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________________ सांस्यदर्शन ] (६४२ ) [सांस्यदा नकारात्मक उत्तर देते हैं। उनके अनुसार कुम्भकार द्वारा घट-निर्माण के पूर्व मिट्टी में पड़ा विद्यमान नहीं रहता, यदि पहले से ही उसकी स्थिति होती तो कुम्भकार को परिश्रम करने की आवश्यकता ही क्या थी? इसी प्रकार यदि कार्य कारण में पहले से ही विद्यमान है तो फिर दोनों में अन्तर ही क्या रह जायगा? दोनों को भित्र क्यों माना जाता है? इस स्थिति में मिट्टी और घट को भिन्न नाम क्यों दिया जाता है। दोनों का एक ही नाम क्यों नहीं रहता? किन्तु व्यवहार में यह बात भिन्न हो जाती है । घड़े में जल रखा जा सकता है किन्तु मिट्टी के लोंदे में इसका रखना सम्भव नहीं है। मिट्टी का लोंदा घड़ा का काम क्यों नहीं करता ? यदि यह कहा जाय कि दोनों का (घड़ा और मिट्टी का ) भेद आकारगत है तो यह स्वीकार करना पड़ेगा कि कार्य में ऐसी कोई वस्तु खा गयी जो कारण में नहीं थी। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि कार्य कारण में विद्यमान नहीं रहता। नैयायिकों के इस सिद्धान्त को असत्कार्यबाद कहते हैं। ___ सांख्यदर्शन असत्कार्यवाद का खण्डन करते हुए सत्कार्यवाद का स्थापन करता है। इसके अनुसार कार्य कारण में विद्यमान रहता है। इसकी सिद्धि के लिए निम्नलिखित युक्तियां दी गयी हैं-असदकरणादुपादानग्रहणात् सवंसंभवाभावाद । शक्तस्य शक्यकरणात् कारणभावाच्च सत् कार्यम् ॥ सांस्यकारिका । यहाँ पांच बातों पर विचार किया गया है-(१) असत् या अविधमान होने पर कार्य की उत्पत्ति हो ही नहीं सकती, (२) कार्य की उत्पत्ति के लिए उसके उपादान कारण को अवश्य ग्रहण करना पड़ता है, अर्थात कार्य अपने उपादान कारण से नियत-रूप से सम्बद्ध होता है । (३) सभी कार्य सभी कारण से उत्पन्न नहीं होते ( ४ ) जो कारण जिस कार्य को उत्पन्न करने में वक्त या समय है, उससे उसी कार्य की उत्पत्ति होती है; और (१)कार्य कारणात्मक अर्थात कारण से अभिन्न या उसी के स्वरूप का होता है। हिन्दी सांख्यतस्वकीमुदी पृ० ६७। (१) असदकरणात-यदि कार्य कारण में विद्यमान न रहे तो किसी भी प्रकार से उसका आविर्भाव नहीं होता; कारण कि अविद्यमान पदार्थ की उत्पत्ति सम्भव नहीं है। कर्ता कितना भी प्रयत्न क्यों न करे, किन्तु कार्य उत्पन्न होता ही नहीं । उदाहरण के लिए; क्या बालू से तेल निकाला जा सकता है ? किन्तु, तिल से तेल निकाला जाता है, क्योंकि तिल में तेल का कारण विद्यमान है। पहले से ही उसमें तेल रहता है। वह विशेष स्थिति अर्थात् कोल्हू में डालने पर प्रकट हो जाता है। निमित्त कारण के द्वारा उपादान कारण में अप्रत्यक्ष रूप से विद्यमान कार्य प्रत्यक्ष हो जाता है। __ . २. उपादानग्रहणाद-द्रव्य की निष्पादक वस्तु को उपादान कहते हैं, वैसे; घट के लिए मिट्ठी उसका उपादान कारण है। किसी विशिष्ट कार्य का बाविर्भाव किसी विशेष कारण से ही होता है। जैसे; दही का षमाना दुष से ही सम्भव है वा तेल का तिक या वेलहन से निकलना। किसी खास कारण से किसी खास कार्य की उत्पति यह भूषित करती है कि कार्य विषेष कारण विशेष में पहले से ही वर्तमान रहता है।
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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