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________________ भृङ्गारप्रकाश ] (६०१) [शृङ्गारप्रकाश तथा ज्योतिर्मठ का अध्यक्ष तोटक को बनाया । आचार्य ने मठों की स्थापना को ही अपना कर्तव्य न मानकर मठाधीशों के लिए भी नियम निर्धारित कर व्यवस्था बनायी, जिसके अनुसार उन्हें चलना पड़ता था। उनके ये उपदेश 'महानुशासन' के नाम से प्रसिद्ध हैं। मठाधीश्वर के लिए पवित्र, जितेन्द्रिय, वेदवेदाङ्गविशारद, योगविद तथा सर्वशास्त्रज्ञ होना वावश्यक था। आचार्य ने ऐसी भी व्यवस्था की थी कि जो मठाधीश्वर उपयुक्त नियमों का पालन न करे, उसे अधिकारच्युत कर दिया जाय । मठाधीश्वर राष्ट्र की प्रतिष्ठा के लिए सदा भ्रमण किया करते थे तथा एक मठ का अधीश्वर दूसरे के क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करता था। इन सारी बातों से आश्चर्य की दूरदर्शिता एवं व्यावहारिक ज्ञान का पता चलता है। शंकराचार्य को अपने मत का प्रचार-प्रसार करने में अनेक विद्वानों से शास्त्रार्थ करना पड़ा था । उनमें मण्डन मिश्र के साथ उनका शास्त्रार्थ ऐतिहासिक महत्त्व रखता है । मणन मिश्र प्रसिद्ध मीमांसक कुमारिल भट्ट के शिष्य थे। वे मिपिलानिवासी थे। उनकी पत्नी का नाम भारती था । आचार्य का मण्डन मिश्र के साथ जब शास्त्रार्थ हुआ तो उसकी मध्यस्थता भारती ने की। आचार्य की मृत्यु ३२ वर्ष की अवस्था में भगन्दर रोग के कारण हुई। वे महान् कवि, प्रौढ़ लेखक एवं युगप्रवत्तंक दार्शनिक थे। 'उनके दार्शनिक सिद्धान्तों के लिए दे० वेदान्त)। आधारग्रंथ-१. आचार्य शंकर-पं. बलदेव उपाध्याय । २. संस्कृत सुकवि समीक्षा-पं. बलदेव उपाध्याय । ३. शंकर का आचार दर्शन-डॉ० रामानन्द तिवारी ४. भारतीय दर्शन-चटंजी और दत्त ( हिन्दी अनुवाद)। शृङ्गारप्रकाश---यह काव्यशास्त्र का सुप्रसिद्ध ग्रन्थ है। इसके रचयिता आचार्य भोज हैं [ दे० भोज 1। यह ग्रन्थ अभी तक सम्पूर्ण रूप से प्रकाशित नहीं हमा है। इसके १४ प्रकाश दो खण्डों में श्री जा. आर जोशयेर द्वारा सम्पादित होकर प्रकाशित हो चुके हैं. इन्टरनेशनल, अकाडेमी ऑफ संस्कृत रिसर्च मैसूर १९५५)। डॉ० वे. राघवन ने 'शृङ्गारप्रकाश' की हस्तलिखित प्रति के आधार पर अंगरेजी में विशालकाय ग्रन्थ की रचना की है जिसमें उसके प्रत्येक प्रकाश का सार एवं वर्णित विषयों का विवेचन है। 'शृङ्गारप्रकाश' के मत को जानने के लिए यह ग्रन्थ आधारग्रन्थ का कार्य करता है । 'शृङ्गारप्रकाश' भारतीय काव्यशास्त्र का सर्वाधिक विशालकाय ग्रंथ है जिसकी रचना ३६ प्रकाश एवं ढाई हजार पृष्ठों में हुई है। इसमें काव्यशास्त्र एवं नाट्यशास्त्र दोनों का विवेचन है । वर्णित विषयों की प्रकाश-क्रम से सूची इस प्रकार है--१. काव्य, शब्द एवं अर्थ की परिभाषा तथा प्रत्येक के १२ कार्य का वर्णन । २. प्रातिपदिक के भेदोपभेद, ३. पद तथा वाक्य के अथं एवं उनके भेद, ४. अर्थ के १२ प्रकारों का वर्णन, ५. उपाधि का अर्थ, ६. ७. ८. में सम्दशक्तियों का विवेचन ५. प्रकाश में गुण एवं दोषविवेचन, १०. वें प्रकाश में शब्दालंकार, अर्यालकार एवं उभयालङ्कार का विवेचन, ११. एवं १२. में प्रकाश में रस एवं नाटक तथा महाकाव्य का वर्णन, १३ ३ में रति, मोक्षपङ्गार, धर्मनार, वृत्ति एवं रीतिविवेचन, १४३ में हर्ष एवं ४८ भाव, १५. रति के बालम्बन विभाव, १६. रति के उद्दीपनविभाव,
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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