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________________ सुदर्शन सूरि ] (६५८) [सुधाकर द्विवेदी समय इनके वाक्य बड़े हो जाते हैं तथा कहीं-कहीं तो ये बीस पृष्ठों तक के भी वाक्य लिख देते हैं । अनेक स्थलों पर इन्होंने स्वाभाविकता का भी निर्वाह किया है। ___ आधारग्रन्थ-१. संस्कृत साहित्य का इतिहास-श्री कीथ (हिन्दी अनुवाद )। २. हिस्ट्री ऑफ संस्कृत क्लासिकल लिटरेचर- डॉ. दासगुप्त एवं डॉ. हे। ३. संस्कृत साहित्य का इतिहास-पं. बलदेव उपाध्याय । ४. संस्कृत कवि-दर्शन-डॉ० भोला. शंकर व्यास । ५. संस्कृत काव्यकार-डॉ० हरिदत्त शास्त्री। ६. वासवदत्ता(संस्कृत-हिन्दी-टीका)-हिन्दी अनुवादक पं. शंकरदेव शास्त्री (चौखम्बा प्रकाशन)। सुदर्शन सूरि-विशिष्टाद्वैतवाद नामक वैष्णव दर्शन के आचार्य सुदर्शन सूरि हैं। इनका समय १३वीं शताब्दी का अन्तिम चरण है । इनके गुरु का नाम वरदाचार्य पा। इन्होंने रामानुजाचार्य रचित श्रीभाष्य के ऊपर 'श्रुत-प्रकाशिका' नामक व्याख्याग्रंथ की रचना की थी। इसके अन्य ग्रंथ हैं-'श्रतदीपिका', 'उपनिषद्-व्याख्या', 'तात्पर्यदीपिका' (यह 'वेदार्थसंग्रह' की टीका है ) तथा श्रीमद्भागवत की 'शुकपक्षीयटीका'। दे. भारतीय दर्शन-आ० बलदेव उपाध्याय । . सुधाकर द्विवेदी-बीसवीं शताब्दी के असाधारण ज्योतिर्विद । इन्हें वर्तमान ज्योतिशास्त्र का उद्धारक माना जाता है। ये ज्योतिष के अतिरिक्त अन्य शास्त्रों के भी मर्मज्ञ थे। फ्रेंच, अंगरेजी, मराठी तथा हिन्दी आदि भाषाओं पर इनका समान अधिकार था। इनका जन्म १८६० ई. में हुआ था और मृत्यु १९२२ ई० में हुई। ये बनारस के संस्कृत कॉलिज में ज्योतिष तथा गणित के अध्यापक थे। इन्हें सरकार की ओर से महामहोपाध्याय की उपाधि भी प्राप्त हुई थी। इन्होंने अनेक प्राचीन ग्रन्थों ( ज्योतिषविषयक) की शोधपूर्ण टीकाएं लिखी हैं तथा अर्वाचीन उच्च गणित-विषयक कई ग्रन्थों की रचना की है । इनके ग्रन्थों के नाम इस प्रकार हैं-१. दीर्घवृत्त लक्षण । २. वास्तव चन्द्रगोन्नतिसाधन-इसमें प्राचीन भारतीय ज्योतिष शास्त्रियों-लल्ल, भास्कर, शानराज, गणेश, कमलाकर प्रभृति-के सिद्धान्तों में दोष दर्शाते हुए तद्विषयक यूरोपीय ज्योतिषशास्त्र के अनुशार विचार प्रस्तुत किये गए हैं । ३. विचित्र प्रश्न-इसमें ज्योतिष संबंधी २० कठिन प्रश्नों को हल किया गया है। ४. धुचरचार-इसमें यूरोपीय ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ग्रहकक्ष का विवेचन है। ५. पिंटप्रभाकर-इसमें भवननिर्माण संबंधी बातों का वर्णन है। ६. धराभ्रम-इसमें पृथ्वी की दैनिक गति पर विचार किया गया है। ७. ग्रहग्रहण में ग्रहों का गणित वर्णित है। ८. गणकतरंगिणी-इसमें प्राचीन भारतीय ज्योतिषशास्त्रियों की जीवनी एवं उनकी पुस्तकों का विवरण है। इनके अन्य मौलिक ग्रन्थों में 'गोलीय रेणागणित' एवं पाश्चात्य ज्योतिषशास्त्री यूक्लिड की ६ठी, ११वीं एवं १२वीं पुस्तक का संस्कृत में श्लोकवन अनुवाद है। इनके द्वारा रचित टीका ग्रन्थों का विवरण इस प्रकार है। क-यंत्रराज के ऊपर 'प्रतिभाबोधक' नामक टीका । ख-भास्कराचार्य रचित 'लीलावती' एवं 'बीजगणित' की 'सोपपत्तिक टीका' । ग-भास्कराचार्य-रचित 'करण कुतूहल' नामक ग्रन्थ की 'वासनाविभूषण' टीका । प-वराहमिहिर की 'पंचसिवान्तिका' पर 'पंचसिद्धान्तिका
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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