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________________ संस्कृत साहित्य ] ( ६३४ ) [ संस्कृत साहित्य 1 संस्कृत साहित्य - संस्कृत साहित्य अत्यन्त विशाल एवं विश्व के महान साहित्यों में है । इसे, भारोपीय परिवार का सर्वोत्कृष्ट साहित्य कहा जा सकता है । मात्रा और गुण दोनों ही दृष्टियों से इसका साहित्य उत्कृष्ट है । जीवन को प्रभावित करने वाली सभी तत्वों एवं विचारधाराओं की ओर संस्कृत-लेखकों की दृष्टि गयी है और उन्होंने अपनी प्रतिभा के प्रकाश से सभी क्षेत्रों को प्रोद्भासित किया है । धर्मशास्त्र, नीति, दर्शन, चिकित्साशास्त्र, ज्योतिष, गणित, सामुद्रिकशास्त्र, कर्मकाण्ड, भक्ति, कामशास्त्र, काव्यशास्त्र, व्याकरण, संगीत, नाट्यशास्त्र, काव्य, नाटक, कथासाहित्य, महाकाव्य, खण्डकाव्य आदि से सम्बद्ध संस्कृत में उच्चकोटि का साहित्य लिखा गया है मोर सभी क्षेत्रों में यह साहित्य विपुल परिणाम में उपलब्ध है । [ यहां उपर्युक्त सभी अंगों का परिचय न देकर केवल कलात्मक साहित्य का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया जायगा ] । [ वैसे अन्य अंगों का विवेचन विभिन्न स्थलों पर देखा जा सकता है, अतः दर्शन, आयुर्वेद, संगीत, कामशास्त्र, व्याकरण आदि के लिए तत्तत् प्रसंगों को देखें ] । संस्कृत का साहित्य मुख्यतः दो भागों में विभक्त है— वैदिक एवं लौकिक । [ वैदिक साहित्य के लिए दे० वैदिक साहित्य ] । लौकिक साहित्य का प्रारम्भ वाल्मीकि'रामायण' से होता है जिसे विद्वानों ने आदि काव्य कहा है। विषय, भाषा, भाव, छन्द-रचना एवं अभिव्यक्ति प्रणाली की दृष्टि से लौकिक साहित्य वैदिक साहित्य से कई अंशों में भिन्न है तथा संस्कृत का परवर्ती विकास लौकिक साहित्य से ही सम्बद्ध रहा है । 'रामायण' तथा 'महाभारत' लौकिक साहित्य की आद्य रचनाएँ हैं एवं इनके द्वारा सर्वप्रथम मानवीय चरित्र का अंकन कर नवीन शैली का सूत्रपात किया गया है। दोनों ही ग्रन्थ केवल काव्य न होकर भारतीय संस्कृति, समाज, राजनीति, धर्म, दर्शन, अर्थशास्त्र, विधिशास्त्र प्रभृति विद्याओं के सर्वागीण आधार ग्रन्थ हैं [ दे० रामायण तथा महाभारत ] । विश्वधमं और दर्शन के विकास में संस्कृत साहित्य की अपार देन है। डॉ० मैकडोनल के अनुसार " भारोपीय वंश की केवल भारत निवासिनी ही शाखा ऐसी है जिसने वैदिक धर्म नामक एक बड़े सार्वभौम की रचना की । अन्य सभी शाखाओं ने एक क्षेत्र में मौलिकता न दिखाकर बहुत पहले से एक विदेशीय धर्मं को अपनाया । इसके अतिरिक्त भारतीयों ने स्वतन्त्रता से अनेक दर्शन सम्प्रदायों को विकसित किया, जिनसे उनकी ऊँची चिन्तनशक्ति का प्रमाण मिलता है।" संस्कृत साहित्य भारतीय संस्कृति का पूर्ण परिपोषक है। विद्वानों ने इसकी पाँच विशेषताओं का उद्घाटन किया है । (१) यह स्मृत्यनुमोदित वर्णाश्रमधर्म का पूर्ण परिपोषक है । ( २ ) इसमें 'वात्स्यायन कामसूत्र' में वर्णित विलासी नागरिक जीवन का चित्र अंकित है ( ३ ) इस पर भारतीय दर्शन की आस्तिक विचारधाराओं का पूर्ण प्रभाव है, किन्तु कतिपय ग्रन्थों में नास्तिक दर्शनों की भी मान्यताओं का आकलन किया गया है, फलतः चार्वाक, जैन एवं बौद्ध दर्शनों के आधार पर भी कतिपय काव्यों की रचना हुई है । मुख्यतः कवियों ने वेदान्त, सांख्य एवं न्याय-वैशेषिक के विचारों को अपनाया है । कालिदास का साहित्य सांख्ययोग से अनुप्राणित है, तो माघ पर सांख्ययोग के अतिरिक्त पूर्वमीमांसा
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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