'दानलीला' कृष्ण एवं गोपियों की विशेष लीला के आधार पर रचित है। इसमें ४८ पद्य हैं तथा रचनाकाल १६२८ संवत् ( १५७१ ई० ) है । अप्यय दीक्षित ने 'वरदराजस्तव' नामक स्तोत्र की रचना कांची के भगवान् वरदराज की स्तुति में की है। इसमें १०६ श्लोकों में भगवान् के रूप का वर्णन किया गया है । पण्डितराज जगन्नाथ ने 'भामिनीविलास' नामक ग्रन्थ की रचना की है, जिसमें पांच लहरियाँ हैं—करुणा, गंगालहरी, अमृतलहरी ( यमुनालहरी ), लक्ष्मीलहरी एवं सुधालहरी ( सूर्यलहरी ) [ दे० पण्डितराज जगन्नाथ ] । इन स्तुतियों में कविता का स्वाभाविक प्रवाह तथा कल्पना का मोहक चित्र है । शैवस्तोत्र - भगवान् शंकर की स्तुति अनेक कवियों ने लिखी है। काश्मीरी कवियों ने अनेक शिवस्तोत्रों की रचना कर स्तोत्र साहित्य को समृद्ध किया है । इनमें उत्पलदेव कृत 'शिवस्तोत्रावली' एवं 'जगद्धरभट्ट' रचित 'स्तुति कुसुमांजलि' अत्यन्त प्रसिद्ध हैं । 'शिवस्तोत्रावली' में २१ विभिन्न स्तोत्र संकलित हैं तथा 'स्तुतिकुसुमांजलि' में ३८ स्तोत्र हैं, जिनमें १४१५ श्लोक हैं । अन्य शेव स्तोत्र हैं—नारायण पण्डिताचार्य की 'शिवस्तुति' (१३ श्लोक ) तथा गोकुलनाथ कृत 'शिवशतक' । ये १८वीं शती में हुए थे 1 जैन स्तोत्र - जैन स्तोत्रों में मानतुंग कृत 'भक्तामर' तथा सिद्धसेन दिवाकर रचित 'कल्याणमन्दिर' भाषा सौष्ठव एवं भावों की मंजुल अभिव्यक्ति के लिए प्रसिद्ध हैं । चौबीस तीर्थकरों के पृथक् पृथक् समय में स्तोत्र लिखे गए हैं । समन्तभद्र से जिन प्रभसूर तक के आचार्यों ने 'चतुविशिका' में स्तोत्रों का संग्रह किया है । इसके अतिरिक्त श्रीवादिराज कृत 'एकीभावस्तोत्र' सोमप्रभाचायं रचित 'सूक्तिमुक्तिवली' तथा जम्बूगुरु कृत 'जिनशतक' हैं । बौद्धस्तोत्र - महायान सम्प्रदाय के बौद्धों ने संस्कृत को अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया है । इस सम्प्रदाय में शुष्कशान की अपेक्षा भक्तितत्व पर अधिक बल दिया गया है । शून्यवाद के आचार्य नागार्जुन ने भी भक्तिस्तोत्रों की रचना की थी । इनके चार स्तोत्र 'चतुःस्तव' के नाम से विख्यात हैं। इन पर कालिदास की छाया दिखाई पड़ती है । नवम शती के वज्रदत्त ने 'लोकेश्वरशतक' स्तोत्र की रचना की, जिसमें सग्धरा छन्द में अवलोकितेश्वर की स्तुति है । कहा जाता है कि इन्होंने कुष्ठरोग के निवारणार्थ ही इस ग्रन्थ की रचना की थी । सर्वज्ञमित्र ( ८ वीं शताब्दी) ने देवी तारा-सम्बन्धी स्तोत्र की रचना ३७ श्लोकों में की है । ये काश्मीरक थे। इनकी रचना का नाम है 'आर्यातारा- त्रग्धरास्तोत्र' । बंगाल - निवासी रामचन्द्र कविभारती ( १२४५ ई०) ने 'भक्तिशतक' की रचना कर भगवान् बुद्ध की स्तुति की है । यह भक्ति-सम्बन्धी प्रौढ़ कृति है। आचार्य हेमचन्द्रकृत 'अन्ययोगव्यवच्छेदिका' नामक स्तोत्रग्रन्थ भी प्रसिद्ध है । इन ग्रन्थों के अतिरिक्त अनेक स्तोत्र प्रसिद्ध हैं, जैसे – 'देबोपुष्पांजलि' तथा ( ६६८ )
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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