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________________ सांत्यदर्तन ] (६४४) [ सांख्यदर्शन से नगर ऐसा स्थूल पदार्थ भले ही उत्पन्न हो जाय किन्तु मन, बुद्धि प्रभृति सूक्ष्मपदार्थ कैसे उत्पन्न होंगे ? अतः स्थूल एवं सूक्ष्म सभी कार्यों को उत्पन्न करनेवाली प्रकृति को ही माना गया। सांख्यशास्त्र में प्रकृति की सत्ता सिद्ध करने के लिए अनेक युक्तियां दी गयी है। (१) विश्व के समस्त विषय-बुद्धि से लेकर पृथ्वी तक-सीमित एवं परतन्त्र हैं, अतः इनका मूल कारण अवश्य ही असीमित एवं स्वतन्त्र होगा। (२) संसार के सभी विषय सुख, दुःख एवं मोह उत्पन्न करते हैं, अतः सभी पदार्थों में तीन गुणों की सत्ता परिलक्षित होती है। इससे यह सूचित होता है कि इनके मूल कारण में भी त्रिविध गुणों की विद्यमानता होगी। ( ३ ) संसार के सभी कार्य कारण से समुद्भूत होते हैं। अर्थात् संसार कार्यों का विशाल समूह है जो किसी कारण जगत् के रूप में अव्यक्त रूप से विद्यमान रहता है, और वह अव्यक्त तत्व प्रकृति ही है। (४) कार्य कारण से उत्पन्न होकर पुनः उसी में विलीन हो जाता है; अर्थात् कार्य का आविर्भाव और तिरोभाव दोनों ही कारण में होता है । जिस प्रकार प्रत्येक कार्य अपने कारण से उत्पन्न होता है, उसी प्रकार वह कारण भी सूक्ष्मतर कारण से उत्पन्न होगा। इस प्रकार क्रमशः कारणों की शृङ्खला बढ़ती जाती है और जहां यह श्रृंखला समाप्त हो जाती है वहाँ सबका सूक्ष्मतम कारण प्रकृति ही सिद्ध होती है। सबसे ऊपर जगत् का एक मूल कारण होता है, जो प्रकृति के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। प्रलयावस्था में स्थूल कार्य या भौतिक पदार्थ अपने कारण या सूक्ष्म परमाणुओं में लीन हो जाते हैं। इस प्रकार की परम्परा चल कर जहाँ समाप्त होती है, वही प्रकृति या सूक्ष्मतम अव्यक्त तत्त्व है। इसे ही सांख्य आदि कारण परा या मूल प्रकृति कहता है । प्रकृति के गुण-प्रकृति के तीन गुण हैं सत्व, रज और तम। इन तीनों की साम्यावस्था ही प्रकृति कही जाती है । जगत के पदार्थों में भी यही तीनों गुण वर्तमान रहते हैं। सांख्यदर्शन में प्रकृति को मूलतत्त्व एवं नित्य माना जाता है। वह संसार को उत्पन्न करती है, किन्तु स्वयं किसी से उत्पन्न नहीं होती। वह एक, व्यापक तथा किसी पर आश्रित नहीं होनेवाली तथा स्वतन्त्र होती है। उसका कोई रूप नहीं होता। वह केवल कारण है और कार्य को उत्पन्न करती है। वह सभी कार्यों की जड़ है। इसकी कोई जंड़ नहीं है । उसका भी कारण माना जाय तो अनवस्था दोष हो जायगा। उसके कई नाम है-अव्यक्त, प्रधान एवं प्रकृति ।। गुण-प्रकृति के तीनों गुण ( सत्व, रज और तम ) प्रत्यक्षतः दिखाई नहीं पड़ते पर कार्यों या सांसारिक विषयों को देख कर उनके स्वरूप का अंदाज लगाया जा सकता हैं । संसार के सभी (सूक्ष्म और स्थूल ) पदार्थों में तीनों गुण पाये जाते हैं। ये प्रकृति के मूल तत्त्व हैं और इन्हीं के द्वारा संसार के विषयों का निर्माण होता है। ये संसार में सुख, दुःख एवं मोह उत्पन्न करने वाले हैं। एक ही वस्तु एक के मन में सुख, दूसरे के मन में दुःख एवं तीसरे के मन में बोदासीन्य का भाव ला देती है। उदाहरण के लिए; संगीत को लिया जा सकता है जो रसिक को सुख, रोगी को कष्ट एवं तृतीय
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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