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________________ संस्कृत महाकाव्य ] ( ६२६ ) [संस्कृत महाकाव्य वाग्भट का 'नैमिनिर्माणकाव्य', वीरनन्दी कृत 'चन्द्रप्रभचरित', सोमेश्वर का 'सुरथोत्सव', भवदेवसूरि का 'पाश्र्वनाथचरित' तथा मुनिभद्रसूरि कृत 'शान्तिनाथचरित' हैं। संस्कृत महाकाव्यों की परम्परा-संस्कृत में ऐसे अनेक महाकाव्यों की सूचना प्राप्त होती है जो कालिदास के पूर्व लिखे जा चुके थे तथा उनकी विद्यमानता के सम्बन्ध में भी प्रचुर प्रमाण उपलब्ध होते हैं। यद्यपि ये महाकाव्य आज प्राप्त नहीं होते, फिर भी उनके अस्तित्व को बतलाने वाले प्रबल साक्ष्य विभिन्न प्रन्यों में दिखाई पड़ते हैं । 'महाभारत' के शान्तिपर्व में 'देवर्षिचरित' नामक महाकाव्य के प्रणेता गाग्यं कहे गए हैं । परम्परा में 'जाम्बवतीविजय' या 'पातालविजय' नामक महाकाध्य पाणिनि धारा रचित बताया गया है । इसमें १८ सगं थे। लगभग ३३ ग्रन्थों में इसके अस्तित्व की सूचना प्राप्त होती है [ दे० पाणिनि ] | पाणिनिकालीन वैयाकरण व्याडि भी 'बालचरित' नामक महाकाव्य के प्रणेता माने जाते हैं। महाकाव्य के क्षेत्र में व्याडि. रचित ग्रन्थ 'प्रदीपभूत' माना जाता है। महाराज समुद्रगुप्त ने लिखा है कि व्याडि ने 'बालचरित' नामक महाकाव्य लिखकर व्यास और भारत को भी जीत लिया था [कृष्णचरित श्लोक १६,१७] । 'अमरकोश' के एक अज्ञातनामा टीकाकार ने भी व्याडिकृत महाकाव्य का उल्लेख किया है जिसमें कहा गया है कि 'भट्टिकाव्य' के १२ वे सर्ग की भांति व्याडि के भी महाकाव्य में 'भाषा समावेश' नामक एक अध्याय था। दे० ओरिएण्टल जर्नल, मद्रास पृ० ३५३, १९३२ ई०] । सूक्ति संग्रहों में वररुचिरचित महाकाव्य के अनेक उद्धरण प्राप्त होते हैं। पतन्जलि ने भी 'महाभाष्य' में 'वाररुचकाव्यं' का उल्लेख किया है [ महाभाष्य ४।३।११० ] [ दे० वररुचि] | इनके काव्य का नाम 'स्वर्गारोहण' था। महाभाष्यकार पतन्जलि भी महाकाव्य के प्रणेता कहे गये हैं । उन्होंने 'महानन्द' नामक महाकाव्य की रचना की थी जिसका विवरण 'कृष्णचरित के प्रारम्भिक तीन श्लोकों (प्रस्तावना ) में प्राप्त होता है। इस महाकाव्य का सम्बन्ध मगध सम्राट महानन्द से था। इस प्रकार देखा जाता है कि संस्कृत में महाकाव्यों का उदय अत्यन्त प्राचीन है, किन्तु पाणिनि से विक्रमपूर्व प्रथम शताब्दी तक की रचनाओं के पूर्ण परिचय प्राप्त नहीं होते। संस्कृत महाकाव्यों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाता है-पौराणिक उत्थानकालीन या अभ्युत्थानयुगीन एवं ह्रासकालीन महाकाव्य । पौराणिक महाकाव्यों में 'रामायण' और 'महाभारत' आते हैं। वाल्मीकि ने स्थान-स्थान पर इस काव्य को अलंकृत करने का प्रयास किया है । इससे उनका काव्य और भी अधिक भास्वर हो उठा है। अलंकारों के द्वारा रसाभिव्यक्ति करने में वाल्मीकि अत्यन्त पटु हैं । सरसता, स्वाभाविकता एवं प्रकृति-प्रेम उनकी अपनी विशेषताएं हैं। कालिदास ने वाल्मीकि का आधार ग्रहण करते हुए महाकाव्य के प्रकृत मार्ग की उद्भावना की है । उन्होंने प्रकृतिचित्रण की समस्त पदति वाल्मीकि से ही ग्रहण की, किन्तु उसमें अपनी प्रतिभा का प्रकाश भर कर उसे और भी जीवन्त बनाया। यमक के माध्यम से द्रुतविलवित छन्द में प्रकृति-चित्रण की नवीन पद्धति उन्होंने ही चलाई। कालिदास के महाकाव्यों
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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