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________________ सामवेद] (६५० ) . [सामवेद गोभिल 'गृह्यसूत्र' का सम्बन्ध इसी शाखा से है। इसका सम्पादन कर बेन्फी नामक जर्मन विद्वान् ने जर्मन अनुवाद के साथ १८४८६० में प्रकाशित किया था। राणायनीयशाखा-इसका प्रचार महाराष्ट्र में अधिक है। 'कौघुमशाखा' से यह अधिक भिन्न नहीं है । इसमें कहीं-कहीं उचारण की भिन्नता दिखाई पड़ती है। जैसे; कोयुमीय उच्चारण 'हाउ'और 'राई' 'राणायनीय' में 'हाबु' और 'रायी' हो जाता है । [ जी० स्टेवेन्सन द्वारा १८४२ ई० में अंगरेजी अनुवाद के साथ प्रकाशित ]। जैमिनीयशाखा-इसका सम्बन्ध 'जैमिनीय संहिता' 'जैमिनीय ब्राह्मण', 'केनोपनिषद्' जैमिनीय उपनिषद', 'जैमिनीयत्रौतसूत्र' और 'जैमिनीय गृह्यसूत्र' से है। ब्राह्मणों एवं पुराणों में साममन्त्रों, उनके पदों तथा गायनों की संख्या इस समय प्राप्त अंशों से कहीं अधिक कही गयी है। 'शतपथब्राह्मण' में सामगानों के पद की संस्था चार सहन बृहती तथा साममन्त्रों के पद एक लाख ४४ हजार कहे गए हैं। सामों की संख्या आठ सहन और गायनों की एक हजार पाठ सौ बीस है। अष्टो साम सहस्राणि छन्दोगार्षिकसंहिता । गानानि तस्य वक्ष्यामि सहस्राणि चतुदंश ॥ अष्टौ शतानि गेयानि दशोत्तरं दव । बाह्मणं चोपनिषदं सहस्र-त्रितयं तथा ॥ चरणव्यूह ।। __सामवेद की गान-पति-सामगान को चार भागों में विभाजित किया गया हैपामगेयगान, भारण्यकगान, अहगान और ऊवंगान । 'सामवेद' के गान की प्राचीन पति क्या रही होगी तथा उसमें किन स्वरों में गान होता था; इसके लिए कोई प्रामाणिक आधार नहीं है। वर्तमान युग के सात स्वर उस समय प्रचलित थे अथवा नहीं इसका कोई पुष्ट प्रमाण नहीं मिलता। 'छान्दोग्य उपनिषद' से पता चलता है कि उस समय सामगान के सात अंग थे-हिंकार, आदि, उपद्रव, प्रस्ताव, उद्गीय, प्रतिहार तथा निधन । इनके अतिरिक्त अन्य पांच विकारों का भी उल्लेख है-विकार, विश्लेषण, विकर्षण, अभ्यास, विराम और स्नीय । प्रस्ताव-मन्त्र के प्रारम्भिक भाग को प्रस्ताव कहते हैं और यह 'हं' से भारम्भ होता है। इसका गान प्रस्तोता नामक ऋत्विज् द्वारा होता है। उद्गीथ-इसके प्रारम्भ में 'ॐ' लगता है। यह उद्गाता द्वारा गाया जाता है। प्रतिहार-दो को जोड़ने वाले को प्रतिहार कहते हैं। इसका गायक प्रतिहार नामक ऋत्विज होता है। उपद्रव-इसका गायक उदाता होता है। निधन-इसमें मन्त्र के दो पद्यांश तथा 'ॐ लगा रहता है। इसके तीन ऋत्विज्-प्रस्तोता, उद्गाता तथा प्रतिहर्ता-मिलकर गाते हैं। उदाहरण के लिए एक मन्त्र लिया जा सकता है। अग्न आयाहि वीतये गृणानो हम्यदातये। निहोता सत्सि बहिषि ॥ १-१ भोग्नाई (प्रस्ताव), २-ओम आयाहि वीतये गृणानो हन्यदातये ( उद्दीप, ३-नि होता सरिस बर्हिषि ओम् (प्रविहार )। प्रतिहार के दो भेदों को मे प्रकार से गाया जायगा। ४-निहोता ससि ब ( उपद्रव) ५-हिर्षि बोम् (निधन)। इस साम को जब तीन बार गाया जायगा तब उसे 'सोम' कहा जायगा। गायन के लिये कभी-कभी निरर्थक पदों को भी जोड़ा जाता है, जिन्हें 'स्तोभ' कहते हैं। है-बी, हो, वा, हा मादि । 'सामवेद के गाने की लय के नाम है-कुट, प्रथमा, द्वितीया, चतुर्षी, मन्द्र बोर अतिस्वार्थ ।
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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