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________________ संस्कृत नाटक ] ( ६२० ) [संस्कृत नाटक विषय बनाया है। इसका मुख्य रस है शृङ्गार जो उभय पक्षों के साथ प्रस्तुत किया गया है। ___ 'अभिज्ञान शाकुंतल' में राजा दुष्यन्त और शकुन्तला के प्रणय, वियोग एवं पुमिलन की कथा कही गयी है। इसकी कथा महाभारत के आदिपर्व में वर्णित दुष्यन्त एवं शकुन्तला के उपाख्यान पर आधृत है, पर कवि ने कल्पना का आश्रय लेकर कई नवीन तथ्यों का सन्निवेश कर इस कथा को सुन्दर बना दिया है। दुर्वासा के शाप का नियोजन कवि की प्रतिभा की देन है जिससे दुष्यन्त लोलुप, कामी एवं कर्तव्य च्युत व्यक्ति न होकर उदात्त चरित्र का व्यक्ति सिद्ध होता हैं। 'शाकुंतल' में अन्य दो नाटकों की भाति सपत्नी-कलह एवं प्रणयद्वन्द्व को स्थान नहीं मिला है। इसमें कवि ने नियतिद्वन्द्व का समावेश कर नाटकीय गत्यात्मकता, औत्सुक्य एवं घटनाचक्र का सफलतापूर्वक निर्वाह किया है। महाभारत की हृदयहीन एवं स्वार्थी शकुन्तला महाकवि कालिदास की प्रतिभा के आलोक में भास्वर होकर महान् बन गयी है और कवि की प्रतिभा ने मौलिक उद्भावनाओं के द्वारा उसके व्यक्तित्व को उन्नत कर दिया है। विरह की आंच में जलकर दुष्यन्त एवं शकुंतला दोनों के ही चरित्र उज्ज्वल हो गये हैं और उनके हृदय की वासना का कलुष भस्मीभूत हो गया है। शकुन्तला में कालिदास का शृङ्गार स्वस्थ एवं भारतीय गरिमा के अनुकूल है, जिसका उद्देश्य पुत्रोत्पत्ति का साधन बनना है। इसमें सरस एवं मार्मिक स्थल अत्यधिक हैं तथा प्रकृति का बड़ा ही मनोरम चित्र अंकित किया गया है। सरस स्थलों में चतुर्थ अंक का शकुन्तला की विदाई वाला दृश्य बड़ा ही हृदयहारी है। सुन्दर उपमाओं एवं हृदय की मार्मिक भावव्यंजना की तो 'शकुन्तला' खान है। कवि कालिदास ने अपने कवित्व पर पूर्णतः नियन्त्रण रखकर भावुकता के अतिरेक में अपने को बहाया नहीं है और नाटकीय व्यापार की गत्यात्मकता पर ध्यान रखते हुए काव्य एवं नाटक दोनों के मिलन-विन्दु को 'अभिज्ञानशाकुंतल' में सफलतापूर्वक दर्शाया है। और यही उनकी सफलता का रहस्य भी है [ दे० अभिज्ञान शाकुन्तल] । संस्कृत के तृतीय प्रसिद्ध नाटककार हैं 'शुद्रक' जिन्होंने 'मृच्छकटिक' नामक यथार्थवादी नाटक की रचना की है। इन्होंने भासकृत 'चारुदस' के आधार पर अपने 'प्रकरण' का निर्माण किया है। 'मृच्छकटिक' में दस अंक हैं और ब्राह्मण चारुदत्त तथा वेश्या वसन्तसेना की प्रेम-कहानी वर्णित है। इसका प्रतिनायक राजा का साला शकार है । इस प्रकरण में साथ-साथ दो प्रधान घटनाएं चलती हैं जिनमें एक का सम्बन्ध वसन्तसेना तथा चारुदत्त से है तथा दूसरी आर्यक की राज्य-प्राप्ति से सम्बद्ध है। नाटककार ने प्रेम की कथा को राजनैतिक घटनाओं के साथ सम्बद्ध कर अनठी चातुरी का परिचय दिया है और दो घटनाओं को इस प्रकार अनुस्यूत किया है कि वे पृथक् नहीं होती। 'मृच्छकटिक' में जीवन की यथार्थ भूमि को आधार बनाकर ऐसे चरित्र की अवतारणा की गयी है जो सार्वदेशिक हैं। यह संस्कृत की प्रथम यथार्थवादी रचना है जिसमें राजा-रानियों की प्रणय-गाथा प्रस्तुत न कर दरिद्र, ब्राह्मण, वेश्या, चोर, जुआरी एवं लुच्चों की बाणी मुखरित हुई है । 'मृच्छकटिक' अनेक प्रकार की प्राकृतों के प्रयोग,
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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