SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 648
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संहितोपनिषद् ब्राह्मण] (६३७ ) [ सन्देशकाव्य शिलालेखों में भी संस्कृत का प्रचुर साहित्य सुरक्षित है तथा गद्य एवं पद्य दोनों में ही विपुल साहित्य भरा पड़ा है। संस्कृत में साहित्यशास्त्र तथा काव्यालोचन की अत्यन्त सशक्त परम्परा रही है। काव्यशास्त्र के आधाचार्य भरतमुनि है, किन्तु इनके पूर्व भी कई आचार्यों के नाम मिलते हैं। भरत से लेकर पण्डितराज एवं विश्वेश्वर पण्डित तक संस्कृत काव्यशास्त्र का अक्षुण्णप्रवाह दिखाई पड़ता है। काव्यशास्त्र के ६ सम्प्रदाय हैं-रस; अलंकार, रीति, ध्वनि, वक्रोक्ति एवं औचित्य । इन सिद्धान्तों के द्वारा संस्कृत आलोचकों ने काव्यालोचन के सार्वभौम रूप का मीमांसन किया है । ___ आधरग्रन्थ-१. संस्कृत साहित्य का इतिहास-श्रीकीय (हिन्दी. अनुवाद) २. संस्कृत नाटक ( हिन्दी अनुवाद)-श्रीकीथ । ३. संस्कृत साहित्य का इतिहासपं. बलदेव उपाध्याय । ४. हिन्दी साहित्य का बृहत् इतिहास भाग १-सं० ० राजबली पाण्डेय । ___ संहितोपनिषद् ब्राह्मण-यह 'सामवेद' का ब्राह्मण है। इसमें पांच खण हैं और प्रत्येक खण्ड सूत्रों में विभाजित है। प्रथम खण्ड में तीन प्रकार की गानसंहिताओं के स्वरूप एवं फल का विवेचन है। तीन प्रकार की रचनाओं के नाम हैं-देवहूसंहिता, वाक्शबहू संहिता तथा अमित्रहू संहिता। इनमें प्रथम कल्याणकारण एवं अन्तिम दोनों अमङ्गलप्रद हैं। दूसरे और तीसरे खण्डों में गान-संहिता की विधि, स्तोम, अनुलोम-प्रतिलोम स्वर तथा अन्यान्य प्रकार के स्वरों का प्रतिपादन किया गया है। चतुर्थ और पंचम खण्डों में पूर्ववणित विषयों के पूरक तथ्य प्रस्तुत किये गए हैं। संहिता के उपनिषद् या रहस्य का वर्णन होने से इसकी अभिधा संहितोपनिषद् है । संहिता का यहां अभिप्राय 'सामगायनों की संहिता' से है, मन्त्रों के समुदाय से नहीं। इसके टीकाकार द्विजराज भट्ट ने इसकी प्रशंसा करते हुए लिखा है कि सामब्रह्म के रसज्ञों के लिए इसका अध्ययन विशुद्ध ज्ञान देने वाला है। इसके दो भाष्य है-सायणभाष्य तथा विष्णुभट्ट के पुत्र द्विजराजभट्ट का भाष्य । सायणभाष्य संक्षिप्त है एवं केवल प्रथम खण्ड तक ही प्राप्त होता है, पर द्विजराजभाष्य अत्यन्त विस्तृत एवं पूर्ण है। द्विजराजभट्ट का समय १५ वीं शती के आसपास है । १-इसका प्रथम प्रकाशन १८७७ ई० में बर्नेल द्वारा मंगलोर से हुआ था (रोमन लिपि में )। २१९६५ ई० में केन्द्रीय संस्कृत विद्यापीठ तिरुपति से विशुद्ध समीक्षात्मक संस्करण डॉ. बे० रा० शर्मा द्वारा सम्पादित होकर प्रकाशित । सन्देशकाव्य-संस्कृत में सन्देशकाव्यों का विशाल साहित्य है। सन्देशकाव्य को दूतकाव्य भी कहते हैं। इसमें विरही या नायिका द्वारा अपनी प्रेयसी या नायक के पास दूत द्वारा सन्देश भेजने का वर्णन होता है। इन सन्देशकाव्यों का स्रोत 'वाल्मीकिरामायण' में प्राप्त होता है, जहां हनुमान द्वारा राम के सन्देश को सीता तक पहुंचाने का वर्णन है। महाकवि कालिदास ही इस काव्यरूप के प्रथम प्रयोक्ता है, जिन्होंने 'मेषदूत' या "मेघसम्देश' नामक प्रौढ़ सन्देशकाव्य की रचना की है। इनके बनुकरण पर अनेक सन्देशकाव्यों की रचना हुई है। सन्देशकाव्य के दो विभाग है
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy