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________________ सौन्दरनन्द ] ( ६६२ ) [ सौन्दरनन्द धिकारविधि, राजा के कर्तव्य, वर्णाश्रमव्यवस्था का सम्यक् संचालन, प्रजापरिपालन, न्यायव्यवस्था की स्थापना, असहाय तथा अनाथ- परिषोषण, राजा की दिनचर्या, राजा की रक्षा, मन्त्रियों की आवश्यकता, मन्त्रिसंख्या, मन्त्र- निर्णय मन्त्रिपद की योग्यता - निवासयोग्यता, आचार-शुद्धि, अभिजन-विशुद्धि, अभ्यसनशीलता, व्यभिचारविशुद्धि, व्यवहारतन्त्रज्ञता, अस्त्रशता, उपधा विशुद्धि, मन्त्रसाध्यविषय दूतपद, दूत की योग्यता, भेद, कत्तंव्य एवं दूत की अवध्यता, चर एवं उसकी उपयोगिता, चर-भेद न्यायालय एवं उसके भेद, शासन-प्रमाण, कोश एवं उसके गुण, विविध कर, दुर्ग-भेद, षाड्गुण्य नीति, सैन्यबल, युद्ध-निषेध, युद्धविधि आदि । आधारग्रन्थ - भारतीयराजशास्त्र प्रणेता डॉ० श्यामलाल पाण्डेय । संकीर्ण धरातल से सौन्दरनन्द ( महाकाव्य ) – इसके रचयिता महाकवि अश्वघोष हैं [ दे० अश्वघोष ] | इस महाकाव्य की रचना १८ सर्गों में हुई है। इसके दो हस्तलेख नेपाल के राजकीय पुस्तकालय में सुरक्षित हैं, जिनके आधार पर हरप्रसाद शास्त्री ने इसका प्रकाशन 'बिब्लिओथेका इण्डिका' में कराया था। इसका सम्बन्ध बुद्ध के चरित से ही है । उसमें कवि ने योवनजनित उद्दाम काम तथा धर्म के प्रति उत्पन्न प्रेम के विषम संघर्ष की कहानी को रोचक एवं महनीय भाषा में व्यक्त किया है । यह 'बुद्धचरित' की अपेक्षा काव्यात्मक गुणों से अधिक मण्डित तथा उससे सुन्दर एवं afer स्निग्ध है [ दे० बुद्धचरित ]। इस काव्य में अश्वघोष ने बुद्ध के सौतेले भाई नन्द एवं उनकी पत्नी सुन्दरी की मनोरम गाथा का वर्णन किया है। 'बुद्धचरित' में कवि का ध्यान मुख्यतः उनके सम्पूर्ण जीवन को चित्रित करने, बौद्धधमं के उपदेशों तथा दर्शन पर ही केन्द्रित था पर 'सौन्दरनन्द' में वह अपने को ऊपर उठाकर काव्य के विशुद्ध पक्ष की ओर अग्रसर होता हुआ दिखाई पड़ता है । इसकी कथा इस प्रकार है-प्रथम से तृतीय सगं में बताया गया है कि बुद्ध के विमातृज भ्राता नन्द परम सुन्दर थे और उनकी पत्नी सुन्दरी अत्यन्त रूपवती थी। दोनों एक दूसरे के प्रति चक्रवाकी एवं चक्रवाक की भाँति आसक्त थे । मंगलाचरण के स्थान पर बुद्ध का उल्लेख कर कपिलवस्तु का वर्णन किया गया है। शाक्यों की वंशपरम्परा, सिद्धार्थ का जन्म आदि 'बुद्धचरित' को कथा यहाँ संक्षेप में वर्णित है। द्वितीय सगं में राजा शुद्धोदन का गुण-कीर्तन एवं बुद्ध के जन्म की कथा है। इसी सगं में नन्द के जन्म का भी वर्णन है । तृतीय सगं में गोतम की बुद्धत्व प्राप्ति आदि घटनाएं वर्णित हैं । चतुर्थ सर्ग का प्रारम्भ नन्द एवं सुन्दरी के विहार एवं रति-विलास से होता है । कामासक्त नन्द एवं सुन्दरी को कोई दासी आकर सूचित करती है कि उसके द्वार पर बुद्ध भिक्षा माँगने के लिए आये थे, पर भिक्षा न मिलने के कि दोनों प्रणय क्रीड़ा में निमग्न थे, अतः किसी का ध्यान बुद्ध के चले जाने के लिए चल पड़ता है। और बुद्ध उसके हाथ में देते हैं, तथा नन्द काषाय 1 कारण लोट कर चले गए । तथागत की ओर न गया । पश्चात् नन्द लज्जित एवं दुःखित होकर उनसे क्षमा-याचना के पंचम सर्ग में नन्द मार्ग मे बुद्ध को देखकर प्रणाम करता है। भिक्षा का पात्र रख कर उसे धर्म में दीक्षित होने का उपदेश धारण कर लेता है। वह सगं में कवि ने पति की प्रतीक्षा
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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